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Showing posts from September, 2020

फिसड्डियों में फिसड्डी भारत

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                            अक्सर हम अपने देश के बारे में बहुत बड़ी-बड़ी बातें सुनते रहते हैं, जैसे हम दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र हैं। हम दुनिया की पांचवी आर्थिक शक्ति हैं। अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी के बाद हमारा ही नंबर है। अंतरिक्ष में उपग्रह छोड़ने से लेकर लंबी दूरी की मिसाइलें और हाइपर सोनिक तकनीक हासिल करने वाले दुनिया के गिने-चुने देशों की कतार में हैं हम । यह सब कहने का लब्बोलुबाब यह है कि हम किसी से कम नहीं हैं। लेकिन यदि हम धरातल पर बात करें, आम जनता की शिक्षा, स्वास्थ्य,  बेरोजगारी और खुशी की बात करें तो हम अपने आसपास के छोटे-छोटे देशों के मुकाबले में भी नहीं टिकते।  यदि यह कहें कि हमारा देश फिसड्डियों में भी फिसड्डी है तो कुछ गलत नहीं होगा। हमें अपने देश की बुराई नहीं करनी चाहिए लेकिन सचाई से कब तक मुंह मोड़े रहेंगे। सबसे पहले हम बात करते हैं प्रसन्नता की। जो हर किसी के लिए जरूरी है। यदि हम खूब मेहनत करने और कमाने खाने, बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएं खड़ी करने के बावजूद प्रसन्न नहीं हो तो इस सब का क्या मतलब? संयुक्त राष्ट्र ने किसी भी देश के विकास को जांचने के लिए प्रसन्नता का पैमाना 2012

भारी मुश्किल में किसान

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                                        किसान वैसे तो अन्नादाता  हैं लेकिन उनकी हालत मजदूरों से भी गई बीती है। न तो अच्छा खाना खाता है और न अच्छा कपड़ा उसे नसीब है। वह मिट्टी खाता है और मिट्टी में रहता है। मिट्टी ही उसका नसीब है। उसका यह नसीब अब और बिगड़ने जा रहा है। अब वह न तो घर का रहेगा और नहीं घाट का। बात यह है कि किसानों का नसीब बदलने के नाम पर केंद्र सरकार ने कृषि से संबंधित जो विधेयक पारित किए हैं उससे अधिकांश किसानों के पैरों तले की जमीन खिसकने जा रही है। कहा तो यह जा रहा है कि इससे खेती से आय दुगनी हो जाएगी। लेकिन इसका फायदा कुछ बड़े किसानों के अलावा कंपनियां ही उठा सकेंगी।  आम किसानों के लिए ये घातक हैं, इसलिए केंद्रीय मंत्री सिमरत सिंह बादल ने पद से इस्तीफा दे दिया है। पंजाब, हरियाणा समेत कई राज्यों में किसानों और किसान संगठनों द्वारा इसका भारी विरोध किया दा रहा है।  इन विधेयकों  के तहत कंपनियां किसानों से अनुबंध पर लेकर खेती कर सकेंगी। किसान भी ऐसा कर सकेंगे। लेकिन इसके लिए उन्हें पहले कंपनी, सोसायटी या समिति बनाकर उसका रजिस्ट्रेशन करना होगा। फिर चाहे पूरे देश  में कहीं भी बिन

हाय-हाय बेरोजगारी

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                                                 हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र हाइपर सोनिक तकनीक हासिल करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है। अंतरिक्ष में उपग्रह प्रक्षेपित करने  और लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलों के मामले में भी दुनिया के गिने-चुने विकसित देशेों की कतार में है। विश्व में सबसे नौजवान देश है, चीन से भी ज्यादा नौजवान हमारे यहां हैं। दुनिया के सबसे तेज दिमाग वाले आईटी इंजीनियर हमारे पास हैं लेकिन नौजवानों को रोजगार के मामले में फिसड्डी है। सबसे फिसड्डी। हम अमेरिका, जर्मनी जैसे देशों की बात नहीं कह रहे, वहां जो-कुछ कभी बेरोजगार होते हैं, उन्हें सरकार बेरोजगारी भत्ते के रूप में इतना दे देती है कि वे मौज करते हैं। हम तो दक्षिण एशिया के अपनी जैसी जनसंख्या घनत्व वाले छोटे-मोटे देशों से भी  गई-बीती स्थिति हंै। यहां पीएचडी और बीटेक,  एमसीए पास नौजवान 8-10 हजार रुपये महीने की नौकरी के लिए मारे-मारे फिरते हैं। ऐसे तमाम लोग चपरासी और सफाई कर्मचारी तक की नौकरी कर लेते हैं।  संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार 2019 में हमारे यहां बेरोजगारी की दर 5.36  प्रतिशत थी पिछले ती

हिंदी दिवस

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                                                         हम हिंदी भाषी दस-बीस लोगों के बीच कोई अंग्रेजी बोलने लगे तो दबाव में आकर हीन भावना से ग्रस्त हो जाते हैं लेकिन चीन, जर्मनी, स्पेन, फ्रांस में ऐसा नहीं है। उन्हें अपनी भाषा पर गर्व है, वे अपना सारा काम अपनी ही भाषा में करते हैंऔर गर्व के साथ करते हैं। यह तब है जबकि हिंदी अंतरराट्रीय स्तर की भाषा है। विश्व में सबसे ज्यादा बोले जाने वाली तीसरे नंबर की भाषा। वल्र्ड लेंग्वेज डाटाबेस इंथोलोग के 2019 के 22वें संस्करण के अनुसार विश्व में हिंदी बोलने वालों की संख्या 61.5 करोड़, चीन की मंदारिन भाषा बोलने वालों की संख्या 111.7 करोड़ और अंग्रेजी भाषा बोलने वालों की संख्या 113,2 करोड़ है।  भारत में हिंदी भाषी सिर्फ केवल दस राज्यों के लोग ही माने जाते हैं। जबकि देश में  तमिलनाडु को छोड़कर बाकी सभी राज्यों में  लोग हिंदी को समझते हैं। त्रिभाषा फार्मूले के तहत वहां स्कूलों में हिंदी पढ़ाई जाती है।  पाकिस्तान और बंगलादेश की उर्दू भी हिंदी से मिलती  जुलती है, उन्हें हिंदी समझ में आती है। देश के सभी राज्यों में हिंदी साहित्य रचा जाता है.  यदि इसे हिंदी

आत्म निर्भर भारत

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                                                               हमारे लोकप्रिय प्रधानमंत्री  माननीय श्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना संकट के दौरान 12 मई 2020 को आत्म निर्भर भारत अभियान की घोषणा की थी। यह कोई छोटी-मोटी घोषणा नहीं थी।  इसे हवा हवाई भी नहीं कह सकते क्योंकि इसके साथ बीस लाख करोड़ का राहत पैकेज भी था। बीस लाख करोड़, बजट करीब 24.50 लाख करोड़ और राहत पैकेज 20 लाख करोड़।  कल्पना करिए जब हमारा देश आत्मनिर्भर होगा तो निश्चित रूप  से दुनिया की बड़ी आर्थिक शक्ति होगा।  इसे सोने की चिड़िया भी कह सकते हैं। 17-18 वीं शताब्दी में जब भारत आत्म निर्भर था, तब सोने की चिड़िया ही था। तब यूरोप वाले दौड़कर आए थे। हमारे मशाले और तलवारें समेत अनेक सामान यूरोप के बाजारों की शान होते थे। सरकार के आत्म निर्भर  भारत अभियान के कई पहलू हैं। एक यह कि हमें अब दूसरे देशों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा, हम खुद ही इतने सक्षम हो जाएंगे कि अपनी जरूरत की सारी चीजें हमारे पास होंगी। वैसे दुनिया में अब कोई ऐसा देश नहीं है तकरीबन सारे देशों को एक दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता है। सभी की एक दूसरे पर निर्भरता इतनी बढ़ गई है कि  विश्व

अर्थ व्यवस्था धड़ाम

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                                                                    कोरोना काल में देश की अर्थ व्यवस्था  धड़ाम से जमीन पर आ गई है। पिछले चालीस साल में अब तक की यह सबसे बड़ी गिरावट है। इसके कारण चारों ओर त्राहि-त्राहि मची है। इसे इस तरह व्याख्यायित किया जा रहा है कि जैसे सब कुछ चला गया। कुछ नहीं बचा। हाय राम, अब क्या होगा?  अर्थ व्यवस्था को मापने का सबसे बड़ा और व्यावहारिक पैमाना है- जीडीपी यानि सकल घरेलू उत्पाद। देश की वर्ष भर की होने वाली आय। सेंट्रल  स्टेटिक्स आफिस (सीएसओ) द्वारा इसके तिमाही आंकड़े भी जारी किए जाते हैं। इसकी हाल ही की रिपोर्ट के अनुसार इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही यानि अप्रैल 2020 से जून 2020 के बीच की जीडीपी -23.9 प्रतिशत हो गई है। यानि जीडीपी  करीब 24 प्रतिशत माइनस में आ गई है। कहां तो पांच-सात प्रतिशत वृद्धि की उम्मीद थी और कहां माइनस, ताज्जूब की बात तो है ही। लेकिन अर्थव्यवस्था में यह गिरावट केवल यहीं नहीं है, यह वैश्विक है। उदाहरण के लिए इसी अवधि मेंअमेरिका की जीडीपी -10.6 प्रतिशत, जर्मनी की -11.9, इटली की -17.1, ब्रिटेन की -22.1,  स्पेन की -22.7 प्रतिशत है। और भी

शिक्षक दिवस

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                                                                                       यदि यह कहा जाए कि शिक्षक देश और समाज की धुरी है तो कोई अतिशयोक्ति न होगी क्योंकि वही समाज और देश के विकास में अहम भूमिका निभाते हंै। चाहे कोई भी हो इंजीनियर, डाक्टर, साइंटिस्ट, बाबू, नेता आदि-आदि सभी को टीचर ही गढ़ते हैं। इसलिए शिक्षकों का पूरी दुनिया में सम्मान है। कहीं-कहीं शिक्षकों को वीआईपी का  दर्जा हाीिसल है तो कहीं शिक्षक दिवस पर उन्हें सम्मान देने के लिए सार्वजनिक अवकाश किया जा जाता है। तिथियां भले ही अलग-अलग हैं लेकिन शिक्षकों के सम्मान में कहीं कोई कमी नहीं है। उदाहरण के लिए 5 अक्टूबर को विश्व शिक्षक दिवस मनाया जाता है। पाकिस्तान और रूस में भी इसी दिन शिक्षक दिवस होता है। संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, ओमान, मिश्र,  लीबिया, कतर, बहरीन,  यमन, अल्जीरिया, मोरक्को, सीरिया समेत कई अरब देशों में 28 फरबरी को, चीन में 10 सितंबर को, ब्राजील में 15 अक्टूबर को, अमेरिका में 6 मई को होता है। वैसे अमेरिका में पूरे एक सप्ताह गुरू मान्यता सप्ताह मनता है।   डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने बहुत पहले कहा था कि पूरी