Posts

Showing posts from 2020

चौधरी चरण सिंह को कभी गोली मारने के आदेश थे

Image
                                         क्या आप जानते हैं कि किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह को कभी देखते ही गोली मारने के आदेश थे। जी हां, यह  बिल्कुल सही है। देश की आजादी के दौरान वह गांधीजी के निकट थे, उनकी नीतियों पर चलने वाले थे, उन्होंने गांधीजी के सविनय अवज्ञा आंदोलन के तहत हिंडन नदीं के किनारे नमक बना कर सरकार का नमक कानून तोड़ा, कांग्रेस का संगठन तैयार किया लेकिन 1942 की अगस्त क्रांति के दौरान जब ‘करो या मरो’ का नारा दिया गया, एक दौर ऐसा भी आया जबकि उन्होंने भूमिगत होकर गुप्त क्रांतिकारी संगठन बनाने का कार्य किया। तब अंग्रेज प्रशासन ने उन्हें देखते ही गोली मारने के आदेश दिए थे। पुलिस उनके पीछे पड़ी थी, गांव-गांव उन्हें ढूंढ़ रही थी लेकिन वे गांवों में ही सभाएं कर निकल जाते थे। आखिरकार एक दिन गिरफ्तार कर लिए गए। डेढ़ साल की सजा हुई।  हम यदि पूरी दुनिया की बात करें तो किसानों की राजनीति अमेरिका और रूस में भी हुई लेकिन  सफल नहीं हो सकी। पर चौधरी चरण सिंह ने किसान राजनीति को इस कदर सफल किया कि उन्होंने देश की राजनीति की धारा ही बदल दी। वे न केवल इस राजनीति के बल पर प्रधानमंत्री के पद

आगरा कभी लंदन से बड़ा था

Image
                                   आगरा कभी लंदन से बड़ा था। यह बात हर किसी को आसानी से हजम नहीं होगी।  पर यह सौ आने सही है।  रेल्फ  फिच नाम के एक अंग्रेज पर्यटक ने सितंबर 1585 में आगरा भ्रमण के बाद यह निष्कर्ष निकाला था। जाने-माने इतिहासकार आगरा कालेज, आगरा के इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष और आगरा विश्वविद्यालय ( अब डा. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा) के पूर्व कुलपति डा. अगम प्रसाद माथुर ने यह बात अपने एक आलेख में कोड की है,  जो पदमश्री डा. प्रणवीर चौहान द्वारा संपादित पुस्तक ‘समग्र आगरा’ में प्रकाशित है। और कई इतिहासकारों की भी यही राय है। आज लंदन कहां है और आगरा कहां? लंदन  युनाइटेड किंगडम की राजधानी  है,  फिल्मों, उद्योग और व्यापार का बड़ा केंद्र। वह अपने देश का सबसे बड़ा शहर है।  दुनिया के गिने-चुने शहरों में शुमार है। और आगरा अपने देश के एक सूबे उत्तर प्रदेश में भी  कई शहरों से गई-बीती स्थिति में है। यह होता है राजनीतिक का असर। आगरा जब लंदन से बड़ा था तब मुंबई का तो अस्तित्व ही नहीं था। इसे अंग्रेजों ने बाद में अपने व्यापारिक केंद्र के रूप में बसाया। दिल्ली भी आगरा के मुकाबले कही

महिलाओं के सबसे बड़े पैरोकार आंबेडकर

Image
                                                भारत रत्न डा. भीमराव अबेडकर महिलाओं के सबसे बड़े पैरोकार थे। वह मानते थे कि दलितों की तरह महिलाएं भी एक दबा-कुचला वर्ग है।  महिलाओं को यह जो प्रसूति का अवकाश मिलता है, इसके आदेश उन्होंने ही कराए थे, जब वे वायसराय के सलाहकार थे। दुनिया के कई मुल्कों में महिलाओं को अभी तक मतदान और अनेक अधिकार प्राप्त नहीं हैं।  वह अंबेडकर ही थे जिन्होंने महिलाओं को मताधिकार के अलावा और अनेक अधिकार दिलवाए।  आज जो महिलाएं बड़े-बड़े पदों पर विराजमान हैं, वे सब डा. अंबेडकर की ऋणी हैं। डा. आंबेडकर महिलाओं के लिए और भी  बहुत कुछ करना चाहते थे, जिसमें वह उत्तराधिकार, विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता लाना चाहते थे। इसके लिए वह हिंदू संहिता विधेयक (हिंदू कोड बिल) लाए थे।  नेहरू तो समर्थन में थे लेकिन तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद और गृह मंत्री पटेल समेत तमाम सांसदों के विरोध के कारण वे इसमें सफल नहीं हो सके। इससे वह इतने दुखी हुए कि उन्होंंने कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। यदि डा. अांबेडकर की चली होती तो आज महिलाएं और सशक्त होंतीं। त

गौतम बुद्ध ने आखिर क्यों लिया संन्यास?

Image
                              कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ गौतम यानि गौतम बुद्ध ने क्यों संन्यास लिया? उस समय की व्यवस्था के अनुसार यह क्षत्रियों का काम नहीं था। ऐसे क्या कारण थे, जिसके कारण उन्होंने राजसी सुख-सुविधाएं त्याग कर अपनी जिंदगी के लिए कांटों भरा पथरीला रास्ता चुना। यह जो कहा जाता है कि  वृद्ध, बीमार और शव देखने के बाद उनका इस दुनिया से मोह भंग हो गया था। राष्ट्रपति रहे डा. राधाकृष्णन ने  अपनी पुस्तक में यही लिखा है। विकीपीडिया और तमाम पुस्तकों में यही जानकारी  है, जो सही नहीं है। वास्तव में उन्होंने बहुत बड़ा त्याग किया था। गौतम बुद्ध ने 563 ईसापूर्व बैसाख पूर्णिमा के दिन मौजूदा नेपाल के कपिलवस्तु राज्य में जन्म लिया। जब संन्यास लिया,तब  उनकी उम्र 29 साल थी। वह कपिलवस्तु के राजकुमार थे। अच्छे पढ़े- लिखे थे, उन्हें दर्शन के सिद्धांतों  का गहरा ज्ञान था।  इसके अलावा वह शस्त्र विद्या में प्रवीण थे, धनुर्विद्या में उन्हें महारथ हासिल था। उन्हें स्वयंवर में देखकर यशोधरा मोहित हो गई थीं। फिर भी अर्जुन की तरह निशाना साधने के बाद ही उनका विवाह हुआ। उनके एक पुत्र भी हुआ, राहुल । बी

महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राजा महेंद्र प्रताप

Image
                                       देश की जंगे आजादी में जब लोग अपनी कुर्बानियां दे रहे थे, हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल रहे थे, लाठी-डंडे खा रहे थे, तब अधिकांश रियासतें अंग्रेजों के साथ थीं। 1857 की क्रांति में पराजय से वे इतनी नर्वस हो गईं कि उन्होंने अंग्रेजों से संधियां कर लीं। उन्हीं को अपना नियंता मान लिया था लेकिन  छोटी सी रियासत मुरसान के राजा महेंद्र प्रताप सिंह देश की आजादी के लिए पुरजोर ढंग से लड़े। वह एक साथ कई मोर्चोंं पर लड़े। केवल भारत में ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी लड़े। उन्होंने अपना पूरा जीवन, सुख और संपत्ति देश की बेहतरी के लिए कुर्बान कर दी। आजादी की लड़ाई के सितारे सुभाष चंद बोस ने जिस आजाद हिंद सेना के जरिए अंग्रेज सरकार के खिलाफ लड़ाई का बिगुल फूंका, उसकी नींव इन्होंने ही  रखी । वह बहुत ही दूरदृष्टा थे। यह  अलग बात है कि आजादी के इतिहास लेखन में उन्हें किनारे पर कर दिया गया। एक दिसंबर 1886 को उत्तर प्रदेश में स्थित हाथरस रियासत के राजा घनश्याम सिंह के घर जन्मे उनके तीसरे पुत्र राजा महेंद्र प्रताप का मूल नाम खड़क सिंह था। पडोस की मुरसान के राजा हरनारायण सि

तो क्या बाइडन राष्ट्रपति बन पाते?

Image
                                            लोग असफलता को बहुत बुरा मानते हैं लेकिन कई बार असफलता सफलता से भी लाख गुना बेहतर सिद्ध हो जाती है। अमेरिका के चयनित राष्ट्रपति जो बाइडन और अपने पूर्व राष्ट्रपति कलाम पर यह सौ फीसदी फिट बैठती है। कलाम साहब पायलट बनना चाहते थे। लेकिन नहीं बन पाए। उन्हें अनफिट कर दिया गया। बहुत दुखी हुए लेकिन फिर उन्होंने हिम्मत बटोरी, वह देश के टौप वैज्ञानिक, देश के रक्षा सलाहकार और सर्वोच्च राष्ट्रपति के पद पर पहुंंचे। इसी तरह बाइडन साहब पढ़ाई पूरी करने के बाद देश की सेवा के लिए मिलिट्री में भर्ती होने चाहते थे। लेकिन अस्थमा की बीमारी के कारण वह अनफिट कर दिए गए।  बाइडन साहब को जिंदगी में दूसरा झटका तब लगा जबकि वह सीनेटर थे, एक कार एक्सीडेंट में उनकी पत्नी और दो बच्चों की मृत्यु हो गई। वह इतने निराश हुए कि राजनीति से संन्यास लेने जा रहे थे। दोस्तों ने समझाया। उन्होंने हिम्मत जुटाई। इसी का परिणाम आज सामने है। वह अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति की 20  जनवरी 2021 को शपथ लेंगे।  बाइडन साहब की कोई पारिवारिक रूप से राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं रही, नहीं वह आर्थिक रूप से समृद्ध

आगरा में जाटों का भी शासन रहा

Image
                                          अक्सर जब कभी आगरा के इतिहास का जिक्र किया जाता है तो वह मुगलों और अंग्रेजों तक सीमित कर दिया  जाता है, उन्हीं की उपलब्धियों और ज्यादतियों का उल्लेख होता है लेकिन आगरा में जाटों का भी शासन रहा। वह भी करीब 14 साल। इसके अलावा जाटों ने मुगलों से सौ साल से भी ज्यादा समय तक लोहा लिया। बलिदान दिए। इसका जिक्र कभी नहीं होता। जाट शासकों ने आगरा की जनता के स्वाभिमान, सम्मान और भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए अनेक उल्लेखनीय कार्य किए, उनके चिन्ह अभी भी मौजूद हैं। उनके नाम पर ऐसे अनेक स्थल हैं जो उनकी शौर्य गाथाओं की गवाही देते हैं। जाट राजाओं ने अपने कर्म पर भरोसा किया,  अपनी यशोगाथा के बखान पर नहीं। इसी कारण उनके योगदान को इतिहास में यथोचित स्थान नहीं मिल सका। फिर भी इतिहास के कई ग्रंथों में उनके कार्यों की छिटपुट विरुदावलियां मिल ही जाती हैं। आगरा में शासन करने वाले जाट राजाओं में सबसे प्रतापी महाराजा सूरजमल थे। उनकी वीरता के कितने ही किस्से जन-जन की जुबान पर हैं। मूलत:  वह किसान परिवार से थे। किसानों को ही एकजुट कर उन्होंने सेना बनाई और बड़े-बड़े शूरमाओं

पर उपदेश कुशल बहुतेरे

Image
                                         माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कोरोना को लेकर देश के नाम अपने सातवें संबोधन में बहुत महत्वपूर्ण बातें कहीं। जिसे लेकर आजकल  देश भर में चर्चा है। उन्होंने कहा कि कोरोना की स्थिति संभली हुई दिख रही है लेकिन कोरोना अभी गया नहीं है। उन्होंने यूरोप और अन्य देशों का हवाला देते हुए कहा कि यदि लापरवाही वरती तो यह दोबारा लौट भी सकता है, इसलिए सावधानी बरतें। दो गज की दूरी यानि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन अवश्य करें। प्रधानमंत्री ने ये बातें ऐसे समय में कही हंै जबकि कोरोना के आंकड़े नियंत्रण में दिखाए देने के बाद नागरिक सोशल डिस्र्टेंसग और मास्क को भुलाने लगे हैं। समय भी इसके लिए उपयुक्त है।  ये बातें उसी तरह हैं जिस तरह परिवार का एक मुखिया अपने बच्चों को अच्छी-अच्छी सीख देता रहता है। यह कह कर मोदी जी देश रूपी परिवार के मुखिया की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। लेकिन क्या यह पर्याप्त है?  यदि लोग अच्छी सीख से ही लोग सुधर रहे होते तो फिर कानून बनाने की क्या जरूरत थी। स्कूलों में अध्यापक और घरों में परिवार के मुखिया बच्चों को चोरी नहीं करने,सदा सच बोलने, दूसरों

नारदजी की रिपोर्टिंग-3

Image
                         नारदजी हाथरस कांड की सचाई जानने को  व्याकुल  दर-दर की खाक छान रहे हैं।  ऐसे ही  एक दिन लखनऊ में हजरतगंज चौराहे पर पुलिस ने धर लिया। पूछा-‘‘कहां घूम रहा है, राजधानी में भी बिना मास्क के,  दूसरों को देख कर भी शर्म नहीं आती’’? नारदजी ने बहुत सफाई दी कि उन पर कोरोना का असर नहीं होगा। कोरोना तो इंसानों के लिए है। वह तो भगवान राम के भक्त हैं। पुलिस के सिपाही ने हड़काया- ‘‘बड़ा आया भक्त। यहां बड़े-बड़े मंदिर बंद हैं, स्वामीजी। कोरोना किसी को नहीं बख्श रहा।  नृत्यगोपाल दास तक को नहीं छोड़ा, उनसे बड़े तो नहीं हो, उन्होंने मोदीजी के साथ श्रीराम जन्मभमि मंदिर का शिलान्यास कराया।  चलिए निकालिए  एक हजार रुपये। जुर्माना है यह।  पक्की रसीद मिलेगी’’। नारदजी पर रुपये हों तो दें, उन्हें पैसे की क्या जरूरत? बगलें झांकने लगे, वीणा और खाली कमंडल  दिखाने लगे। बगल में खड़े एक  सिपाही ने अपने साथी से इशारे से कहा -‘‘इसकी वीणा रख लेते हैं, बच्चों के काम आएगी’’। तभी घूम-फिर कर आए  एसएचओ की नजर पड़ी। उन्होंने इशारे से पूछा-‘‘ क्या माजरा है’’? उन्हें जकड़कर पकड़े सिपाही कुछ  बताते तब तक सामने से एक

नारदजी की रिपोर्टिंग-2

Image
                                देवर्षि नारदजी यदि हाथरस की घटना की रिपोर्टिंग के लिए आते तो स्थानीय अधिकारी उन्हें आसमान से उतरने के दौरान ही ताक लेते। उन्हें हड़काते-‘‘ उतर, नीचे उतर, नही तो गोली मार देंगे’’। फिर बड़बड़ाते-‘‘ साला... जमीन के रास्ते से गांव में घुसने पर रोक लगा दी है तो आसमान से उतर रहा है, बड़ा सरकस आदमी है’’।  जबरन जमीन पर उतार कर सबसे पहले उन्हेें नक्सली साबित करनेका प्रयास करते। वह वीणा हाथ में लेकर-‘‘ नारायण-नारायण’’ कहते सफाई देते रहते- ‘‘वह तो परलोक से आए हैं’’ फिर भी पुलिस वाले उन्हें घसीटकर थाने में बंद कर देते फिर आपस में सलाह करते, ऊपर रिपोर्ट देते। परलोक की बात सुनकर सभी आश्चर्यचकित होते,-‘‘ इतनी बड़ी साजिश। अब परलोक में भी योगी सरकार को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है’’। इहलोक के मीडिया और विपक्ष को इसकी कानोंकान भनक नहीं लगने देते। देवर्षि की खातिर खुशामद में लग जाते, उन्हें होटल में ले जाते। समझाते- ‘‘भगवानजी को बता देना, यहां  सब कुछ ठीक चल रहा हैं, रामराज्य दोबारा लाया जा रहा है। उनके लिए अयोध्या में जन्म स्थान पर भव्य मंदिर का शिलान्यास हो गया है। प्रधान

नारदजी की रिपोर्टिंग

Image
                              अब यदि देवर्षि नारदजी होते तो सच और झूठ के झमेले में फंस जाते, शायद पछताते, कहां फंस गए? इस चक्कर में वह डांट भी खा जाते।  वह अभिनेता सुशांत राजपूत की आत्महत्या की रिपोर्ट लेने आते तो सबसे पहले मुंबई पुलिस उन्हें 14 दिन के लिए क्वारंटीन करती। ऊपर भगवानजी इंतजार करते रहते और वह नीचे सफाई देते रहते कि वह देवदूत हैं, भगवानजी को उन्हें रिपोर्ट देनी है। पर उनकी कोई नहीं सुनता।  नारद जी यदि परलोक में दंडित कराने की धमकी देते तो पुलिस वाले उन्हें उल्टा ही हड़का देते-‘‘जा-जा, परलोक वाले, हमें परलोक नहीं, इसी लोक की और इस लोक में भी मौजूदा सरकार की ताबेदारी करनी है। परलोक के लिए तो हमारे पास एक से बढ़कर एक ज्ञानी-ध्यानी हैं जो दान- दक्षिणा लेकर जन्म-जन्मांतरों तक के पाप नष्ट कर देते हैं’’। बाद में किसी तरह छूटकर जब वह स्वर्गलोक  पहुंचते और भगवानजी को जो सच था, वही बताते लेकिन भगवानजी  शायद चकरा जाते-’’ क्या कह रहे हो, देवर्षि?  तकरीबन सारा मीडिया तो रिया चक्रवर्ती को जिम्मेदार ठहरा रहा है, आप उसे गंगाजल की तरह निर्दोष बता रहे हैं? क्यों? एक बार फिर सोच-समझ कर बोलिए’’

आत्महत्या क्यों?

Image
                            मेरे एक परिचित के दोस्त ने पिछले दिनों आत्महत्या कर ली। बहुत दुख हुआ।  क्या कमी थी ?अच्छा-खासा बंगला था, लंबी गाड़ी थी। हालांकि यह सब कर्ज से था लेकिन कोई परवाह नहीं थी। नौकरी से इतनी आमदनी थी कि किश्तों का पता ही नहीं चल रहा था।  जिंदगी मजे से चल रही थी। कोरोना के लाकडाउन के कारण वक्त ने ऐसा पल्टा खाया कि वह सड़क पर आ गया। कोई उपाय नहीं दिखा तो उसने नहर में गाड़ी  कुदाकर  अपनी  इहलीला समाप्त कर दी।  एक पत्रकार ने एम्स की चौथी मंजिल से छलांग लगाकर जान दे दी।  हाल ही में एक सफाई कर्मचारी ने आत्म हत्या कर ली। कोरोना काल में ऐसी हजारों आत्महत्याएं हुईं। आत्महत्याएं कोई यहीं नहीं पूरे दुनिया में होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन  की एक रिपोर्ट के अनुसार पूरे विश्व में हर साल आठ लाख से  ज्यादा आत्महत्याएं होती हैं। लेकिन चिंताजनक यह है कि इनमें से करीब 21 प्रतिशत यानि सबसे ज्यादा भारत में होती हैं। यहां हर 40 सैकंड में एक आत्महत्या होती है।  एनआरसीबी की ताजा रिपोर्ट के अनुसार यहां वर्ष 2019 में 139123 लोगों ने आत्महत्याएं की। इनमें 43000 किसानों और दिहाड़ी मजदूर शामिल

बेरोजगारी महामारी

Image
                                                   कोरोना महामारी है, यह हर कोई जानता है, इससे पूरी दुनिया त्रस्त है, बेरोजगारी उससे भी बड़ी महामारी बनने लगी है। क्योंकि कोरोना से एक बार को सावधानी वरत कर बच भी सकते हैं, उसकी मारक क्षमता भी कम है लेकिन  बेरोजगारी ऐसी महामारी  है जिससे  कोई नहीं बच सकता।  इसका उपाय केवल और केवल  रोजगार  है। अपने देश में इसका सबसे ज्यादा प्रकोप है। निकट भविष्य में इसके और भयंकर परिणाम देखने को मिल सकते हैं।  अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार पूरी दुनिया में 50 करोड़ से भी ज्यादा बेरोजगार हैं, इसमें सबसे ज्यादा योगदान कोरोना महामारी का है।  दुनिया का सबसे ज्यादा  शक्तिशाली देश अमेरिका भी इसका शिकार है। वहां कोरोना के कारण डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोगों को बेरोजगार होना पड़ा है। लेकिन अमेरिका अमेरिका है, वह अपने नागरिकों को इतना बेरोजगारी भत्ता दे देता है कि कोई दिक्कत नहीं होती। सबसे ज्यादा  दिक्कत अपने देश में है। कोरोना महामारी आने से पहले ही यहां दो करोड़ से ज्यादा नौजवान बेरोजगार थे। कोरोना काल में लोकडाउन के चलते 12 करोड़ से ज्यादा लोग और बेरोजगार हुए।  क्योंक

गांधीजी अब और ज्यादा प्रासंगिक

Image
                                                   अब जबकि महात्मा गांधी जी को गुजरे करीब पौन शताब्दी होने जा रही है, वह देश के लिए और प्रासंगिक होते जा रहे हैं। काश गांधी अब होते, ऐसी कामना बहुत से लोग करते हैं। कई बार दूसरे लोगों में गांधी का अक्स देखने लगते हैं। इमरजेंसी के दौरान लोगों को लोकनाक जय प्रकाश नारायण में  गांधी की झलक दिखी। इसके बाद 2011 में जब सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ दिल्ली में धरना दिया तो उनमें भी  गांधी की छवि दिखी।  लोग उन्हें दूसरा गांधी कहने लगे थे।  केवल भारत ही नहीं पूरी दुनिया को उनकी जरूरत है। इसलिए दो अक्टूबर गांधी जयंती को अंतरराष्ट्रीय  अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है।  करीब पौने दो सौ साल से काबिज ब्रिटेन जिसे भारत से भागने के लिए मजबूर गांधीजी ने किया, वह भी उन्हें याद करता है, 30 जनवरी को राष्ट्रीय गांधी दिवस मनाकर। दक्षिण अफ्रीका की आजादी का  प्रेरणास्रोत ही गांधीजी हैं।  यह उन्हीं का प्रभावशाली व्यक्तित्व था कि  दो बार के चुने हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से सुभाष चंद्र बोस को हटने के लिए कहा और उन्होंने अध्यक

फिसड्डियों में फिसड्डी भारत

Image
                            अक्सर हम अपने देश के बारे में बहुत बड़ी-बड़ी बातें सुनते रहते हैं, जैसे हम दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र हैं। हम दुनिया की पांचवी आर्थिक शक्ति हैं। अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी के बाद हमारा ही नंबर है। अंतरिक्ष में उपग्रह छोड़ने से लेकर लंबी दूरी की मिसाइलें और हाइपर सोनिक तकनीक हासिल करने वाले दुनिया के गिने-चुने देशों की कतार में हैं हम । यह सब कहने का लब्बोलुबाब यह है कि हम किसी से कम नहीं हैं। लेकिन यदि हम धरातल पर बात करें, आम जनता की शिक्षा, स्वास्थ्य,  बेरोजगारी और खुशी की बात करें तो हम अपने आसपास के छोटे-छोटे देशों के मुकाबले में भी नहीं टिकते।  यदि यह कहें कि हमारा देश फिसड्डियों में भी फिसड्डी है तो कुछ गलत नहीं होगा। हमें अपने देश की बुराई नहीं करनी चाहिए लेकिन सचाई से कब तक मुंह मोड़े रहेंगे। सबसे पहले हम बात करते हैं प्रसन्नता की। जो हर किसी के लिए जरूरी है। यदि हम खूब मेहनत करने और कमाने खाने, बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएं खड़ी करने के बावजूद प्रसन्न नहीं हो तो इस सब का क्या मतलब? संयुक्त राष्ट्र ने किसी भी देश के विकास को जांचने के लिए प्रसन्नता का पैमाना 2012

भारी मुश्किल में किसान

Image
                                        किसान वैसे तो अन्नादाता  हैं लेकिन उनकी हालत मजदूरों से भी गई बीती है। न तो अच्छा खाना खाता है और न अच्छा कपड़ा उसे नसीब है। वह मिट्टी खाता है और मिट्टी में रहता है। मिट्टी ही उसका नसीब है। उसका यह नसीब अब और बिगड़ने जा रहा है। अब वह न तो घर का रहेगा और नहीं घाट का। बात यह है कि किसानों का नसीब बदलने के नाम पर केंद्र सरकार ने कृषि से संबंधित जो विधेयक पारित किए हैं उससे अधिकांश किसानों के पैरों तले की जमीन खिसकने जा रही है। कहा तो यह जा रहा है कि इससे खेती से आय दुगनी हो जाएगी। लेकिन इसका फायदा कुछ बड़े किसानों के अलावा कंपनियां ही उठा सकेंगी।  आम किसानों के लिए ये घातक हैं, इसलिए केंद्रीय मंत्री सिमरत सिंह बादल ने पद से इस्तीफा दे दिया है। पंजाब, हरियाणा समेत कई राज्यों में किसानों और किसान संगठनों द्वारा इसका भारी विरोध किया दा रहा है।  इन विधेयकों  के तहत कंपनियां किसानों से अनुबंध पर लेकर खेती कर सकेंगी। किसान भी ऐसा कर सकेंगे। लेकिन इसके लिए उन्हें पहले कंपनी, सोसायटी या समिति बनाकर उसका रजिस्ट्रेशन करना होगा। फिर चाहे पूरे देश  में कहीं भी बिन

हाय-हाय बेरोजगारी

Image
                                                 हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र हाइपर सोनिक तकनीक हासिल करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है। अंतरिक्ष में उपग्रह प्रक्षेपित करने  और लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलों के मामले में भी दुनिया के गिने-चुने विकसित देशेों की कतार में है। विश्व में सबसे नौजवान देश है, चीन से भी ज्यादा नौजवान हमारे यहां हैं। दुनिया के सबसे तेज दिमाग वाले आईटी इंजीनियर हमारे पास हैं लेकिन नौजवानों को रोजगार के मामले में फिसड्डी है। सबसे फिसड्डी। हम अमेरिका, जर्मनी जैसे देशों की बात नहीं कह रहे, वहां जो-कुछ कभी बेरोजगार होते हैं, उन्हें सरकार बेरोजगारी भत्ते के रूप में इतना दे देती है कि वे मौज करते हैं। हम तो दक्षिण एशिया के अपनी जैसी जनसंख्या घनत्व वाले छोटे-मोटे देशों से भी  गई-बीती स्थिति हंै। यहां पीएचडी और बीटेक,  एमसीए पास नौजवान 8-10 हजार रुपये महीने की नौकरी के लिए मारे-मारे फिरते हैं। ऐसे तमाम लोग चपरासी और सफाई कर्मचारी तक की नौकरी कर लेते हैं।  संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार 2019 में हमारे यहां बेरोजगारी की दर 5.36  प्रतिशत थी पिछले ती

हिंदी दिवस

Image
                                                         हम हिंदी भाषी दस-बीस लोगों के बीच कोई अंग्रेजी बोलने लगे तो दबाव में आकर हीन भावना से ग्रस्त हो जाते हैं लेकिन चीन, जर्मनी, स्पेन, फ्रांस में ऐसा नहीं है। उन्हें अपनी भाषा पर गर्व है, वे अपना सारा काम अपनी ही भाषा में करते हैंऔर गर्व के साथ करते हैं। यह तब है जबकि हिंदी अंतरराट्रीय स्तर की भाषा है। विश्व में सबसे ज्यादा बोले जाने वाली तीसरे नंबर की भाषा। वल्र्ड लेंग्वेज डाटाबेस इंथोलोग के 2019 के 22वें संस्करण के अनुसार विश्व में हिंदी बोलने वालों की संख्या 61.5 करोड़, चीन की मंदारिन भाषा बोलने वालों की संख्या 111.7 करोड़ और अंग्रेजी भाषा बोलने वालों की संख्या 113,2 करोड़ है।  भारत में हिंदी भाषी सिर्फ केवल दस राज्यों के लोग ही माने जाते हैं। जबकि देश में  तमिलनाडु को छोड़कर बाकी सभी राज्यों में  लोग हिंदी को समझते हैं। त्रिभाषा फार्मूले के तहत वहां स्कूलों में हिंदी पढ़ाई जाती है।  पाकिस्तान और बंगलादेश की उर्दू भी हिंदी से मिलती  जुलती है, उन्हें हिंदी समझ में आती है। देश के सभी राज्यों में हिंदी साहित्य रचा जाता है.  यदि इसे हिंदी

आत्म निर्भर भारत

Image
                                                               हमारे लोकप्रिय प्रधानमंत्री  माननीय श्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना संकट के दौरान 12 मई 2020 को आत्म निर्भर भारत अभियान की घोषणा की थी। यह कोई छोटी-मोटी घोषणा नहीं थी।  इसे हवा हवाई भी नहीं कह सकते क्योंकि इसके साथ बीस लाख करोड़ का राहत पैकेज भी था। बीस लाख करोड़, बजट करीब 24.50 लाख करोड़ और राहत पैकेज 20 लाख करोड़।  कल्पना करिए जब हमारा देश आत्मनिर्भर होगा तो निश्चित रूप  से दुनिया की बड़ी आर्थिक शक्ति होगा।  इसे सोने की चिड़िया भी कह सकते हैं। 17-18 वीं शताब्दी में जब भारत आत्म निर्भर था, तब सोने की चिड़िया ही था। तब यूरोप वाले दौड़कर आए थे। हमारे मशाले और तलवारें समेत अनेक सामान यूरोप के बाजारों की शान होते थे। सरकार के आत्म निर्भर  भारत अभियान के कई पहलू हैं। एक यह कि हमें अब दूसरे देशों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा, हम खुद ही इतने सक्षम हो जाएंगे कि अपनी जरूरत की सारी चीजें हमारे पास होंगी। वैसे दुनिया में अब कोई ऐसा देश नहीं है तकरीबन सारे देशों को एक दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता है। सभी की एक दूसरे पर निर्भरता इतनी बढ़ गई है कि  विश्व