Posts

Showing posts from 2016

जमाना अब शब्दवीरों का

                                                              जमाना सदा एक सा नहीं रहता। क•ाी जमाना पत्थरों और हड्डियों के बने हथियारों का था। इन्हें चलाने में जो निपुण थे, वे उस जमाने के वीर थे। वह आदिकाल  था।  इसके  बाद तीर और तलवारों का जमाना आया। कहते हैं महा•ाारत काल में अर्जुन से बड़ा कोई धनुर्धर नहीं था। मध्यकाल में बड़े-बड़े तलवारवाज हुए उन्होंने तलवारों के बल पर तमाम देशों की नई सीमाएं बनाई और बिगाड़ी। अंग्रेजों के साथ गोला बारूद का जमाना आया। जो सैकड़ों सालों से चलते-चलते अब घिसटने रहा है।  सीरिया, यमन जैसे पिछड़े देशों में जरूर इसका बोलवाला है। पाकिस्तान को •ाी इसी श्रेणी में रखा जाना चाहिए। अब नया जमाना शब्दवीरों का आ गया है। अमेरिका में ट्रंप और हिलेरी के बीच शब्दबाण चल रहे हैं। अपने यहां जिन्होंने पीओके में घुसकर खूंख्वार आतंकवादियों के अड्डे नेस्तनाबूत किए और उनकी लाशें बिछा दीं,ु उन्हें कोई माटी के मोल  नहीं पूछ रहा, हरतरफ शब्दवीर छाए हैं.  •ाादों में काली घटाएं जैसे पूरे वातावरण पर हावी हो जाती हैं,जो  बरसती कम हैं, डराती ज्यादा हैं,  वैसे ही देश और प्रदेश की राजधानियों

छोटे राज्य सुखी राज्य

                                                          डा. सुरेंद्र सिंह अक्सर कहा जाता है, अपने देश की आबादी बहुत ज्यादा है। इसे जनसंख्या का विस्फोट बताकर ज्यादातर समस्याओं की जड़ •ाी इसे कहा जाता है। बीते सालों में जनता को बोझ बताकर इसे नियंत्रित करने के •ाी अनेक प्रयास किए गए। लेकिन प्रशासनिक और राजनीतिक तौर पर इससे सुधार की बजाय दु:खद परिणाम ही रहे। वास्तव में जनसंख्या को बोझ कहना अपनी अकुशलता को जनता के मत्थे मढ़ने की तरह है। सवाल यह है कि बहुत पहले यह देश सोने की चिड़िया थी, आबादी तब •ाी कोई कम नहीं थी, एक-एक के सौ-सौ पुत्र होते थे। लोगों की सेहत पर इसका कोई असर नहीं था, संपन्नता में कमी नहीं थी, दूध की नदियां बहती थीं। समाज के बहुत से तबकों को गांव में ही रोजगार मिल जाता था। जो कुछ कर नहीं सकते थे, उनकी मदद के लिए हरेक के दरवाजे खुले रहते थे।  देश दूसरे मुल्कों पर निर्•ार नहीं था। सब कुछ था यहां। बाहर के लोगों ने इसे लूटा। इसके तंत्र को नष्ट किया। अब देश आजाद है, इससे स्थिति में सुधार तो हुआ है लेकिन अपेक्षित नहीं।  सुविधा और संसाधनों के असमान वितरण से समाज में खाई पैदा हो रही