सूटबूट और सूटकेस

      डा. सुरेंद्र सिंह
लोग कहें कुछ भी, सूटबूट और सूटकेस का अन्योन्याश्रित संबंध है, ऐसे ही जैसे आग और धुंआ। आग है तो धुआं जरूर होगा और धुआं है तो आग। लेकिन मैदाने जंग में भाई लोग लड़े जा रहे हैं -‘‘तेरे पर सूटबूट है’’। -‘‘तेरे पास सूटकेस है’’। -‘‘तेरे पर कई सूटबूट हैं’’,  -‘‘तेरे पर कई सूटकेस हैं’’। तू-तू, मैं-मैं इतनी जोर से है कि दूसरे लोगों के लिए यह समझना मुश्किल हो चला है कि आखिर ये कहना क्या चाह रहे हैंं? क्यों कहना चाह रहे हैं। अरे भाई जिसका जो सामान है, उसके लिए है, तुम्हें क्यों जलन हो रही है। भगवान ने दिया है ‘छप्पर फाड़ के’।
पहले किसी को ससुराल जाना होता तो एक दूसरे से मांग कर सूटबूट और सूटकेस ले जाते ताकि रिश्तेदारी में धाक बन सके। कोई समझे कि हम हैं।  कई को इसमें गर्व का अहसास होता कि वह लोगों के काम आ रहे हैं ‘परहित सरिेस धरम नहिं कोई’ तो कुछ लोग उन्हें छिपाकर रख देते कह देते-‘‘हम पर कहां हैं? बहुत पहले खराब हो गए’’। कुछ लोगों पर सूटकेस होता तो कुछ पर सूटबूट। दोनों एक दूसरे के काम आते। काम चलता रहता। कोई-कोई इतने ओछे, एक बार काम न चलाया तो उलाहना देते- ‘‘तूने हमें सूटकेस और सूटकेस दिया?  पिछली बार के दिए को भूल जाते
अब जमाना थोड़ा बदला है, अब बहुतों पर सूटबूट हैं और सूटकेस भी। मांग कर काम चलाने की नौबत ही कहां है? थोड़ा फैशन भी बदली है। पहले सूटबूट और सूटकेस हैं तो पैसे वाला और अच्छा आदमी है, बिगड़ी में काम आ सकता हैं। अब कंगाल जैसा दिखने वाला बड़ा आदमी है। इसलिए लोग सूटबूट और सूटकेसों को छिपाकर चलते हैं। ज्यादा पुरानी बात नहीं है, एक सांसदजी के चेहरे पर हरवक्त मुस्कराहट उमड़ी रहती। शहर में कई कोठियां थीं, लेकिन लोगों को गांव का पुराना टूटाफूटा मकान ही दिखाते। हकीकत बाद में खुली। अब कोई अपने को चाय बेचने वाला तो कोई गाय चराने वाला बताकर महफिल लूट ले जाते हैं। स्कूटर पर चलकर हवाई जहाज में पहुंच जाते हैं।  सूटबूट और सूटकेस वाले आंखें फाड़-फाड़ कर देखते और हाथ मलते रह जाते हैं। कुछ के सूटकेस चेकिंग में पकड़े जाते हैं तो हाथ झाड़कर खड़े हो जाते हैं, ये हमारे नहीं हैं, किसी और के होंगे। एकाध के पास छापे में रंगे हाथों पकड़े जाते हैं तो अदालत से बरी हो जाते हैं।  अदालत कह देती है कि यह ज्यादा नहीं है। सूटकेस और सूटबूट में बड़ा घालमेल है।
जो लोग सूटबूट और सूटकेस चिल्ला रहे हैं, उनका अभी तक कुछ उजागर नहीं हुआ, इसलिए शुक्र मनाओ बच्चू। समय बड़ा बलवान है। यही प्रमाणित करेगा, किसके पास कब कितने सूटकेस और सूटबूट रहे हैं?
 दिखाइए कुछ भी? बताइए कुछ भी? इससे क्या होता है। बिना सूटकेस और सूटबूट कोई एक कदम नहीं चल रहा। यदि चलते हो तो दीजिए जनता को पार्टी फंड जानने का सूचना का अधिकार। यदि यह अधिकार नहीं दे सकते तो क्यों थोथे गाल बजाते हो?

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