‘ गुस्से में श्रीराम’
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धरती अचानक जोरों से हिलने लगी, हिलने क्या डगमगाने लगी। बड़े-बड़े वृक्ष धराशायी होने लगे, वाहन आपस में टकराने लगे। क्या स्कूटर-मोटरसाइकिलें, कारें, बसें, ट्रक और रेलगाड़ियां भी खिलोनों की तरह पलटने लगे। भयंकर आंधियों के बीच हवाई जहाज पतंगों की तरह कलाबाजी खाकर गिरने लगे। नदियां और समुद्र हिलोरें लेने लगे। बड़ी-बड़ी अट्टलिकाएं धराशायी होने लगीं। चारों तरफ हाहाकार होने लगा। लग रहा जैसे अब कुछ नहीं बचेगा, सृष्टि खत्म होने वाली है। क्या होगा? हे, भगवान। लोग मंदिरों, गुरुद्वारों, मसजिदों और गिरिजाघरों की ओर भागने लगे। कहीं कोई आसरा नहीं दिख रहा। सरकारी मशीनरी हाथ में हाथ दिए असहाय खड़ी है। उसका कोई वश नहीं चल रहा। अब तो भगवान का ही आसरा है। सभी श्रद्धालु अपने-अपने भगवान से प्रार्थना करने लगे, प्रभु बचा लो। आपके अलावा कोई सहारा नहीं है। धार्मिक स्थलों की भी वही हाल जो अन्य भवनों का था, चारों तरफ तबाही ही तबाही। पढ़े- लिखे तिकड़मी लोग मंत्रियों और अफसरों को फोन मिलाने लगे शायद उनके बचाव के लिए कोई अलग रास्ता निकल आए। भगवान किसी की