नेताजी हैं न (५)

     
        डा. सुरेंद्र सिंह
‘टिनन...टिनन....’। नेताजी ने फोन कान पर लगाया-‘‘हेलो, क्या मंत्रीजी आ रहे हैं? कब आ रहे हैं’’, -‘‘कल सुबह ही’’। -‘‘इतनी जल्दी? कुछ समय तो दिया होता।’’ -‘‘अर्जेट है, बालाजी के दर्शन को जा रहे हैं आर्शीवाद लेने। उन्हीं की कृपा से यहां तक पहुंचे हैं, उन्हें कैसे भूल सकते हैं। रास्ते में थोड़ी देर को यहां आराम को रुकेंगे’’। -वह तो ठीक है, लेकिन स्वागत सत्कार तो होना ही चाहिए। -‘‘वह क्यों नहीं और काहे फोन लगाया?’’  -‘‘कितने आदमियों का इंतजाम करना है’’। -‘‘पांच सौ तो हो ही जाएं, कुछ ठीक-ठाक मामला जम जाए’’- ‘‘बस, हो जाएंगे’’। फोन बंद कर कार्यकर्ताओं से- ‘‘भोलेराम, सुखबीर सिंह, राधेश्याम, यूसुफ, धनी सिंह तुम अपने-अपने मोहल्ले में जाओ, लोगों से  मोहल्लों की समस्याएं सुलझवाने के लिए आवेदन लिखवाओ।  उन पर लोगों के ज्यादा हस्ताक्षर या अंगूठा निशानी लगवाओ, उन्हें बताओ, अधिकारियों के चक्कर लगाते-लगाते बहुत हो गया। अब मंत्रीजी आ रहे हैं, उनसे आदेश करा देंगे। इससे अच्छा मौका फिर नहीं मिलेगा। दर्शन के दर्शन के दर्शन और काम का ‘काम दोनों हाथ लड्डू’। ज्यादा से ज्यादा लोग लेकर चलो जिससे इंप्रेशन बन सके। और हां ध्यान रहे कि पार्टी के दूसरे गुट को इसकी सपने में खबर नही लगे। मंत्रीजी से कह देंगे, वे लोग आपको कुछ नहीं समझते, इसलिए नहीं आए, दलाली में लगे रहते हैं, पार्टी के काम नहीं आते। ‘सांप मर जाएगा, लाठी भी न टूटेगी’’।  थानेदार से कहो, फूलमालाएं और बुके का इंतजाम करे। साला... बहुत रिश्वत खाता है। बता देना नेताजी ने कहा है, मंत्रीजी आ रहे हैं, कोई कमी नहीं रहनी चाहिए।’’। फूल मालाएं हो गई, भीड़ हो गई। अब रह गए भीड़ के लिए वाहन और प्रेस। एक बिल्डर और ठेकेदार काम के लिए कई दिनों से चक्कर लगा रहे हैं, उनसे कह दो-दो बसों का इंतजाम करें। मंत्रीजी से काम कराएंगे। प्रेसवालों को मैं फोन कर दंूगा। इनके लिए और कुछ करने की जरूरत नहीं।  
सर्किट हाउस पर सुबह ‘‘जिंदाबाद जिंदाबाद’’ ‘‘मंत्रीजी जिंदाबाद’’के नारे गूंज रहे हैं, नेताजी का कद छोटा है, कैमरों की फ्लैश के घेरे में नही आ पा रहे, झट से वह कुछ कार्यकर्ता के कंधों पर बैठ जाते हैं। फिर उन्हें धमकाने के अंदाज में इशारे से कहते हैं, ‘‘सब मंत्रीजी के ही नारे लगाते रहोगे, कुछ अपने भी लगाओगे, साले.. काम तो मैं ही आऊंगा’’। ‘‘मंत्री जी जिदाबाद, विषमता पार्टी जिंंदाबाद, अध्यक्षजी जिंदाबाद..’’। अखबारों और टीवी में मंत्रीजी का भव्य स्वागत छा जाता है। मंत्रीजी खुश। मोहल्ले वाले खुश कि मंत्रीजी ने आश्वासन दे दिया है। थानेदार खुश कि नेताजी ने उनसे काम ले लिया है, अब वे काम आते रहेंगे। बिल्डर और ठेकेदार भी खुश। नेताजी भी खुश। सब खुश ही खुश।


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