मन की बात
डा. सुरेंद्र सिंह मन बेलगाम घोड़ा की तरह है, पागल हाथी की तरह है। मन पवन से भी तेज चलायमान है, पानी से भी पतला है। सर्वगम्य है, जहां कोई नहीं पहुंच सकता, वहां यह पहुंच सकता है। यदि मन के साथ चले तो यह अंधेरे कुएं में गिरा देगा। इसलिए मन की लगाम कस कर रखो। जिसका मन पर वश, वही सर्वस्व। शास्त्रों की इस तरह की न जाने कितनी बातें सुन-सुन कर कान पक गए हैं और मन थक गया हैं। अब ‘मन की बात‘ हो रही है। देश के मुखिया के मन की बात है तो इसमें जरूर कोई तथ्य की बात होगी। मैं ठहरा धर्म भीरू, शास्त्रों को सही मानूं या ‘मन की बात’। यह ‘मन की बात’ है या ‘मन के लड्डूओं की बात’? मन में लड्डू कभी फूटते हैं और फूटकर ही रह जाते हैं, इससे आगे कोई क्रिया नहीं होती। मन सपने की तरह है, इसमें कुछ भी संभव है। यह राजा को रंक बन सकता है और रंक को राजा। इससे कारू का खजाना मिल सकता है, बदन के कपड़े भी उतर सकते हैं, ‘हर्र लगे न फिटकिरी, रंग चोखा ही चोखा’। मन आश्वस्ति देता है। बेसहारों का सहारा है। यदि मन नहीं हो तो आदमी पागल हो जाए। यह मन ही तो है जो सब कुछ ला सकता है। यह दिमाग और शरीर में संतुलन बनाकर रखता है।