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Showing posts from 2024

राम कथा पार्ट-7 उत्तरकांड

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  अयोध्या में श्रीराम सहित सीताजी और लक्ष्मण का बहुत ही जोरदार स्वागत किया   गया। पूरे नगर को भव्यता के साथ सजाया गया। घर-घर घी के दीपक जलाए ।   भरत और हनुमान आपस में मिले , फिर राम और भरत। राम के राज्याभिषेक के बाद वानरों और निषादराज को विदाई दी गई। सीताजी के दो पुत्र हुए , लव और कुश।   अयोध्या में प्रभु श्रीराम ने अनेक वर्षों तक राज किया। करोड़ों अश्वमेध यज्ञ किए। उनके राज में सभी नरनारी , पशु पक्षी तक बहुत सुखी थे। कोई बीमार नहीं होता था। अल्प आयु में किसी की मृत्यु नहीं होती थी। धन धान्य की कोई कमी नहीं थी।   वाल्मीकि रामायण के अनुसार अयोध्या में राज तिलक के बाद श्रीराम ने लोकनिंदा के भय से सीताजी का परित्याग कर दिया।   सीताजी वाल्मीकि के आश्रम में रहीं। यहीं पर उन्होंने लव-कुश नाम से दो पुत्रों को जन्म दिया।   कुछ सालों बाद जब राम द्वारा रायसूय यज्ञ किया गया तो बालक लव-कुश ने उनके घोड़े को बांध कर युद्ध में रामदल को पराजित किया। हनुमान समेत राम के भाइयों को बंदी बना लिया। सीताजी ने   यहां सभी को छुड़वाने के बाद अपने दोनों पुत्रों को राम के हवाले कर फिर एक बार अपने सतीत्व की परीक्ष

राम कथा पार्ट-6 लंकाकांड

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    फिर जामवंत के आदेश पर नल और नील दोनों भाइयों ने वानर सेना का सहयोग लेकर समुद्र पर सेतु का निर्माण किया। तत्पश्चात राम ने रामेश्वर की स्थापना कर भगवान शंकर की पूजा की। इसके बाद वानर सेना समेत समुद्र के पार उतरे। उन्होंने सुबैल पर्वत पर अपना डेरा जमाया। लंकापति रावण को जब इसके बारे में जानकारी मिली तो वह व्याकुल हो उठा।   रानी मंदोदरी ने उसे समझाया कि वह राम से बैर नहीं करें। उनकी पत्नी सीता   को वापस कर शांति समझौता कर लें। लेकिन अहंकार में चूर रावण ने पत्नी की भी   एक नहीं मानी। वह युद्ध के लिए उद्यत था। युद्ध से पहले राम ने अंगद को रावण के पास भेजकर एक बार और शांति समझौते का प्रयास किया। अंगद ने भी रावण को समझाया कि राम से दुश्मनी लेना उनके लिए उचित नहीं होगा। वह दांतों में तिनका दबाकर अपने परिवार के साथ जाकर सीताजी को ससम्मान वापस कर आए। वह उन्हें माफ कर देंगे। रावण ने अंगद की सलाह   नहीं मानी। उल्टे राम को उसके पिता बालि की हत्या का दोषी बताते हुए अंगद को अपनी ओर मिलाने का प्रयास किया। जब अंगद ने भी रावण को उसकी औकात बताई कि वह कौन सा रावण है ? एक रावण जो बलि को जीतने पाताल

राम कथा पार्ट-5 सुंदरकांड

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  हनुमान जब समुद्र को लांघ रहे थे तो रास्ते में देवताओं के कहने पर सुरसा ने   उनकी सामर्थ्य का परीक्षण किया। सुरसा ने कहा कि वह उन्हें खाना चाहती है , कई दिनों से भूखी है। हनुमानजी ने विनती की , वह राम का कार्य करके लंका से लौट आएं तब ख्रा लेना। लेकिन वह नहीं मानी। पहले उसने चार योजन का अपना मुख बनाया। तब हनुमानजी ने उससे दूना आकार कर लिया। सुरसा ने और बड़ा मुंह बनाया तो हनुमानजी ने 16 योजन का शरीर कर लिया। फिर सुरसा ने 32 योजन का मुंह बनाया । फिर हनुमान बहुत ही छोटा रूप धारण कर उसके मुंह में घुसकर बाहर निकल आए। और कहा- लो माता आपने मेरा भोजन कर लिया। इस पर सुरसा ने हनुमान की चतुराई से प्रसन्न होकर रामकाज पूर्ण करने के लिए   आशीर्वाद दिया। मार्ग में छाया पकड़ने वाली एक राक्षसी मिली जो आकाश में उड़ते जीवों को समुद्र में गिराकर खा जाती थी। हनुमानजी ने   उसे मार दिया। इसके बाद उन्होंने बहुत छोटा रूप धारण कर लंका में प्रवेश किया तो लंकिनी नाम की राक्षसी ने पकड़ लिया। हनुमान ने उसे बहुत जोर से घूसा मारा। वह धरती पर गिर पड़ी। भयभीत होकर हाथ जोड़ते हुए बोली , ब्रह्माजी ने जब रावण को वरदान दिय

राम कथा पार्ट-4 किष्किंधाकांड

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  सीता की खोज करते-करते वह ऋष्यमूक पर्वत की ओर   आए। इस पर्वत पर सुग्रीव अपने मंत्रियों के साथ रहता था। इस आशंका में कहीं उसके भाई बालि ने तो उन्हें मारने के लिए इन्हें नहीं भेजा , उसने हनुमान को जानकारी लेने भेजा। हनुमान ने ब्राह्मण का रूप धारण कर राम और लक्ष्मण से उनके बारे में जानकारी ली। जब यह विश्वास हो गया कि इन्हें बालि ने नहीं भेजा , यह तो भगवान राम और उनके भाई लक्ष्मण हैं। हनुमान प्रभु श्रीराम के चरणों में गिर पड़े।   हनुमान ने राम और लक्ष्मण को सुग्रीव के पास ले जाकर उनसे मित्रता करा दी। राम ने सीताजी के अपहरण के बारे में बताया तो सुग्रीव ने कहा कि एक बार जब वह अपने मंत्रियों के साथ विचार कर रहे थे , तब उन्होंने सीताजी को एक राक्षस द्वारा आकाशमार्ग से ले जाते हुए देखा। उन्होंने राम-राम कहते हुए ऊपर से एक वस्त्र भी गिराया। सुग्रीव ने वह वस्त्र लाकर दिखाया तो राम ने उसे पहचान कर अपनी छाती से लगा लिया। सुग्रीव ने उन्हें आश्वस्त किया , वह उनकी पूरी मदद   करेंगे और सीताजी को खोज लेंगे।   सुग्रीव ने बड़े भाई बालि द्वारा अपने ऊपर किए अत्याचारों के बारे में बताया कि किस प्रकार उसक

राम कथा पार्ट-3 अरण्यकांड

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  एक बार प्रभु श्रीराम ने एक मनोहर स्थान पर बैठकर सीताजी के लिए पुष्पों के गहने बनाए फिर पहनाए। तब इंद्र के पुत्र जयंत ने काक का रूप रख भगवान राम के बल की परीक्षा लेनी चाही। उसने सीताजी के पैरों में चोंच मारी। खून बहने लगा तो श्रीरामजी ने उसे मारने के लिए तीर चला दिया। जयंत मारा-मारा तीनों लोकों में गया। ब्र्ह्मा जी और अन्य देवताओं से शरण मांगी लेकिन कहीं पर उसे मदद नहीं मिली। यहां तक कि इंद्र ने भी उसे भगा दिया। फिर वह नारद जी से मिला तो उनकी सलाह पर   प्रभु राम की शरण में आया तभी बच सका। राम ने उसकी एक आंख निकालकर जान बख्श दी।   शंकरजी पार्वती से कह रहे हैं कि प्रभु श्रीराम के बैरी को कहीं कोई आश्रय नहीं दे सकता। कुछ समय चित्रकूट में रहने के बाद राम , सीता और लक्ष्मण अत्रि ऋषि के आश्रम में पहुंचे। अत्रि ने राम की स्तुति की। यहां ऋषि की पत्नी अनुसुइया ने सीता को पतिव्रत धर्म के बारे में समझाया। उन्होंने महिलाओं के प्रकार बताए। और श्रेष्ठ पतिव्रता नारी उसे बताया जो अपने पति के अलावा किसी अन्य के बारे में स्वप्न में भी विचार नहीं करती , पति की सेवा में ही लगी रहती है।   राम ने आगे प्

राम कथा पार्ट-2 अयोध्याकांड

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  शादी के बाद जब राज परिवार में हंसीखुशी का माहौल था , दशरथ बूढ़े हो चले थे , एक दिन गुरू वशिष्ठ ने   राजा को राम का राज्याभिषेक करने की सलाह दी तो उन्होंने मंत्रियों को बुलाकर तुरंत तैयारियों के लिए आदेश कर दिए। राज्याभिषेक की तैयारियां की जाने लगीं। नगर को सजाया जाने लगा। राम और सीता के शुभ अंग फड़कने लगे तो दोनों ने एक दूसरे से कहा , लगता है कि भरत आ रहे हैं , इसलिए ऐसा हो रहा है।   लेकिन देवता गण विचलित होने लगे। आपस में चर्चा करने लगे , किसी तरह राम राजगद्दी नहीं संभालें। नहीं तो सब गड़बड़ हो जाएगा।   उन्हें राज्य से निकाल दिया जाए , तभी सही   रहेगा। सभी देवताओं ने मिलकर सरस्वती से प्रार्थना की कि आप ही कोई उपाय करिए। तब सरस्वती ने अयोध्या नगरी में जाकर   कैकई की   दासी मंथरा की मति फेर दी।   मंथरा दौड़ी-दौड़ी उदास होकर   रानी कैकई के पास गई।   उसे समझाया कि राज्य तो राम का हो जाएगा ,  कौशल्या राजमाता बन जाएगी। तुझे और तेरे बेटे को क्या मिलेगा ? उसने तमाम सौतों की कहानियां बताकर कहा कि तेरे को नौकरानी बनकर रहना होगा और   भरत को जेल में डाल दिया जाएगा। लक्ष्मण भाई के साथ सेवक के रू