नारदजी की रिपोर्टिंग-3

 



                      

नारदजी हाथरस कांड की सचाई जानने को  व्याकुल  दर-दर की खाक छान रहे हैं।  ऐसे ही  एक दिन लखनऊ में हजरतगंज चौराहे पर पुलिस ने धर लिया। पूछा-‘‘कहां घूम रहा है, राजधानी में भी बिना मास्क के,  दूसरों को देख कर भी शर्म नहीं आती’’?

नारदजी ने बहुत सफाई दी कि उन पर कोरोना का असर नहीं होगा। कोरोना तो इंसानों के लिए है। वह तो भगवान राम के भक्त हैं। पुलिस के सिपाही ने हड़काया- ‘‘बड़ा आया भक्त। यहां बड़े-बड़े मंदिर बंद हैं, स्वामीजी। कोरोना किसी को नहीं बख्श रहा।  नृत्यगोपाल दास तक को नहीं छोड़ा, उनसे बड़े तो नहीं हो, उन्होंने मोदीजी के साथ श्रीराम जन्मभमि मंदिर का शिलान्यास कराया।  चलिए निकालिए  एक हजार रुपये। जुर्माना है यह।  पक्की रसीद मिलेगी’’।

नारदजी पर रुपये हों तो दें, उन्हें पैसे की क्या जरूरत? बगलें झांकने लगे, वीणा और खाली कमंडल  दिखाने लगे। बगल में खड़े एक  सिपाही ने अपने साथी से इशारे से कहा -‘‘इसकी वीणा रख लेते हैं, बच्चों के काम आएगी’’। तभी घूम-फिर कर आए  एसएचओ की नजर पड़ी। उन्होंने इशारे से पूछा-‘‘ क्या माजरा है’’? उन्हें जकड़कर पकड़े सिपाही कुछ  बताते तब तक सामने से एक वीआईपी गाड़ियों का काफिला आता देख आव देखा न ताव, देवर्षि को तुरंत छुड़वा दिया, कौन साधु संतों के झमेले में पड़े। पता नहीं पालघर की तरह यह भी मुद्दा बन जाए। साथ में ताकीद कर दिया-‘‘स्वामीजी  आइंदा मत आना  इधर, वीआईपी  क्षेत्र है।  जितना जल्दी हो सके इलाके से दफा हो जाओ’’।  

पुलिस की डांट से खिन्न देवर्षि उल्टे पांव  ‘‘नारायण-नारायण’’ कहते स्वर्गलोक में पहुंच गए। प्रभु मुस्कराए- ‘‘ले आए सही रिपोर्ट’’?

-‘‘ प्रभु इसमें तो अभी समय लगेगा, तथ्यों की छानबीन चल रही है। 

- फिर क्यों आ गए। ऐसी क्या जल्दी थी? -प्रभु ने डांटा।

 नारदजी ने साहस बटोरा-‘‘ कुछ नई रिपोर्ट हाथ लगी है। मैंने सोचा पहले यही बता दूं। ये भी बहुत जरूरी हैं’’।

बोलो-‘‘क्या  है? नारदजी ने हाथ जोड़े- ‘‘उत्तर प्रदेश की अयोध्या में आपके भव्य मंदिर के लिए भूमि पूजन कर दिया है और नेपाल में भी आपके जन्म स्थल का मंदिर बनाने की  तैयारी है। प्रभु. मैं तो भ्रम में पड़ गया हूं। आपकी असली अयोध्या कौन सी है? नेपाल वाली या उत्तर प्रदेश वाली? कुछ समझ में नहीं आ रहा। तब से धरती का भूगोल और इतिहास बहुत बदल गया है। अब तो आप ही मेरे भ्रम को  दूर कर सकते हैं,  जैसे त्रेता युग में किया ’’?

भगवानजी भी सोच में पड़ गए?- ‘‘क्या हो रहा है?’’ नारदजी  फिर यह भी बताते हैं कि धरती पर आपके नाम पर पहले से लाखों मंदिर है। सबके पुजारी यही बताते हैं कि आप उन्हीं के मंदिर में हैं। और किसी में नहीं। 

-‘‘देवर्षि, मैं तो लोगों के घट-घट में हूं, सृष्टि के कण-कण में हूं। पूरी दुनिया में मैं कहा नहीं हूं?  मैं कहां बैठूं? क्या किसी मंदिर में बैठने के लिए मेरे पास एक सैकंड के अंश का भी समय है? आप ही बताइए ’’? मुझे मंदिर की जरूरत होती तो क्या मैं क्या खुद नहीं बनवा सकता था’’?

इतना कह भगवान राम अंतर्धान हो गए। नारदजी-‘‘नारायण-नारायण’’ कहते फिर से हाथरस कांड की छानबीन में जुट गए।


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