आत्म निर्भर भारत
हमारे लोकप्रिय प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना संकट के दौरान 12 मई 2020 को आत्म निर्भर भारत अभियान की घोषणा की थी। यह कोई छोटी-मोटी घोषणा नहीं थी। इसे हवा हवाई भी नहीं कह सकते क्योंकि इसके साथ बीस लाख करोड़ का राहत पैकेज भी था। बीस लाख करोड़, बजट करीब 24.50 लाख करोड़ और राहत पैकेज 20 लाख करोड़। कल्पना करिए जब हमारा देश आत्मनिर्भर होगा तो निश्चित रूप से दुनिया की बड़ी आर्थिक शक्ति होगा। इसे सोने की चिड़िया भी कह सकते हैं। 17-18 वीं शताब्दी में जब भारत आत्म निर्भर था, तब सोने की चिड़िया ही था। तब यूरोप वाले दौड़कर आए थे। हमारे मशाले और तलवारें समेत अनेक सामान यूरोप के बाजारों की शान होते थे।
सरकार के आत्म निर्भर भारत अभियान के कई पहलू हैं। एक यह कि हमें अब दूसरे देशों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा, हम खुद ही इतने सक्षम हो जाएंगे कि अपनी जरूरत की सारी चीजें हमारे पास होंगी। वैसे दुनिया में अब कोई ऐसा देश नहीं है तकरीबन सारे देशों को एक दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता है। सभी की एक दूसरे पर निर्भरता इतनी बढ़ गई है कि विश्व शक्तियां भी इससे अछूती नहीं हैं। यह अलग बात है कि विकसित देश आयात कम करते हैं उनका निर्यात ज्यादा होता है। वे दूसरे देशों से भी मुनाफा कमाते हैं। अपनी खुद की उनकी अलग आय है।
इस दृष्टि से हमारे देश की स्थिति दयनीय है। स्थिति का अनुमान इस तरह लगाया जा सकता है कि हम बेशक दुनिया के करीब 190 देशों को करीब साढ़े सात हजार वस्तुओं का निर्यात करते हैं और आयात 140 देशों से करीब छह हजार वस्तुओं का लेकिन व्यापार में भारी अंतर है। और यह अंतर बढ़ता ही जा रहा है। वर्ष 1999 में हमारा निर्यात 36.3 बिलियन डालर था और आयात 50.2 बिलियन डालर का। हमें 13.9 बिलियन डालर का घाटा रहा। वर्ष 2014 में हमारा निर्यात 318.2 बिलियन डालर था और निर्यात 462.9 बिलियन डालर का। व्यापार घाटा रहा 144.7 बिलियन डालर। वर्ष 2019 में निर्यात रहा 330.07 बिलियन डालर और आयात 514.07 बिलियन डालर का। यानि व्यापार घाटा बढ़कर हो गया 184 बिलियन डालर। इस वर्ष कोरोना के कारण आर्थिक गतिविधियां बंद रहने से आयात और निर्यात दोनों में कमी आई है। एक रिपोर्ट के अनुसार इस साल जून माह में हमारे आयात में 47.50 प्रतिशत की कमी आई है जबकि निर्यात में 12.41 प्रतिशत की कमी । इस तरह हम पिछले 18 वर्षों में लाभ की स्थिति में हैं। लेकिन कोरोना के कारण यह अस्थायी है। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार इस साल हमारा निर्यात 314.3 और आयात 467.14 बिलियन डालर रहने का अनुमान है।
इसे इस तरह भी समझ सकते है कि कच्चा तेल हमारे पास जरूरत का 17 प्रतिशत है, 83 प्रतिशत हमें बाहर से लेना पड़ता है। इलेक्ट्रानिक सामान, औद्योगिक मशीनरी, वनस्पतिऔर जानवरों का वसा, चिकित्सा उपकरण भी बड़े पैमाने पर आयात करते हैं। हमारे पर खाने के लिए पर्याप्त दालें नहीं हैं। कहने के लिए हम कृषि के बड़े उत्पादक हैं खाद्यान्न, फल और सब्जी के उत्पादन के कई मामलों में हम दुनिया में पहले और दूसरे नंबर पर हैं फिर भी खाने-पीने की अनेक चीजों का आयात करते हैं।
हमारा सबसे ज्यादा आयात 2019 में चीन से70.52 बिलियन डालर रहा। जबकि उसे निर्यात 17.95 बिलियन डालर का कर पाए। 56.73 बिलियन डालर का नुकसान रहा। ठीक है कि अब चीन से रिश्ते खत्म कर रहे हैं पहले तो यह इतना आसान नहीं है, उसके एप्स पर प्रतिबंध लगाना अलग बात है, आवश्यक सामानों को बंद करना अलग। मानो बंद ही कर दें तो दूसरे देशों से खरीदने होंगें। इसमें आत्न्म निर्भरता कैसे आई? पीपीई किट अपने यहां बना लेना और हाइड्रोक्सिल क्लोरीक्विन टेबलेट की सप्लाई अलग बात है इनकी जरूरत भी हमेशा नहीं रहती लेकिन दूसरी जरूरी चीजों की आपूर्ति तो करनी ही होगी। इसके अलावा सुरक्षा के लिए हथियारों की खरीद भी बड़े पैमाने पर की जाती है। इसमें कब तक आत्म निर्भर होंगे, यह अभी दूर की कौड़ी है।
आत्न्म निर्भर भारत अभियान का दूसरा पहलू वह भी है जिसके लिए बीस लाख करोड़ का राहत पैकेज दिया गया। इसके अंतर्गत अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए पांच बातों 1- इरादा, 2-समावेशन, 3-निवेश, 4-बुनियादी ढांचा, और 5- नवोन्वेष का उल्लेख किया गया। गांवों में रहने वाले मेहनतकश लोगों के लिए मनरेगा में 40 हजार करोड़ अतिरिक्त देने की बात कही गई। 61 हजार करोड़ रुपये का इसमें पहले से प्रावधान है। इस तरह अब इस मद में एक लाख एक हजार करोड़ की राशि है। मनरेगा में मजदूरी की राशि भी 182 से बढ़ाकर 202 रुपये कर दी गई है। इतनी बड़ी धनराशि से कितनी आत्म निर्भरता आएगी? इसका परीक्षण करते हैं। इससे देश के गांवों में रहने वाले 5 करोड़ लोगों को ही सौ-सौ दिन का रोजगार मिल सकेगा जबकि गांवों में श्रमिकों की संख्या सरकारी आंकड़ों के अनुसार 12-13 करोड़ है। यहां यह भी याद रखना चाहिए कि मनरेगा में कभी पूरी राशि न तो मिलती है और जो मिलती है, वह कभी पूरी नहीं खर्च की जाती ।
सरकार ने पैकेज में किसानों की आय दोगुनी करने का वायदा दोहराया है। इसके तहत पैकेज में कृषि अवसंरचना हेतु 11 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान है। कारपोरेट खेती को बढ़ावा देने के लिए मिनिस्ट्री आफ लौ एंड जस्टिस द्वारा पांच जून को तीन अध्यादेश जारी किए हैं। इसमें जिस तरह के प्रावधान हैं, उससे कृषि से आय में वृद्धि संभव है, जीडीपी भी बढ़ जाएगी क्योंकि कारपोरेट सेक्टर मशीनों का इस्तेमाल करेगा पर इससे बेरोजगारी और बढ़ने की भी संभावना है। जो किसान छोटी-छोटी जोतों में परिवार के साथ जुटे रहते हैं, वे खाली हो जाएंगे। इससे आत्म निर्भरता कैसे आएगी? बेरोजगारी तो पहले ले ही बढ़ी हुई है। इसलिए पंजाब में इसका किसानों ने विरोध शुरू कर दिया है।
सरकार ने सूक्ष्म, लघू और मध्यम उद्योगों में जान फूंकने के लिए भी भारी भरकम रकम का प्रावधान किया है। यही नहीं श्रमिक कानूनों को शिथिल कर दिया है लेकिन उसका रिजल्ट कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। रिजर्व बैंक के खजाने में 15 लाख करोड़ से ज्यादा जमा हंै। गवर्नर साहब द्वारा बैकों से कहा जा रहा है कि कर्ज वितरण करें इसके लिए रिस्क भी ले लें जिससे अर्थव्यवस्था को गति मिल सके लेकिन बैंक वाले कोई रिस्क लेने के लिए तैयार नहीं हैं। उन्हें मालूम है कि इस वक्त लोगों के पास काम नहीं है, ऐसे में इसकी वसूली कैसे होगी? पैसा फंस गया तो उन्हीं पर जिम्मेदारी आएगी। इसलिए कुछ बैंक वाले कम ब्याज दर पर रिजर्व बैंक को पैसा देने के लिए तैयार हैं। कुछ बैंक वाले बांटना भी चाहते हैं लेकिन लोग लेने के लिए तैयार नही ंहैं क्योंकि कर्ज लेने के बाद उसकी अदायगी नहीं हुई तो मुश्किल हो जाएगी।
यहां यह भी याद रखा जाना चाहिए कि बीस लाख करोड़ का राहत पैकेज देश की जीडीपी का दस प्रतिशत होता है, यदि यह इस्तेमाल होता तो जीडीपी में कुछ तो दिखाई देता। जीडीपी के क्या हाल हैं यह सबके सामने है, अप्रैल से जुलाई की पहली तिमाही में जीडीपी -23.9 फीसदी आई है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि आत्म निर्भर भारत अभियान । नाम बड़े और दर्शन छोटे।
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