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Showing posts from June, 2020

पाकिस्तान में फटा पजम्मा

                                                               अपने यहां हर साल आंधी- तूफान से जबर्दस्त तबाही होती है, सैकड़ों जानें जाती हैं।  आए दिन पुल, प्लाई ओवर गिरते रहते हैं, सड़कें धंस जाती हैं। उनमें कितने ही निर्दोष दम तोड़ जाते हैं।  ऐसी खबरें आई-गई होती रहती हंै। लेकिन दो महीने पहले आंधी से पाकिस्तान के करतारपुर साहिब गुरुद्वारे के आठ में से चार गुंबद उड़कर क्या गिरे, ऐसा बवाल मचा मानो प्रलय आ गई हो-‘‘ ये देखो पाकिस्तान ने घटिया निर्माण कराया है’’। ‘‘जानबूझकर जरूर इसमें साजिश की होगी। हम तो पहले ही कह  रहे थे पाकिस्तान कोई बढिृया काम कर ही नहीं सकता’’।  कोई उन्हें क्या समझाए-भाई आप्टीकल फाइबर के थे गुंबद। सीमेंट के बने होते तो नहीं उड़ पाते।  सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई। टीवी चैनल भी टर्राने लगे। सामाजिक संस्थाएं प्रदर्शन करने लगी-‘‘ पाकिस्तान में तो ठीक से गुरुद्वारे के गुंबद भी नहीं बन सकते’’। ईद पर पाकिस्तान ने कुछ शर्तों के साथ मस्जिदों में नमाज अदा करने की इजाजत  दे दी तो टीवी चिल्लाने लगे-‘‘अब देखो पाकिस्तान को कोई नहीं बचा सकता। सरकार अंधी हो गई है, उसे कुछ द

कितनी अनामिका

                                                                  गौडा की अनामिका शुक्ला एक रात सपने में आ गई। मैली कुचैली साड़ी पहने। उदास, आंखों में गड्डे। बहुत ही परेशान हाल। गोद में एक हाथ से बच्ची थामे, दूसरे में शेक्षिक अभिलेखों की मूल प्रतियां। बिना कुछ कहे ही उसकी आंखें बोल रही थीं-‘‘अंकल क्या ये सर्टीफिकेट मेरे किसी काम आएंगे’’? बाबली को कौन बताए? परमार्थ काम आना क्या कोई कम है? तू न सही तेरे नाम का दूसरी 25 तो लाभ उठा रही हैं? वे भी महिलाएं ही हैं। तेरे ही नाम और पढ़ाई का ही खा रही हैं। संतोष कर। यह अनामिकाओं का देश हैं। तू अकेली नहीं है, और बहुत हैं। महिलाओं में ही नहीं पुरुषों में भी अनामिका हैं। शिक्षा जैसे पवित्र जगत को छोड़ो, यहां तो सैकड़ों अनामिका होंगी। नेताओं, बदमाशों और डाक्टरों में भी अनामिका हैं। डकैती कोई डालता है और मुकदमे नाम दूसरों के मढ़ दिए जाते हैं। वर्षों पहलेआगरा में एक ‘अनामिका’ डाक्टर ने असली डाक्टर से शादी कर अपना नर्सिंग होम खोल लिया? खुलासा तब हुआ जबकि वह डाक्टरों की जानी मानी संस्था के पदाधिकारी भी बन बैठे। अनामिका के बल पर कई प्रोफेसर से लेकर केंद्रीय म

आसान नहीं चीन का बहिष्कार

                                                   चीन के सामानों के प्रति नफरत भारत में यू तो  पिछले कई सालों से है। गलवान घाटी में चीनी सेना से हुई झड़प में बीस भारतीय सैनिकों के मारे जाने के बाद यह और बढ़ गई है। अब तो सोशल मीडिया पर चीनी सामानों के बहिष्कार की अपीलों की बाढ़ सी आ गई है। बहिष्कार, बहिष्कार और बहिष्कार।  चीन के खिलाफ जिससे कुछ नहीं पड़ रहा है, वह बहिष्कार की अपील कर रहा है। चीन के कुछ सस्ते सामानों की होली भी जलाई जा रही है। बेशक चीन के सामान का बहिष्कार होना चाहिए लेकिन यह इतना आसान भी नहीं है। चीन से हर साल अरबों डालरों का आयात होता है। इनमें बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रानिक मशीनरी, न्यूक्लीयर  मशीनरी, आर्गेनिक कैमिकल, प्लास्टिक आइटम, फर्टीलाइजर, आप्टीकल एंड मेडिकल उपकरण, वाहनों के कलपुर्जे, लोहे और स्टील के सामान और अन्य कैमिकल्स आदि शामिल हंैं।  जूते आते हैं और कांच का सामान भी। इन सामानों से भारतीय बाजार भरे पड़े हैं। इनका भुगतान हो चुका है, सरकार भी कर ले चुकी है। अब यदि इनका बहिष्कार किया जाए तो नुकसान किसका होगा? भारतीयों का ही न। क्या कोई आंदोलनकारी और सरकार उसकी भरपाई

अमेरिका से सबक

                                                             विश्व की सबसे बड़ी ताकत अमेरिका आजकल कई मुश्किलों से घिरा है। एक ओर जहां कोरोना को लेकर भयावह हालात हैं तो दूसरी ओर दो अश्वेत नागरिक जार्ज फ्लायड और रशार्ड ब्रूक्स की मृत्यु से नस्लवाद के खिलाफ भयंकर जनाक्रोश है। ये मामले दुनिया भर के लिए सबक हैं, हमारे देश के लिए भी। समय रहते संभल जाना चाहिए क्योंकि अब दुनिया तेजी से बदल रही है। किसी  एक देश की अमानवीयता वहीं तक सीमित रहे यह हमेशा संभव नहीं है, उसकी प्रतिक्रिया दुनिया भर में हो सकती है। यह इस बात का संकेत है कि विश्व स्तर पर अब मानवतावादी एक नई समझ विकसित हो रही है। पहले जार्ज फ्लायड को लेते हैं, उसका कसूर यह था कि उसने बीस डालर का नकली नोट एक दुकानदार को चलाने की कोशिश की। वह पकड़ा गया। पुलिस अधिकारी उसे घसीटकर ले गया और सड़क पर गिराकर उसकी गर्दन परअपना घुटना रख दिया। वह चिल्लाता रहा, उसने यह भी कहा कि उसका दम घुट रहा है लेकिन पुलिस अधिकारी को दया नहीं आई। फलत: उसकी अस्पताल में मृत्यु हो गई। वह अपराधी था लेकिन उसका कसूूर इतना नहीं था कि उसे मृत्यु दे दी जाए। मामले ने इतना तूल

बहती गंगा में धोए हाथ

                                                        यूं तो कोरोना युग में देश ने बहुत कुछ खोया है, इंसान, धन संपत्ति, खेती-बाड़ी, नौकरी-पेशा, मान-मर्यादा। लेकिन इसके नाम एक उपलब्धि भी है, - कोरोना वारियर्स सम्मान । इतना सम्मान आजादी से अब तक कभी नहीं बंटा। किसी दशक में नहीं, किसी आपदा में नहीं। सत्ताएं आई- गई। लोग बने-बिगड़े। इस तरह कभी किसी  ने ध्यान नहीं दिया।   आसमान से लेकर धरती तक, समुद्र से लेकर गली मोहल्लों तक में सम्मान ही सम्मान रहा। दिन में सम्मान और रात्रि में भी सम्मान। जिन्होंने कुछ किया, उनकी छोड़ो, उनके लिए काम ही सम्मान है। जिन्होंने कुछ नहीं किया,  सालों से घर बैठे लोग भी सम्मान पा गए। सोशल मीडिया पर सम्मान पाने वालों की बाढ़ सी आ गई। जिसे दिखो, वही सम्मान पत्र  चमका रहा है, - भाई साहब हमारे पास भी  है। कुछ लोग कई-कई सम्मान पा गए। सम्मान पाने वाले थक गए होंगे,  अब रहने दो भाई बहुत है, लेकिन देने वाले नहीं। सम्मान देने के लिए उनका हाथ बना‘धना भगत का खेत’ । ऐसी-ऐसी संस्थाएं मैदान में आ गई, जिनका पहले कोई नाम लेवा न पानी देवा था। विपदा के मारे लोगों के लिए बहुतों ने बहुत

हाय री हथिनी

                                                     यूं तो लोग कीड़े मकोड़े की तरह मरते रहते हैं, कौन किसे पूछ रहा है? इन्हीं दिनों उत्तर प्रदेश के कासगंज शहर में दो महिलाएं तड़प-तड़प कर मर गईं। वे भी  गर्भवती थीं। अस्पतालों ने दरवाजे के अंदर तक नहीं घुसने दिया। किसी की सहानुभूति नहीं जागी। केरल की गर्भवती हथिनी हथिनी थी, इंसान नहीं, उसकी मौत के लिए सहानुभूति की जो लहर है वह अरबों में एकाध को वह भी कभी-कभी  मिलती है। नेताओं की आंखों से आंसुओं की धारा बह रही है, हाय री हथिनी। मरने को तो इसके एकाध दिन बाद ही  हथिनी की तरह मुंह में बम फटने से एक गाय भी मरी।  लेकिन वह हरियाणा की थी,  वह गौ माता थी। माता होना एक बात है और हथिनी होना अलग बात। हरियाणा में मरना एक बात है और केरल में दूसरी बात।  ज्योतिष में काल और स्थान का बड़ा महत्व है। ज्योतिषी बताते हैं कि अमुक नक्षत्र में मरने पर सीधे बैकुंठ में जाते हैं। हथिनी शायद ऐसे ही विरले नक्षत्र में मरी। यह भी कह सकते हैं, वह अपना नाम भाग्य के साथ ऊपर से लिखाकर लाई थी। हथिनी बहुत ही भाग्यशाली थी, जिंदा रहती तो शायद उसे कोई नहीं पूछता, मरने के बाद वह अमर

माया मिली न राम

                                                                     -डा. सुरेंद्र सिंह हमारे सम्मानित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब पहले पहल 24 मार्च को लौकडाउन की घोषणा की थी तो लगा था कि अब कोरोना नहीं बचेगा। चाहे कहीं कुछ कर ले लेकिन वह भारत का बाल बांका नहीं कर सकता। आदेश ही ऐसा था एक साथ 21 दिन का लोकडाउन।  इतने दिन में उसका चक्र टूट जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन से लेकर हर किसी ने उनके कदम की तारीफ की। यहां तक कि जो विपक्षी अब उंगली उठा रहे हैं, वे भी तब समर्थन में थे।  लौकडाउन का सीधा सा गणित था, जब सभी घरों के अंदर रहेंगे तो कोरोना जहां की तहां थम जाएगा। लेकिन कोरोना नहीं थमा। एक के बाद दूसरा, दूसरे के बाद तीसरा और चौथा लौकडाउन लगाना पड़ा। अब अनलौकडाउन के नाम से पांचवां लौकडाउन चल रहा है, जिसमें काफी कुछ प्रतिबंध हैं, कोरोना थमने का नाम नहीं ले रहा है। अब तक करीब ढाई लाख लोग चपेट में आ चुके हैं। दुनिया में भारत पांचवे स्थान पर है। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप का कहना है कि चीन और भारत जांच कम कर रहे हैं, यदि वे सही जांच कराएं तो उनके यहां से भी  ज्यादा केस  निकलेंगे। उनके बया

अमेरिका में गृह युद्ध क्यों?

                                                      -डा. सुरेंद्र सिंह   अमेरिका में एक अश्वेत नागरिक की हत्या के बाद उपजा जनआक्रोश आजकल दुनिया भर मेंं सबसे ज्यादा सुर्खियों में है। सौ से ज्यादा साल बाद आई कोरोना महामारी जिसने पूरे विश्व को हिला दिया है, पौने चार लाख से ज्यादा  जिसमें मर चुके हैं, अभी और कितने इसकी चपेट में आएंगे, इसर्की ंचता को भी इसने पीछे धकेल दिया है। सारी दुनिया  टकटकी लगाए हैं अमेरिका में अब क्या होगा? इसे  गृहयुद्ध की संज्ञा दी जा रही है। आखिर यह गृहयुद्ध क्यों है? इसके मूल में अश्वेत नागरिक जार्ज फ्लायड की पुलिस अभिरक्षा में मृत्यु को बताया जा रहा है। जार्ज फ्लायड का कसूर यह था कि उसने एक दुकानदार को बीस डालर का नकली नोट चलाने का प्रयास किया। पुलिस ने उसे पकड़ लिया और सड़क पर गिराकर उसे बेरहमी से पीटा गया। उसकी गर्दन पर पुलिस अधिकारी ने अपना घुटना रख दिया। वह चिल्लाता रहा कि उसे सांस लेने में दिक्कत हो रही है। मौके पर मौजूद लोग भी उसे छोड़ने की अपील करते रहे लेकिन उस पर दया नहीं आई। अस्पताल में उसकी मौत हो गई। यह वीडियो पब्लिक में वायरल हो गया। फिर क्या था, देखत