हाय री हथिनी

                           
                        
यूं तो लोग कीड़े मकोड़े की तरह मरते रहते हैं, कौन किसे पूछ रहा है? इन्हीं दिनों उत्तर प्रदेश के कासगंज शहर में दो महिलाएं तड़प-तड़प कर मर गईं। वे भी  गर्भवती थीं। अस्पतालों ने दरवाजे के अंदर तक नहीं घुसने दिया। किसी की सहानुभूति नहीं जागी। केरल की गर्भवती हथिनी हथिनी थी, इंसान नहीं, उसकी मौत के लिए सहानुभूति की जो लहर है वह अरबों में एकाध को वह भी कभी-कभी  मिलती है। नेताओं की आंखों से आंसुओं की धारा बह रही है, हाय री हथिनी।
मरने को तो इसके एकाध दिन बाद ही  हथिनी की तरह मुंह में बम फटने से एक गाय भी मरी।  लेकिन वह हरियाणा की थी,  वह गौ माता थी। माता होना एक बात है और हथिनी होना अलग बात। हरियाणा में मरना एक बात है और केरल में दूसरी बात।  ज्योतिष में काल और स्थान का बड़ा महत्व है। ज्योतिषी बताते हैं कि अमुक नक्षत्र में मरने पर सीधे बैकुंठ में जाते हैं। हथिनी शायद ऐसे ही विरले नक्षत्र में मरी। यह भी कह सकते हैं, वह अपना नाम भाग्य के साथ ऊपर से लिखाकर लाई थी।
हथिनी बहुत ही भाग्यशाली थी, जिंदा रहती तो शायद उसे कोई नहीं पूछता, मरने के बाद वह अमर हो गई। टीवी चैनल काफी देर-देर तक उसकी पुरानी झलकियां दिखाते रहते हैं-‘‘देखिए पानी में कैसे बिलबिला रही है, कभी इधर जाती है, कभी उधर। पानी में  बाढ़ लगा दी है, बेचारी को कहीं जाने नहीं दिया जा रहा, अच्छी तरह मरने भी नहीं जा रहा। उसे बचाया जा सकता था, आखिर क्या कर रही थी ‘निकम्मी’ राज्य सरकार ’’? पत्रकार और फोटोग्राफरों की टीमें दौड़ रही हैं, उसकी कोई पुरानी फुटेज मिल जाए। ढूंढ़-ढूंढ़ कर प्रत्यक्षदर्शियों से बात की जा रही है। जिसने उस वक्त हथिनी को देखा, वह तो वीआईपी बन गया है। जिसने हथिनी के बारे में सुना, उसकी भी पूछ हो रही है। भावनाएं उमड़ रही हंै। एक डीएसपी ने हथिनी पर मार्मिक कविता लिखी है। वैसे पुलिस वाले बिना डंडे और गालीगलौज के किसी से सीधे मुंह बात नहीं करते पर अब डीएसपी साहब सुर्खियों में आ गए हैं। कोई हथिनी की मौत की सीबीआई जांच की मांग कर प्रसिद्धि पा रहा है। कोई उसके दोषियों को फांसी पर चढ़वाने की मांग कर अखबारों में स्थान पा रहा है। कोई चाहे तो हथिनी पर किताब लिख सकता है। फिल्म भी बनाई जा सकती है। खूब चलेगी।
 ऐसे अमरत्व के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते। बड़े-बड़े स्मारक बनवाते हैं। दान पुण्य करते हैं। मेला-ठेला लगवाते हैं। नेता लोग आगजनी करवा देते हैं, तोड़फोड़,  रास्ता जाम करवाते हैं। संसद में हंगामा, मारपीट करने से नहीं चूकते। गालीगलौज की भाषा में बात करना आम बात है। इसके बिना तो मीडिया में कोई टके के भाव नहीं लेता। एक नेताजी प्रदर्शनों में अपने दो बेटों को साथ लेकर चलते थे, जब भी फोटोग्राफर केमरा चमकाते, बेटे उन्हें अपने कंधों पर उठा लेते, इससे वह फोटो में छा जाते। इसी तरह छपते-छपाते आजकल वह मंत्री हैं।
कुछ लोग सोच रहे होंगे, काश वे हथिनी होते? केरल वाली हथिनी। दुनिया भर में नाम हो जाता। घर वाले और अड़ोस-पड़ोस के लोग जो अभी तक उसे निखट्टू समझते हैं, वे भी याद रखते। उसकी नजीर  देते, हमारा पड़ोसी था। मरना और मारना तो लगा ही रहता है, हरेक को एक दिन मरना ही है, चाहे आज मरे या फिर कभी।
 बाग की रखवाली के लिए जिन्होंने अनन्नास के फल में देशी बम यानी पटाखा लगाया, उनकी तो शामत आ गई। मामले की गंभीरता को देखते हुए कई के खिलाफ एफआईआर हुई है। एक गिरफ्तार है। कई और भागे हुए हैं, कानून के हाथ बहुत लंबे हैं। वे भी पकड़े ही जाएंगे। कितने दिन के लिए नपेंगे। भगवान जाने? इससे तो अच्छा था बाग को उजड़ जाने देते। 
अब उन किसान और बगीचे वालों को सावधान हो जाना चाहिए जो अपनी फसल को जंगली जानवरों से बचाने के लिए कई-कई तरह के इंतजाम करते हैं। कंटीले तारों की बाढ़ लगाकर उनमें करंट दौड़ा देते हैं। एकाध बार उनकी चपेट में आ कर इंसान भी मरे हैं। नीलगायों को मारने के लिए गोलियां चलाते हैं। हिमाचल प्रदेश में बंदर गोलियों से भूनकर मारे गए हैं। यदि उनमें मरने वाला कोई भाग्यशाली जानवर रहा तो शामत आ जाएगी। जेल की चक्की पीसते-पीसते मर जाओगे। इसलिए मान जाओ, फसल जाए तो जाए, अपनी जान बची रहे। जान है तो जहान है।
मरना और मारना सब विधाता के हाथ है। हर किसी के मरने के पीछे भी कुछ न कुछ हेतु होते हैं। बेचारे क्रोंच पक्षी के मैथुन करते जोड़े को बहेलिये ने न मारा होता तो न महर्षि वाल्मीकि की करुणा जागती और नहीं रामायण रची जाती। न तुलसीदास रामचरितमानस रचते और न राम अमर होते और न अयोध्या को कोई जानता। अयोध्या को कोई नहीं जानता तो और क्या-क्या नहीं होता?



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