पाकिस्तान में फटा पजम्मा
अपने यहां हर साल आंधी- तूफान से जबर्दस्त तबाही होती है, सैकड़ों जानें जाती हैं। आए दिन पुल, प्लाई ओवर गिरते रहते हैं, सड़कें धंस जाती हैं। उनमें कितने ही निर्दोष दम तोड़ जाते हैं। ऐसी खबरें आई-गई होती रहती हंै। लेकिन दो महीने पहले आंधी से पाकिस्तान के करतारपुर साहिब गुरुद्वारे के आठ में से चार गुंबद उड़कर क्या गिरे, ऐसा बवाल मचा मानो प्रलय आ गई हो-‘‘ ये देखो पाकिस्तान ने घटिया निर्माण कराया है’’। ‘‘जानबूझकर जरूर इसमें साजिश की होगी। हम तो पहले ही कह रहे थे पाकिस्तान कोई बढिृया काम कर ही नहीं सकता’’। कोई उन्हें क्या समझाए-भाई आप्टीकल फाइबर के थे गुंबद। सीमेंट के बने होते तो नहीं उड़ पाते। सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई। टीवी चैनल भी टर्राने लगे। सामाजिक संस्थाएं प्रदर्शन करने लगी-‘‘ पाकिस्तान में तो ठीक से गुरुद्वारे के गुंबद भी नहीं बन सकते’’।
ईद पर पाकिस्तान ने कुछ शर्तों के साथ मस्जिदों में नमाज अदा करने की इजाजत दे दी तो टीवी चिल्लाने लगे-‘‘अब देखो पाकिस्तान को कोई नहीं बचा सकता। सरकार अंधी हो गई है, उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा है, सोशल डिस्टेसिंग की परवाह नहीं की जा रही है’’। ‘‘ऐसे में कोरोना अब पूरे पाकिस्तान को चबा जाएगा। अब तो खुदा ही उसका मालिक है’’। नमाज के दिन घंटों कवरेज की गई-‘‘ देखो कैसे आपस में गले मिल रहे हैं। किसी को कोई परवाह नहीं है’’।
कोरोना के संभावित मरीजों और मौतों को देखते हुए हर देश ने अपने-अपने यहां इंतजाम किए हैं। कई देशों ने कब्रिस्तानों में सामूहिक शव दफनाने के इंतजाम किए। ऐसे में पाकिस्तान में नए कब्रिस्तान की तलाश की खबर आई को भाई लोगों ने लपक कर उसे सुर्खियों में बदल दिया- ‘‘अब पाकिस्तान कब्रिस्तान बनने जा रहा है‘‘? एक ही बात को बार-बार ‘‘अब पाकिस्तान कब्रिस्तान बनने जा रहा है’’, ‘‘अब पाकिस्तान कब्रिस्तान बनने जा रहा है’’। ‘‘अब उसे कोई नहीं बचा सकता’’। ‘‘कब्रिस्तानों की तलाश शुरू हो गई है’’। ‘‘इमरान सरकार को इसका आभास हो गया है। इसके लिए पहले से कब्रिस्तान तलाशे जा रहे हैं’’। प्रस्तावित कब्रिस्तान के फोटो बार-बार दिखाए जाने लगे।
सभी विकासशील देशों को दूसरे देशों से मदद की जरूरत पड़ती है। हमारे देश को भी। लेकिन पाकिस्तान ने किसी से कर्ज की मांग कर ली तो हायतौबा मच जाती है। ‘‘देखो पाकिस्तान भीख मांग रहा है’’। ‘‘कटोरा लेकर दर-दर भटक रहा है’’। ‘‘उसे कोई भीख भी नहीं दे रहा है’’। ‘‘हाय, बेचारे की क्या हालत हो गई है’’। ‘‘अब पाकिस्तान नहीं बचेगा, भूखों मरना पड़ेगा’’। ‘‘पाकिस्तान के पास है ही क्या, वह तो दूसरों पर निर्भर है’’।‘‘ बेचारे के पास खाने के लाले पड़े है’’ं।
करीब छह महीने पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ किसी संगठन ने पाकिस्तान में प्रदर्शन कर दिया को भारतीय मीडिया में इमरान सरकार की उलटी गिनती शुरू हो गई-‘‘ अब इमरान को कोई नहीं बचा सकता है। सेना उसके खिलाफ पहले से है’’। ‘‘ पाकिस्तान में फिर से सैन्य शासन आ सकता है’’। ‘‘इमरान का तख्ता पलट होने जा रहा है। अब कुछ ही देर की बात है’’।‘‘ इमरान सरकार जाने ही वाली है’’। कब-कब पाकिस्तान में सैन्य शासन रहा, इसका विवरण दिया जाने लगा।
आजकल अपने यहां अपने देश की कम पाकिस्तान की ज्यादा चिंता की जाने लगी है। अपनी आंख का टेंट नहीं दिख रहा दूसरे की फुली की खिल्ली उड़ाए जा रहे हैं। गनीमत है मीडिया में अभी तक कोई पाकिस्तान में फटा पजम्मा पहने शायद नहीं दिखाई दिया वरना वह सुर्खियों में आ जाता?‘‘ देखो अब पाकिस्तान के पास अपने नागरिकों के लिए नए पजम्मा भी नहीं हैं’’। ‘‘नागरिक फटे पजम्मा पहन कर गुजारा कर रहे हैं’’। फटे पजम्मा वाले को बार-बार टीवी पर प्रदर्शित कर बताया जाता कि पाकिस्तान का तो पजम्मा फट गया। अब उसके बाजे बज गए।‘‘ जिसके पास अपने नागरिकों के लिए साजे पजम्मा नहीं है, उसके पास खाने के लिए क्या होगा’’? ‘‘हिदुस्तान से लड़ने चला है, नागरिकों के लिए पजम्मा तक नहीं है। शर्म करो, पाकिस्तान पहले पजम्मा तो बनवा लो। है.. है.. है..’’।
कभी-कभी भ्रम होता है, हम पाकिस्तान में या हिंदुस्तान में? पाकिस्तान से हमारी दोस्ती है या दुश्मनी? अपने यहां ज्यादा चिंता उसी की जाती है, जो अपना खास हो। दुश्मन की ओर से पीठ फेर लेते हैं। अपने राजनाथ सिंह जी को ही ले लीजिए रूस में गए। तीन दिन रहे, हथियारों की खूब सौदेबाजी की, खूब शान से सेना की सलामी ली लेकिन दुश्मन चीनी समकक्ष से नहीं मिले तो नहीं मिले। उन्होंने जाने से पहले ही घोषणा कर दी थी। ये होती है दुश्मनी।
Comments
Post a Comment