कितनी अनामिका

                             
                                  
 गौडा की अनामिका शुक्ला एक रात सपने में आ गई। मैली कुचैली साड़ी पहने। उदास, आंखों में गड्डे। बहुत ही परेशान हाल। गोद में एक हाथ से बच्ची थामे, दूसरे में शेक्षिक अभिलेखों की मूल प्रतियां। बिना कुछ कहे ही उसकी आंखें बोल रही थीं-‘‘अंकल क्या ये सर्टीफिकेट मेरे किसी काम आएंगे’’? बाबली को कौन बताए? परमार्थ काम आना क्या कोई कम है? तू न सही तेरे नाम का दूसरी 25 तो लाभ उठा रही हैं? वे भी महिलाएं ही हैं। तेरे ही नाम और पढ़ाई का ही खा रही हैं। संतोष कर।
यह अनामिकाओं का देश हैं। तू अकेली नहीं है, और बहुत हैं। महिलाओं में ही नहीं पुरुषों में भी अनामिका हैं। शिक्षा जैसे पवित्र जगत को छोड़ो, यहां तो सैकड़ों अनामिका होंगी। नेताओं, बदमाशों और डाक्टरों में भी अनामिका हैं। डकैती कोई डालता है और मुकदमे नाम दूसरों के मढ़ दिए जाते हैं। वर्षों पहलेआगरा में एक ‘अनामिका’ डाक्टर ने असली डाक्टर से शादी कर अपना नर्सिंग होम खोल लिया? खुलासा तब हुआ जबकि वह डाक्टरों की जानी मानी संस्था के पदाधिकारी भी बन बैठे। अनामिका के बल पर कई प्रोफेसर से लेकर केंद्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री तक बन बैठे। किस-किस का जिक्र किया जाए। समरथ को नहि दोष गुसाईं। 
 तरह-तरह की अनामिका हैं। असली अनामिका मेहनत करती है, नकली उसके नाम पर मौज। कोई मेहनत और सिर्फ मेहनत करता है। कोई उसके नाम पर गुलछर्रे उड़ाता है। कोई बिल खोदता है, दूसरा कोई उसमें मजे से रहता है। कोई शोध कार्य करता है, कोई उसके स्थान पर नौकरी और पुरस्कार पा जाता है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने नेट समेत अनेक प्रमाण पत्रों की आनलाइन व्यवस्था की है ताकि उनकी प्रामाणिकता की कभी भी जांच की जा सके। भाई लोगों ने उसकी भी काट खोज ली है। महाविद्यालयों में अनेक स्नातक तक शिक्षित परास्नातक, नेट और पीचडी के फर्जी प्रमाणपत्रों से शोभा बढ़ा रहे हैं।  शायद  यही विधि का विधान है।
अनामिका ने हाईस्कूल में 80.16 प्रतिशत, इंटरमीडिएट में 78.6, स्नातक में 55.61 और परास्नातक में 76.5  और टीईटी में 60 प्रतिशत अंक प्राप्त किए। उसे मलाल है कि उसने नाहक ही दिन-रात मेहनत की। उसने सुल्तानपुर, जौनपुर, बस्ती, मिर्जापुर, लखनऊ आदि कई जिलों में कस्तूरबा बालिका विद्यालयों में नौकरी के लिए आवेदन किया था।  लेकिन उसे सभी जगह से निराशा मिली। जिन्होंने उसकी नियुक्ति नहीं की वे अधिकारी अब सफाई दे रहे हैं कि वह मूल अभिलेख लेकर इंटरव्यू में नहीं आई थी। जिन्होंने उसके स्थान पर नौकरियां हासिल की क्या उनके पास मूल अभिलेख थे? अब तो आमजन में भी यह विश्वास हो चला है कि केवल मेहनत से कुछ नहीं होता। यदि मेहनत से ही सरकारी नौकरियां मिल रही होती तो हरगोविंद खुराना सरीखे काबिल लोगों को विदेशों की ओर कूच नहीं करना होता।
जब से यह मामला मीडिया की सुर्खियों में आया है, कई की गिरफ्तारियां हो गई हैं। ऐसा लग रहा है कि कोई दोषी बच नहीं पाएगा। लेकिन एक जो काम सबसे महत्वपूर्ण है असली अनामिका की 25 मेंं से  किसी एक स्थान पर भी तैनाती संभव नहीं हो पाई है। क्या मुश्किल है, कागज तो उसी के हैं, अभी तक उसके असली अभिलेख नहीं देखे तो अब देख लें। अनामिका को जांच की नहीं, नौकरी की जरूरत है। मामले को साधने के लिए उसे गौंडा जिले के ही एक एडेड प्राइमरी स्कूल में सहायक अध्यापक की अस्थाई नौकरी दे दी गई है। बीएसए डा. इंद्रजीत प्रजापति भी उससे कह रहे हैं कि अब जब कभी कस्तूरबा विद्यालय में जगह निकले तो वह फार्म भर दे, उसे नौकरी मिल जाएगी। यह काम पहले भी हो सकता था।  इस काम को छोड़ दूसरे काम किए जा रहे हैं। पुलिस के जिस अफसर ने इसका पर्दाफाश किया, उसे पद से हटा दिया गया है। सूबे में अनामिकाएं तलाशी जा रही हैं। दूसरे के कागजों पर नौकरी करने वाली कई अनामिका मिल गई हैं।  जब जागों तभी सवेरा।  मामले में जांच पर जांच शुरू हो गई हैं। प्रदेश भर में प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा में भर्ती हुए शिक्षकों के अभिलेखों की जांच की जा रही है। क्या पता  यह जांच ऐसे ही चलती रहेगी या किसी परिणति तक पहुंचेगी?  इसके बाद अदालती कार्रवाई चलेगी? लोकतांत्रिक व्यवस्था में इसका अंतहीन सिलसिला है। कौन जाने जांच का ऊंट किस करवट बैठेगा?
अनामिका तंत्र चलाने वालों के हाथ बहुत मजबूत हैं। जैसे एक अनामिका के अभिलेखों से करोड़ों का करोबार चला सकते हैं सरकार को करोड़ों की चपत लगा सकते  है। इसकी जांच कार्रवाई से उससे भी बड़ा कारोबार संचालित कर सकते हैं। असली अनामिका को नकली घोषित कर सकते हैं, उसे किसी दूसरे मामले में फंसा कर शिकायत वापस करा सकते हैं, कुछ भी संभव है।  रही जांच की बात तो लाखों जांचें धूल चाट रही हैं। 
यह योगीजी का राज है। लेकिन तंत्र किसी का नहीं होता, वह सेल्फमेड है। वह कुछ कर पाते हैं तो तालाब की कुछ गंदी मछलियों को पकड़ने से ज्यादा नहीं होगा।
अनामिका कोई आज से नहीं युगों-युगों से उत्पीड़ित  होती आई हैं। त्रेता युग में कसूर इंद्र का था लेकिन गौतम जी ने श्राप अपनी पत्नी अहिल्या को देकर उसे पत्थर की बना दिया। द्वापर में जब कंस ने देवकी की आठवीं संतान के रूप में श्रीकृष्ण को मारना चाहा तो वसुदेवजी ने वध के लिए उसकी बहन को आगे कर दिया । श्रीकृष्ण बचकर भगवान बन गए और बहन भगवान को प्यारी हो गई। 

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