अर्थ व्यवस्था धड़ाम

                               

                                   


कोरोना काल में देश की अर्थ व्यवस्था  धड़ाम से जमीन पर आ गई है। पिछले चालीस साल में अब तक की यह सबसे बड़ी गिरावट है। इसके कारण चारों ओर त्राहि-त्राहि मची है। इसे इस तरह व्याख्यायित किया जा रहा है कि जैसे सब कुछ चला गया। कुछ नहीं बचा। हाय राम, अब क्या होगा? 

अर्थ व्यवस्था को मापने का सबसे बड़ा और व्यावहारिक पैमाना है- जीडीपी यानि सकल घरेलू उत्पाद। देश की वर्ष भर की होने वाली आय। सेंट्रल  स्टेटिक्स आफिस (सीएसओ) द्वारा इसके तिमाही आंकड़े भी जारी किए जाते हैं। इसकी हाल ही की रिपोर्ट के अनुसार इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही यानि अप्रैल 2020 से जून 2020 के बीच की जीडीपी -23.9 प्रतिशत हो गई है। यानि जीडीपी  करीब 24 प्रतिशत माइनस में आ गई है। कहां तो पांच-सात प्रतिशत वृद्धि की उम्मीद थी और कहां माइनस, ताज्जूब की बात तो है ही।

लेकिन अर्थव्यवस्था में यह गिरावट केवल यहीं नहीं है, यह वैश्विक है। उदाहरण के लिए इसी अवधि मेंअमेरिका की जीडीपी -10.6 प्रतिशत, जर्मनी की -11.9, इटली की -17.1, ब्रिटेन की -22.1,  स्पेन की -22.7 प्रतिशत है। और भी देशों की जीडीपी माइनस में है। सब पर कोरोना का असर है। चीन की जीडीपी भी गिरी है। लेकिन उसके द्वारा अपने यहां कोरोना को जल्द  ही  नियंत्रण में कर लिए जाने और अर्थव्यवस्था को खोल दिए जाने के कारण  वह माइनस में आने से बच गई है। लेकिन जीडीपी  गिरकर 3.2 प्रतिशत पर आ गई है।

इसमें कोई शक नहीं कि पूरे विश्व में भारत की जीडीपी में सबसे ज्यादा गिरावट है। इसे इस तरह भी समझ सकते हैं कि हमारी जीडीपी फरवरी 2020 में करीब 203 लाख करोड़ रुपये की थी। इसके तीन  प्रमुख भाग हैं। पहला कृषि का है। बेशक कृषि  से देश के 50-60 प्रतिशत लोगों की आजीविका चलती है लेकिन जीडीपी में इसका योगदान 15-16 प्रतिशत ही है।  दूसरा भाग है उद्योग। इसके भी कई उप विभाग हैं। जीडीपी में इसका योगदान 30-35 प्रतिशत है। तीसरा सबसे बड़ा भाग है सेवा क्षेत्र का। इसका हमारी जीडीपी में 50-55 प्रतिशत हिस्सा है।  जीडीपी में नुकसान हुआ है, वह सबसे ज्यादा कंस्ट्रक्शन सेक्टर ग्रोथ में -51.4 प्रतिशत, मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर ग्रोथ में -39.9, माइनिंग सेक्टर  ग्रोथ में -41.3, ट्रेड, होटल, ट्रासपोर्टग्रोथ में -47.4 प्रतिशत है। 

स्थिति इससे भी  भयंकर हो सकती है क्योंकि ये जो आंकड़े जारी किए गए हैं, वह संगठित क्षेत्र के हंै।  असंगठित इससे भी बड़ा है। लौकडाउन के दौरान ये जो दस करोड़ से भी ज्यादा लोग शहरों से गांवों की ओर घरों को लौटे हैं, और अभी तक इनमें से अधिकांश की जिंदगी पटरी पर नहीं लौटी। लाखों कारखाने और निर्माण के कार्य अभी तक बंद हैं। स्कूल कालेज, अभी तक बंद पड़े हैं। सब इसमें शामिल हैं।

फिर भी ज्यादा चिंता की बात नहीं है क्योंकि अर्थव्यवस्था में उतार चढ़ाव आते रहते हैं।  ज्यादा दूर नहंीं जाएं तो अपने देश में वर्ष 2009 में मनमोहन सिंह सरकार को सोना गिरवी रखना पड़ा था। वर्ष 2007 और 2009 के बीच वैश्विक मंदी के दौरान अमेरिका और यूरोप में अफरा-तफरी मच गई थी। अमेरिका में सैकड़ों बैंक दिवालिया हो गए। लाखों लोगों की नौकरी चली गई। तमाम लोगों ने आत्महत्याएं कर ली थीं।  जापान में वर्ष 2009 में अप्रैल से जून के बीच जीडीपी -17.8 हो गई थी। यदि चीन की बात करें तो दो साल पहले यानि 2018 में उसकी जीडीपी  पिछले 28 साल में रिकार्ड नीचे आ गई थीं।  इसके बाद फिर इन देशों की अर्थव्यवस्थाएं संभल गईं।  सब जानते हैं कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था दुनिया में पहले स्थान पर है, चीन की दूसरे और जापान की तीसरे स्थान पर। 

हमारे देश में जीडीपी में इतनी ज्यादा गिरावट इसलिए भी है क्योंकि यहां लौकडाउन के दौरान सभी आर्थिक गतिविधियिों को बंद कर दिया गया था , जबकि दूसरे देशों में अर्थव्यवस्था पर भी ध्यान दिया गया। सवाल यह है कि अर्थव्यवस्था ज्यादा महत्वपूर्ण है या इंसान का जीवन? सरकार ने जीवन को ज्यादा महत्व दिया । इसी का परिणाम यह है कि कोरोना से हमारे यहां तुलनात्मक रूप से कम मौतें हुईं। अमेरिका की आबादी हमसे एक तिहाई है, व्यवस्था और जागरूकता हमसे काफी बेहतर है फिर भी उसके यहां कौराना से मौतें हमसे करीब ढाई गुनी ज्यादा हैं। अपनी  जीडीपी ही तो गिरी है। यह फिर से संभल जाएगी।  जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था खुल रही है, आर्थिक गतिविधियां चालू हो रही हैं, जीडीपी में सुधार हो रहा है।  वर्ष की दूसरी तिमाही में यह कुछ सुधरेगी। इसके बाद तीसरे और चौथी तिमाही में और सुधार आएगा।  बेशकअभी समय लगेगा लेकिन धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था भी पटरी पर आएगी। इसमें कोई शक नहीं है। 



Comments

Popular posts from this blog

गौतम बुद्ध ने आखिर क्यों लिया संन्यास?

राजा महाराजाओं में कौन कितना अय्याश

खामियां नई शिक्षा नीति की