फिसड्डियों में फिसड्डी भारत

                   

       


अक्सर हम अपने देश के बारे में बहुत बड़ी-बड़ी बातें सुनते रहते हैं, जैसे हम दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र हैं। हम दुनिया की पांचवी आर्थिक शक्ति हैं। अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी के बाद हमारा ही नंबर है। अंतरिक्ष में उपग्रह छोड़ने से लेकर लंबी दूरी की मिसाइलें और हाइपर सोनिक तकनीक हासिल करने वाले दुनिया के गिने-चुने देशों की कतार में हैं हम । यह सब कहने का लब्बोलुबाब यह है कि हम किसी से कम नहीं हैं।

लेकिन यदि हम धरातल पर बात करें, आम जनता की शिक्षा, स्वास्थ्य,  बेरोजगारी और खुशी की बात करें तो हम अपने आसपास के छोटे-छोटे देशों के मुकाबले में भी नहीं टिकते।  यदि यह कहें कि हमारा देश फिसड्डियों में भी फिसड्डी है तो कुछ गलत नहीं होगा। हमें अपने देश की बुराई नहीं करनी चाहिए लेकिन सचाई से कब तक मुंह मोड़े रहेंगे।

सबसे पहले हम बात करते हैं प्रसन्नता की। जो हर किसी के लिए जरूरी है। यदि हम खूब मेहनत करने और कमाने खाने, बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएं खड़ी करने के बावजूद प्रसन्न नहीं हो तो इस सब का क्या मतलब? संयुक्त राष्ट्र ने किसी भी देश के विकास को जांचने के लिए प्रसन्नता का पैमाना 2012 से लागू किया है। इसके अंतर्गत जीडीपी, सोशल सपोर्ट, स्वास्थ्य सुविधा, स्वतंत्रता,  भ्रष्टाचार को शामिल किया है। नागरिकों की प्रसन्नता के मामले में संयुक्त राष्ट्र के 2019 के आंकड़े देखें तो भारत  140 वें स्थान पर है जबकि चीन, नेपाल, श्रीलंका, बंगलादेश और पाकिस्तान की स्थिति हमसे बेहतर है।

 वल्र्ड हैपीनेस इंडेक्स- 2019 एक नजर में

   रेंक            देश                 स्कोर 

   001-         फिनलेंड          7.054

019- संयुक्त राज्य अमेरिका   6.892

067-      पाकिस्तान           5.653

093-         चीन             5.191

100      नेपाल              4.913

125-    बंगला देश          4.456

130-    श्रीलंका              4.336

140-      भारत             4.015

154-     अफगानिस्तान      3.203

यदि बेरोजगारी को लें तो इसमें भी भारत की स्थिति अपने पड़ोसी देशों से  गई-बीती है। संयुक्त राष्ट्र के2020 के आंकड़ों के अनुसार भारत में पड़ोसी देशों से ज्यादा  बेरोजगारी की दर है। आंकड़े निम्न है-

देश          बेरोजगारी की दर (प्रतिशत में)

भारत                   8.5

पाकिस्तान             4.5

श्रीलंका               4.5

म्यांमार                 1.6

इसी तरह यदि भुखमरी की बात करें तो पूरी दुनिया में जरूरत का दो गुना खाद्यान्न पैदा होता है और भारत में जरूरत 2.6 गुना ज्यादा। फिर भी अपने यहां भुखमरी की स्थिति है। संयुक्त राष्ट्र के ग्लोबल हंगर इंडेक्स के अनुसार भारत की स्थिति पड़ोसी देशों से भी गई-बीती है। भारत इसमें 2014 में 55वें स्थान पर था। 2017 में 100 वें स्थान पर और अब 2019 में इससे भी दो पायदान नीचे आ गया है। 2019 के आंकड़े निम्न हैं्-

रेंक      देश  

1-      बेलारूस

   25-    चीन

   066    श्रीलंका

   069    म्यामार 

  073      नेपाल

   088    बंगला देश

    094   पाकिस्तान

  102    भारत

अब लेते हैं कोविड 19 महामारी के नियंत्रण के बारे में। पड़ोसी देशों की तुलना में तमाम साधनों से संपन्न होने के बावजूद भारत इस  मामले में लगातार पिछड़ रहा है। मरीजों की संख्या के मामले में विश्व में भारत दूसरे स्थान पर है। अभी पिछले दिनों तक हमारे टीवी चैनल चिल्ला रहे थे कि पाकिस्तान में कोरोना की  किसी को परवाह नहीं है, अब यह नहीं बचेगा, लेकिन उसने कंट्रोल कर लिया, हम पिछड़े गए। यदि यही स्थिति रही तो वह दिन दूर नहीं जबकि भारत कोरोना संक्रमण के मामले में दुनिया में पहले स्थान पर होगा। यह सही है कि मरने वालों की संख्या जनसंख्या के अनुपात में कम है तो उसकी वजह कोई सरकारी नहीं बल्कि लोगों की हर्ड इम्युनिटी पावर है। 

इससे जाहिर है कि अब तक जितनी भी सरकारें आई, उन्होंने पब्लिक की  इन बुनियादी जरूरतों पर ध्यान नहीं दिया। देश का सिर उठाने लाइक जो तरक्की की है, वह हमारे काबिल इंसीनियरों, वैज्ञानिकों, डाक्टरों की देन है। सरकारें बुनियादी जरूरूतों पर ध्यान देने की बजाय दूसरे मुद्दों पर लोगों का ध्यान भटका कर अपना उल्लू सीधा करती रही हैं। जबकि हमें जरूरत लोगों को जीवन स्तर को ऊपर उठाने वाले के लिए कार्यों की है। 




   


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