शिक्षक दिवस

                             

                                   


                    

यदि यह कहा जाए कि शिक्षक देश और समाज की धुरी है तो कोई अतिशयोक्ति न होगी क्योंकि वही समाज और देश के विकास में अहम भूमिका निभाते हंै। चाहे कोई भी हो इंजीनियर, डाक्टर, साइंटिस्ट, बाबू, नेता आदि-आदि सभी को टीचर ही गढ़ते हैं। इसलिए शिक्षकों का पूरी दुनिया में सम्मान है। कहीं-कहीं शिक्षकों को वीआईपी का  दर्जा हाीिसल है तो कहीं शिक्षक दिवस पर उन्हें सम्मान देने के लिए सार्वजनिक अवकाश किया जा जाता है। तिथियां भले ही अलग-अलग हैं लेकिन शिक्षकों के सम्मान में कहीं कोई कमी नहीं है। उदाहरण के लिए 5 अक्टूबर को विश्व शिक्षक दिवस मनाया जाता है। पाकिस्तान और रूस में भी इसी दिन शिक्षक दिवस होता है। संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, ओमान, मिश्र,  लीबिया, कतर, बहरीन,  यमन, अल्जीरिया, मोरक्को, सीरिया समेत कई अरब देशों में 28 फरबरी को, चीन में 10 सितंबर को, ब्राजील में 15 अक्टूबर को, अमेरिका में 6 मई को होता है। वैसे अमेरिका में पूरे एक सप्ताह गुरू मान्यता सप्ताह मनता है। 

 डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने बहुत पहले कहा था कि पूरी दुनिया को शिक्षा की एक इकाई मानना चाहिए। उनके कहने का आशय था कि शिक्षा के माध्यम से ही हम दुनिया और  मानवजीवन का उत्थान कर सकते हैं। उन्हीं के जन्म दिवस को अपने यहां शिक्षक के रूप में मनाया जाता है। डा. राधाकृष्णन का जन्म पांच सितंबर  1888 को तमिलनाडु राज्य के छोटे से कस्बे तिरुतनी में हुआ। उनका परिवार एक साधारण परिवार था। इतना साधारण कि परिवार का खर्चा मुश्किल से चलता था। पढ़ाई के दौरान राधाकृष्णनजी ने भी ऐसी मुश्किलों का सामना किया जो आजकल अधिकांश बच्चों को झेलनी पड़ती हैं लेकिन उन्होंने कभी किसी के सामने हाथ नहीं पसारे और न कभी दया की भीख मांगी। उन्होंने खर्च चलाने के लिए ट्यूशन तक किए।  लेकिन कभी हिम्मत नहीं हारी। वह एमए किसी अन्य विषय से करना चाहते थे।  चूंकि उनके बड़े भाई ने एमए दर्शन शास्त्र से किया था। उनकी पुरानी किताबें उन्हें मिल गई। जाहिर है कि उनके पास एमए की नई किताबें खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। वह अपनी इच्छा के विरुद्ध एमए दर्शन शास्त्र से कर दर्शन शास्त्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर के विद्वान बने।

उन्होंने देश और दुनिया में शिक्षक के रूप में अपनी  पहचान बनाई। वह दुनिया के जाने-माने आक्सफोर्ड और शिकागो  विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर रहे, आंध्र प्रदेश विश्वविद्यालय, वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय, दिल्ली के दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। उनके बारे में कहा जाता है कि वे अनेक बार बीस मिनट देरी से कक्षा में जाते थे और दस मिनट पहले क्लास छोड़कर आ जाते लेकिन वह इतनी  ही देर यानि बीस मिनट में ही अपनी बात विद्यार्थियों के जेहन में उतार देते थे। अपने विषय पर उनका गजब का कमांड था। शिक्षा में सुधार के लिए सरकार ने उनकी अध्यक्षता में एक आयोग बनाया था। इसी आयोग की सिफारिश पर हमारे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना की गई जो आजकल देश भर के विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों  को संचालित करता है। 

राधाकृष्णन जी कोई कांग्रेसी नहीं थे, उनकी यह काबिलियत ही थी कि उन्हें संविधान सभा का सदस्य चुना गया। यह उनकी काबिलियत ही थी कि देश की आजादी के दौरान 14 और 15 अगस्त की रात्रि के नेहरू के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने से ठीक पहले का भाषण उनसे कराया गया। उनसे कहा गया था कि उन्हें ठीक 12 बजे अपना भाषण खत्म करना है। यही उन्होंने किया।  यह उनकी काबिलियत ही थी किवह स्वतंत्र भारत के सोवियत संघ मेंपहले राजदूत बनाए गए। यह उनकी काबिलियत थी कि संविधान में उप राष्ट्रपति पद  की व्यवस्था न होते हुए भी उनके लिए यह पद सृजित कर उन्हें चुना गया। यह उनकी काबिलियत ही थी कि वह उप राष्ट्रपति रहते हुए 1954 में पहले राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद द्वारा भारत रत्न की उपाधि से नवाजे गए।। इसके बाद वह देश के दूसरे राष्ट्रपति चुने गए। 

इसमें कोई दो राय नहीं कि यदि डा. राधाकृष्णन को उप राष्ट्रपति और राष्ट्रपति न चुना गया होता  और  न भारत रत्न दिया गया होता  तो भी उनकी  ख्याति अंतराष्ट्रीय स्तर की होती। अंग्रजों ने भी उनकी काबिलियत का लोहा माना था। इसलिए  उन्हें 1931 में सर की उपाधि से नवाजा गया। यही नहीं कई देशों ने उन्हें अपने विश्वस्तरीय सम्मान प्रदान किए। उनके बारे में कहा जाता था कि वह बहुत सरल थे। उनसे कोई भी मुलाकात कर सकता था। उनका आत्मविश्वास इतना गजब का था वह अमेरिका और ब्रिटेन के राष्ट्राध्यक्षों से मुलाकात  के दौरान उनके गाल तक  थपथपा दिया करते थे। एक शिक्षक के रूप में डा. राधाकृष्णन छात्रों और अध्यापकों के प्रेरणास्त्रोत हमेशा बने रहेंगे। यही हमारे शिक्षक दिवस की सार्थकता है।  




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