आत्महत्या क्यों?

                           


मेरे एक परिचित के दोस्त ने पिछले दिनों आत्महत्या कर ली। बहुत दुख हुआ।  क्या कमी थी ?अच्छा-खासा बंगला था, लंबी गाड़ी थी। हालांकि यह सब कर्ज से था लेकिन कोई परवाह नहीं थी। नौकरी से इतनी आमदनी थी कि किश्तों का पता ही नहीं चल रहा था।  जिंदगी मजे से चल रही थी। कोरोना के लाकडाउन के कारण वक्त ने ऐसा पल्टा खाया कि वह सड़क पर आ गया। कोई उपाय नहीं दिखा तो उसने नहर में गाड़ी  कुदाकर  अपनी  इहलीला समाप्त कर दी।  एक पत्रकार ने एम्स की चौथी मंजिल से छलांग लगाकर जान दे दी।  हाल ही में एक सफाई कर्मचारी ने आत्म हत्या कर ली। कोरोना काल में ऐसी हजारों आत्महत्याएं हुईं।

आत्महत्याएं कोई यहीं नहीं पूरे दुनिया में होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन  की एक रिपोर्ट के अनुसार पूरे विश्व में हर साल आठ लाख से  ज्यादा आत्महत्याएं होती हैं। लेकिन चिंताजनक यह है कि इनमें से करीब 21 प्रतिशत यानि सबसे ज्यादा भारत में होती हैं। यहां हर 40 सैकंड में एक आत्महत्या होती है।  एनआरसीबी की ताजा रिपोर्ट के अनुसार यहां वर्ष 2019 में 139123 लोगों ने आत्महत्याएं की। इनमें 43000 किसानों और दिहाड़ी मजदूर शामिल हैं।  दिहाड़ी मजदूरों की आत्महत्याएं कुल आत्महत्याओं का 23.4 प्रतिशत हैं। जहां तक नौजवानों की बात है, उनकी मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण आत्महत्या है? सबसे ज्यादा  एक्सीडेंट से मौत होती हैं, और उसके बाद आत्महत्या से।  कुल मिलाकर आर्थिक कारणों से बड़े पैमाने पर आत्महत्याएं होती हैं। 

आत्महत्याएं कोई आज से नहीं बहुत पहले हो रही हैं। अट्ठारहवीं शताब्दी में आगरा के लल्लू लाल बेरोजगारी की स्थिति में कलकत्ता नौकरी तलाशने के लिए गए थे। नौकरी नहीं मिली।  जो जमा पूजीं थी, वह भी खर्च हो गई। घर वापसी के लिए किराए के पैसे भी नहीं थे। उन्होंने आत्महत्या करनी चाही। इसके लिए वह वहां के एक बड़े तालाब में कूद कर डूब  मरने के लिए गए।  अंधेरे का  वक्त था। वह मरने के लिए जैसे ही छलांग लगाने वाले थे। तभी एक अंग्रेज  युवती ने आत्महत्या के लिए छलांग लगाई। उसकी छपाक की आवाज के साथ चीख निकली। मरने का निर्णय लेना एक बात है, लेकिन मरना दूसरी बात। जब जान निकलती है तो तकलीफ होती है।  लेकिन कई बार ऐसी स्थिति हो  जाती है जबकि  बचना अपने वश में नहीं होता। खैर उसकी आवाज सुनकर लल्लू लाल उसे बचाने के लिए कूद पड़े और बचा लिया।  महिला  प्रेम में विफल होने पर आत्महत्या करने आई थी। उस महिला के रिश्तेदार फोर्ट विलियम कालज में प्रिसिंपल थे। उनसे कहकर ही उसने लल्लूलाल की नौकरी यहां शिक्षक के पद पर लगवाई।  यह वही लल्लू लाल थे जिन्होंनें हिंदी की प्रारंभिक गद्य रचना में ऐतिहासिक कार्य किया। उन्होंने ‘प्रेम सागर’ और अन्य कई रचनाएं हिंदी साहित्य को दी।

यदि लल्लू लाल आत्महत्या कर लेते तो क्या वे इतने बड़े साहित्यकार बन पाते। यहां यह भी याद रखें कि कोई आत्महत्या करना चाहे तो उसके लिए हर जगह अंग्रेज महिला इंतजार नहीं कर रही होगी। इसलिए आत्महत्या की कोशिश मत करिए।  जिंदगी में एक रास्ता बंद होता है तो दूसरा खुल जाता है। मेरे परिचित के दोस्त क्या नहीं कर सकते थे। गाड़ी बेच देते,  मकान का कर्ज बाद में भी चुकाया जा सकता था। यदि मकान भी नहीं रहता तो क्या था? जिंदगी तो रहती, जिंदगी बड़ी चीज है, यह रहती तो और कई मकान और गाड़ियां खरीद सकते था। 

कुछ लोग इसलिए आत्महत्या कर लेते हैं कि बदनामी होगी, लोग उसके बारे में क्या कहेंगे, पहले तो इतनी शान से रहता था अब फटीचर हो गया। यह बात बिल्कुल  मत सोचिए, क्योंकि लोग तो फिर भी कहेंगे क्या बेवकूफ था। 

 जिंदगी बड़ी महत्वपूर्ण है, यह सिर्फ और सिर्फ एक बार मिलती है कोई पुनर्जन्म नहीं होता। कोई बैकुंठ या स्वर्ग जैसी व्यवस्था भी नहीं है। ये सभी कल्पना की बातें हैं।

जिदंगी में उतार चढ़ाव आते रहते हैं।  नौकरियां भी आती-जाती रहती हैं। अभी कोरोना के कारण स्थिति खराब है, लेकिन हमेशा खराब रहेगी, ऐसा नहीं है। कुछ नौकरियां खत्म हो रही हैं, नई नौकरियां भी  बनेंगी। पहले से भी अच्छी स्थिति आएगी।

अपने देश में कोई कमी नहीं है। जबर्दस्त संसाधन हैं। जरूरत का ढाई गुने से ज्यादा खाद्यान्न पैदा होता है। सबसे पहली जरूरत तो यही है। नौकरी घर बैठे नहीं मिलेगी, उसके लिए प्रयास करना होगा। अपना भी कोई काम कर सकते हैं। इस पर  सोचिए लेकिन आत्महत्या का विचार मत करिए। 



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