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Showing posts from October, 2020

पर उपदेश कुशल बहुतेरे

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                                         माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कोरोना को लेकर देश के नाम अपने सातवें संबोधन में बहुत महत्वपूर्ण बातें कहीं। जिसे लेकर आजकल  देश भर में चर्चा है। उन्होंने कहा कि कोरोना की स्थिति संभली हुई दिख रही है लेकिन कोरोना अभी गया नहीं है। उन्होंने यूरोप और अन्य देशों का हवाला देते हुए कहा कि यदि लापरवाही वरती तो यह दोबारा लौट भी सकता है, इसलिए सावधानी बरतें। दो गज की दूरी यानि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन अवश्य करें। प्रधानमंत्री ने ये बातें ऐसे समय में कही हंै जबकि कोरोना के आंकड़े नियंत्रण में दिखाए देने के बाद नागरिक सोशल डिस्र्टेंसग और मास्क को भुलाने लगे हैं। समय भी इसके लिए उपयुक्त है।  ये बातें उसी तरह हैं जिस तरह परिवार का एक मुखिया अपने बच्चों को अच्छी-अच्छी सीख देता रहता है। यह कह कर मोदी जी देश रूपी परिवार के मुखिया की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। लेकिन क्या यह पर्याप्त है?  यदि लोग अच्छी सीख से ही लोग सुधर रहे होते तो फिर कानून बनाने की क्या जरूरत थी। स्कूलों में अध्यापक और घरों में परिवार के मुखिया बच्चों को चोरी नहीं करने,सदा सच बोलने, दूसरों

नारदजी की रिपोर्टिंग-3

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                         नारदजी हाथरस कांड की सचाई जानने को  व्याकुल  दर-दर की खाक छान रहे हैं।  ऐसे ही  एक दिन लखनऊ में हजरतगंज चौराहे पर पुलिस ने धर लिया। पूछा-‘‘कहां घूम रहा है, राजधानी में भी बिना मास्क के,  दूसरों को देख कर भी शर्म नहीं आती’’? नारदजी ने बहुत सफाई दी कि उन पर कोरोना का असर नहीं होगा। कोरोना तो इंसानों के लिए है। वह तो भगवान राम के भक्त हैं। पुलिस के सिपाही ने हड़काया- ‘‘बड़ा आया भक्त। यहां बड़े-बड़े मंदिर बंद हैं, स्वामीजी। कोरोना किसी को नहीं बख्श रहा।  नृत्यगोपाल दास तक को नहीं छोड़ा, उनसे बड़े तो नहीं हो, उन्होंने मोदीजी के साथ श्रीराम जन्मभमि मंदिर का शिलान्यास कराया।  चलिए निकालिए  एक हजार रुपये। जुर्माना है यह।  पक्की रसीद मिलेगी’’। नारदजी पर रुपये हों तो दें, उन्हें पैसे की क्या जरूरत? बगलें झांकने लगे, वीणा और खाली कमंडल  दिखाने लगे। बगल में खड़े एक  सिपाही ने अपने साथी से इशारे से कहा -‘‘इसकी वीणा रख लेते हैं, बच्चों के काम आएगी’’। तभी घूम-फिर कर आए  एसएचओ की नजर पड़ी। उन्होंने इशारे से पूछा-‘‘ क्या माजरा है’’? उन्हें जकड़कर पकड़े सिपाही कुछ  बताते तब तक सामने से एक

नारदजी की रिपोर्टिंग-2

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                                देवर्षि नारदजी यदि हाथरस की घटना की रिपोर्टिंग के लिए आते तो स्थानीय अधिकारी उन्हें आसमान से उतरने के दौरान ही ताक लेते। उन्हें हड़काते-‘‘ उतर, नीचे उतर, नही तो गोली मार देंगे’’। फिर बड़बड़ाते-‘‘ साला... जमीन के रास्ते से गांव में घुसने पर रोक लगा दी है तो आसमान से उतर रहा है, बड़ा सरकस आदमी है’’।  जबरन जमीन पर उतार कर सबसे पहले उन्हेें नक्सली साबित करनेका प्रयास करते। वह वीणा हाथ में लेकर-‘‘ नारायण-नारायण’’ कहते सफाई देते रहते- ‘‘वह तो परलोक से आए हैं’’ फिर भी पुलिस वाले उन्हें घसीटकर थाने में बंद कर देते फिर आपस में सलाह करते, ऊपर रिपोर्ट देते। परलोक की बात सुनकर सभी आश्चर्यचकित होते,-‘‘ इतनी बड़ी साजिश। अब परलोक में भी योगी सरकार को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है’’। इहलोक के मीडिया और विपक्ष को इसकी कानोंकान भनक नहीं लगने देते। देवर्षि की खातिर खुशामद में लग जाते, उन्हें होटल में ले जाते। समझाते- ‘‘भगवानजी को बता देना, यहां  सब कुछ ठीक चल रहा हैं, रामराज्य दोबारा लाया जा रहा है। उनके लिए अयोध्या में जन्म स्थान पर भव्य मंदिर का शिलान्यास हो गया है। प्रधान

नारदजी की रिपोर्टिंग

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                              अब यदि देवर्षि नारदजी होते तो सच और झूठ के झमेले में फंस जाते, शायद पछताते, कहां फंस गए? इस चक्कर में वह डांट भी खा जाते।  वह अभिनेता सुशांत राजपूत की आत्महत्या की रिपोर्ट लेने आते तो सबसे पहले मुंबई पुलिस उन्हें 14 दिन के लिए क्वारंटीन करती। ऊपर भगवानजी इंतजार करते रहते और वह नीचे सफाई देते रहते कि वह देवदूत हैं, भगवानजी को उन्हें रिपोर्ट देनी है। पर उनकी कोई नहीं सुनता।  नारद जी यदि परलोक में दंडित कराने की धमकी देते तो पुलिस वाले उन्हें उल्टा ही हड़का देते-‘‘जा-जा, परलोक वाले, हमें परलोक नहीं, इसी लोक की और इस लोक में भी मौजूदा सरकार की ताबेदारी करनी है। परलोक के लिए तो हमारे पास एक से बढ़कर एक ज्ञानी-ध्यानी हैं जो दान- दक्षिणा लेकर जन्म-जन्मांतरों तक के पाप नष्ट कर देते हैं’’। बाद में किसी तरह छूटकर जब वह स्वर्गलोक  पहुंचते और भगवानजी को जो सच था, वही बताते लेकिन भगवानजी  शायद चकरा जाते-’’ क्या कह रहे हो, देवर्षि?  तकरीबन सारा मीडिया तो रिया चक्रवर्ती को जिम्मेदार ठहरा रहा है, आप उसे गंगाजल की तरह निर्दोष बता रहे हैं? क्यों? एक बार फिर सोच-समझ कर बोलिए’’

आत्महत्या क्यों?

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                            मेरे एक परिचित के दोस्त ने पिछले दिनों आत्महत्या कर ली। बहुत दुख हुआ।  क्या कमी थी ?अच्छा-खासा बंगला था, लंबी गाड़ी थी। हालांकि यह सब कर्ज से था लेकिन कोई परवाह नहीं थी। नौकरी से इतनी आमदनी थी कि किश्तों का पता ही नहीं चल रहा था।  जिंदगी मजे से चल रही थी। कोरोना के लाकडाउन के कारण वक्त ने ऐसा पल्टा खाया कि वह सड़क पर आ गया। कोई उपाय नहीं दिखा तो उसने नहर में गाड़ी  कुदाकर  अपनी  इहलीला समाप्त कर दी।  एक पत्रकार ने एम्स की चौथी मंजिल से छलांग लगाकर जान दे दी।  हाल ही में एक सफाई कर्मचारी ने आत्म हत्या कर ली। कोरोना काल में ऐसी हजारों आत्महत्याएं हुईं। आत्महत्याएं कोई यहीं नहीं पूरे दुनिया में होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन  की एक रिपोर्ट के अनुसार पूरे विश्व में हर साल आठ लाख से  ज्यादा आत्महत्याएं होती हैं। लेकिन चिंताजनक यह है कि इनमें से करीब 21 प्रतिशत यानि सबसे ज्यादा भारत में होती हैं। यहां हर 40 सैकंड में एक आत्महत्या होती है।  एनआरसीबी की ताजा रिपोर्ट के अनुसार यहां वर्ष 2019 में 139123 लोगों ने आत्महत्याएं की। इनमें 43000 किसानों और दिहाड़ी मजदूर शामिल

बेरोजगारी महामारी

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                                                   कोरोना महामारी है, यह हर कोई जानता है, इससे पूरी दुनिया त्रस्त है, बेरोजगारी उससे भी बड़ी महामारी बनने लगी है। क्योंकि कोरोना से एक बार को सावधानी वरत कर बच भी सकते हैं, उसकी मारक क्षमता भी कम है लेकिन  बेरोजगारी ऐसी महामारी  है जिससे  कोई नहीं बच सकता।  इसका उपाय केवल और केवल  रोजगार  है। अपने देश में इसका सबसे ज्यादा प्रकोप है। निकट भविष्य में इसके और भयंकर परिणाम देखने को मिल सकते हैं।  अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार पूरी दुनिया में 50 करोड़ से भी ज्यादा बेरोजगार हैं, इसमें सबसे ज्यादा योगदान कोरोना महामारी का है।  दुनिया का सबसे ज्यादा  शक्तिशाली देश अमेरिका भी इसका शिकार है। वहां कोरोना के कारण डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोगों को बेरोजगार होना पड़ा है। लेकिन अमेरिका अमेरिका है, वह अपने नागरिकों को इतना बेरोजगारी भत्ता दे देता है कि कोई दिक्कत नहीं होती। सबसे ज्यादा  दिक्कत अपने देश में है। कोरोना महामारी आने से पहले ही यहां दो करोड़ से ज्यादा नौजवान बेरोजगार थे। कोरोना काल में लोकडाउन के चलते 12 करोड़ से ज्यादा लोग और बेरोजगार हुए।  क्योंक

गांधीजी अब और ज्यादा प्रासंगिक

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                                                   अब जबकि महात्मा गांधी जी को गुजरे करीब पौन शताब्दी होने जा रही है, वह देश के लिए और प्रासंगिक होते जा रहे हैं। काश गांधी अब होते, ऐसी कामना बहुत से लोग करते हैं। कई बार दूसरे लोगों में गांधी का अक्स देखने लगते हैं। इमरजेंसी के दौरान लोगों को लोकनाक जय प्रकाश नारायण में  गांधी की झलक दिखी। इसके बाद 2011 में जब सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ दिल्ली में धरना दिया तो उनमें भी  गांधी की छवि दिखी।  लोग उन्हें दूसरा गांधी कहने लगे थे।  केवल भारत ही नहीं पूरी दुनिया को उनकी जरूरत है। इसलिए दो अक्टूबर गांधी जयंती को अंतरराष्ट्रीय  अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है।  करीब पौने दो सौ साल से काबिज ब्रिटेन जिसे भारत से भागने के लिए मजबूर गांधीजी ने किया, वह भी उन्हें याद करता है, 30 जनवरी को राष्ट्रीय गांधी दिवस मनाकर। दक्षिण अफ्रीका की आजादी का  प्रेरणास्रोत ही गांधीजी हैं।  यह उन्हीं का प्रभावशाली व्यक्तित्व था कि  दो बार के चुने हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से सुभाष चंद्र बोस को हटने के लिए कहा और उन्होंने अध्यक