माया मिली न राम

                           
                                         -डा. सुरेंद्र सिंह
हमारे सम्मानित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब पहले पहल 24 मार्च को लौकडाउन की घोषणा की थी तो लगा था कि अब कोरोना नहीं बचेगा। चाहे कहीं कुछ कर ले लेकिन वह भारत का बाल बांका नहीं कर सकता। आदेश ही ऐसा था एक साथ 21 दिन का लोकडाउन।  इतने दिन में उसका चक्र टूट जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन से लेकर हर किसी ने उनके कदम की तारीफ की। यहां तक कि जो विपक्षी अब उंगली उठा रहे हैं, वे भी तब समर्थन में थे। 
लौकडाउन का सीधा सा गणित था, जब सभी घरों के अंदर रहेंगे तो कोरोना जहां की तहां थम जाएगा। लेकिन कोरोना नहीं थमा। एक के बाद दूसरा, दूसरे के बाद तीसरा और चौथा लौकडाउन लगाना पड़ा। अब अनलौकडाउन के नाम से पांचवां लौकडाउन चल रहा है, जिसमें काफी कुछ प्रतिबंध हैं, कोरोना थमने का नाम नहीं ले रहा है। अब तक करीब ढाई लाख लोग चपेट में आ चुके हैं। दुनिया में भारत पांचवे स्थान पर है। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप का कहना है कि चीन और भारत जांच कम कर रहे हैं, यदि वे सही जांच कराएं तो उनके यहां से भी  ज्यादा केस  निकलेंगे। उनके बयान को राजनीतिक करार देकर किनारे कर भी दिया जाए तो अभी कुछ नहीं कहा जा सकता कि भविष्य में कोरोना का ऊंट किस करवट बैठेगा? यदि यही रफ्तार रही जिसमें अब कमी आने की कम ही गुंजाइश है तो भारत कोरोना संक्रमण के मामले में दुनिया में पहले स्थान पर भी आ सकता है। कितनी जनहानि होगी, इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता। क्योंकि वैक्सीन अभी सालों दूर है। अनलौकडाउन से कोरोना के विस्तार के लिए और सुगमता होती जा रही है।
लोकडाउन के कारण कई करोड़ लोग बेरोजगार हुए हैं। उद्योग- धंधे और व्यापार चौपट हैं। किसानों का भारी नुकसान हुआ है। राज्य सरकारों की  कमर टूट गई है। केंद्र सरकार जो रीढ़ की हड्डी मानी जाती है, उसके बजट में करने के लिए कुछ खास नहीं होता सिवाय दो ढाई लाख करोड़ रुपये सालाना के। बजट का बाकी पैसा तो सेलरी, पेंशन,  रक्षा खर्च, योजनाओं के रखरखाव, अनुदान आदि पर खर्च होता है। वह पैसा कोरोना राहत पैकेज में चला गया। अब सरकार और पब्लिक दोनों के हाथ खाली हैं। स्थिति यह  आ गई है कि सरकार को सारी विकास योजनाएं एक साल के लिए स्थगित करनी पड़ी हैं, अस्पतालों में मरीजों के लिए ज्यादा जगह नहीं बची। इसलिए अब गंभीर मरीजों को ही भर्ती किया जा रहा है। यह कह सकते हैं कि लौकडाउन से न माया मिली न राम।
कोरोना तो थम नहीं रहा अर्थव्यवस्था को ही क्यों खराब किया जाए, यह मानकर सारी व्यवस्थाओं को खोला जा रहा है। ऐसे में यह सवाल उठने लगा है कि क्या लौकडाउन का फैसला गलत था? एक से बढ़कर एक विद्वान इस पर उंगली उठा रहे हैं। वे उंगली उठा सकते है, ऐसा करना भी चाहिए। लेकिन याद रहे कि हमेशा फैसले समय और परिस्थिति को देखते हुए  लिए जाते है। फैसले लेने में गलती भी हो  सकती है। उससे आगे के लिए सबक लिया जा सकता है। इतिहास में ऐसी गलतियां होती रहती हैं। लेकिन फैसले के लिए किसी को दोषी नहीं ठहरा सकते। हां यदि कोई फैसला नहीं लिया जाता तो अनिर्णय की स्थिति के लिए दोषी ठहरा सकते थे। 
लोकडाउन के आदेश के कुछ नकारात्मक पहलू हैं तो सकारात्मक भी। नकारात्मक यह कि लौकडाउन में कहीं त्रुटि रही, जिसके कारण अंदर ही अंदर कोविड-19 फैलता रहा। सकारात्मक यह कि यदि लौकडाउन नहीं लगाया होता तो अर्थव्यवस्था को तो बचाया जा सकता था लेकिन तब मरने वालों की संख्या कहीं ज्यादा होती। अर्थव्यवस्था से आदमी की जिंदगी ज्यादा महत्वपूर्ण है। लौकडाउन के जरिए जितनी जागरूकता लाई गई है, वैसी किसी अन्य तरीके से नहीं आ सकती थी।
एक सवाल मजदूरों को लेकर भी है यदि उन्हें जहां की तहां रोकने की बजाय तभी घरों को जाने दिया जाता तब कोरोना उतना नहीं फैलता और नहीं उन्हें इतनी परेशानी होती। लेकिन तब क्या किसी को यह अनुमान था कि लौकडाउन इतना लंबा खिंचेगा? बीमारी को नियंत्रण में करने के लिए एक अनुमान ही था। अनुमान गलत हो सकते हैं और सही भी। जब पहले से इस तरह की कोई नजीर नहीं हो, तब अनुमान से ही काम चलते हैं।


Comments

  1. Corona virus एक अभूतपूर्व समस्या है.. दुनिया में पहली बार ऐसी महामारी आयी... ना किसी पर उपचार, ना किसी पर इससे निपटने का अनुभव... सिर्फ एक्सपेरिमेंट बतौर कुछ कदम उठाये गए.. lockdown भी ऐसा ही एक experiment था जो दुनिया भर में आजमाया गया... लेकिन ये पूर्णतः सफल हो ही नहीं सकता था क्यूंकि भूख से बेबस आदमी किसी बंदिश को नहीं मानता... अगर देश पूरी तरह lock होता तो शायद ये virus इतना ना फैलता... लेकिन भारत में पहले जमात और फिर मज़दूरों के uncontrolled आवागमन ने lockdown के उद्देश्य पर पानी फेर दिया. अलबत्ता इससे कई फायदे भी हुए. एक तो सरकार अपने health system को इस दौरान दुरुस्त करने में सफल रही. दूसरे जो आंकड़ा पहले april माह में ही इतना होता उसे वो जून माह तक खींचने में कामयाब रही.. अगर lockdown नहीं होता तो april तक ही भारत में लाखों patient हो गए होते और उनके लिए hospital में बेड भी उपलब्ध नहीं हो पाते.. हालांकि virus का प्रसार अभी थमा नहीं है और जुलाई तक इसके 10 लाख से भी ऊपर जाने की संभावना है लेकिन अब तक देशवासियों ने इसके साथ जीना सीख लिया है.....

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

गौतम बुद्ध ने आखिर क्यों लिया संन्यास?

राजा महाराजाओं में कौन कितना अय्याश

खामियां नई शिक्षा नीति की