हाय-हाय बेरोजगारी

                              

                 


हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र हाइपर सोनिक तकनीक हासिल करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है। अंतरिक्ष में उपग्रह प्रक्षेपित करने  और लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलों के मामले में भी दुनिया के गिने-चुने विकसित देशेों की कतार में है। विश्व में सबसे नौजवान देश है, चीन से भी ज्यादा नौजवान हमारे यहां हैं। दुनिया के सबसे तेज दिमाग वाले आईटी इंजीनियर हमारे पास हैं लेकिन नौजवानों को रोजगार के मामले में फिसड्डी है। सबसे फिसड्डी।

हम अमेरिका, जर्मनी जैसे देशों की बात नहीं कह रहे, वहां जो-कुछ कभी बेरोजगार होते हैं, उन्हें सरकार बेरोजगारी भत्ते के रूप में इतना दे देती है कि वे मौज करते हैं। हम तो दक्षिण एशिया के अपनी जैसी जनसंख्या घनत्व वाले छोटे-मोटे देशों से भी  गई-बीती स्थिति हंै। यहां पीएचडी और बीटेक,  एमसीए पास नौजवान 8-10 हजार रुपये महीने की नौकरी के लिए मारे-मारे फिरते हैं। ऐसे तमाम लोग चपरासी और सफाई कर्मचारी तक की नौकरी कर लेते हैं। 

संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार 2019 में हमारे यहां बेरोजगारी की दर 5.36  प्रतिशत थी पिछले तीस साल से कमोवेश यही स्थिति चली आ रही थी। कितने ही सरकारें आई और गई लेकिन बेरोजगारी की समस्या का कोई समाधान नहीं कर सकी। जबकि इसी अवधि में यानि 2019 में पाकिस्तान में 4.45, बंगला देश में 4.19, श्रीलंका मं 4.20,  इंडोनेशिया में 4.69, म्यांमार में 1.58 प्रतिशत बेरोजगारी थी। 

गनीमत यहीं तक नहीं है कि 2020 में बेरोजगारी में भारी वृद्धि हुई है। कोरोना की बात नहीं कह रहे, इससे पहले जनवरी  माह में 7.17 और फरवरी के महीने में 7.78 प्रतिशत बेरोजगारी  हो गई। पिछले 45 साल में यह सबसे ज्यादा बेरोजगारी थी। जो मार्च  में बढ़कर 8.8 और इससे काफी ज्यादा हो गई। विश्वव्यापी कोरोना महामारी  के चलते किए लौकडाउन में बेरोजगारी में बेतहाशा वृद्धि हुई। इसे बेरोजगारी विस्फोट भी कह सकते हैं। जून माह में यह 23.5 प्रतिशत मानी गई है। चूंकि सभी आर्थिक गतिविधि बंद कर दी गई थी। इसलिए  यह स्वाभाविक था। लेकिन समस्या यह है कि अब जबकि बहुत कुछ खोल दिया गया है, बेरोजगारी की समस्या सुरसा की तरहअभी भी  मुंह फैलाए खड़ी है। कोरोना काल में  देश भर के करीब 12.2 करोड़ लोग बेरोजगार हुए। उनमें से अभी तक दो करोड़ लोग ही काम पर लौटे हैं। दस करोड़ से ज्यादा लोग अभी भी सड़कों पर हैं। 

जो सालों सालों से बेरोजगार चल रहे हैं, उनकी बात छोड़ दे तो भी इन 10 करोड़ से ज्यादा लोगों को कब तक रोजगार मिल पाएगा, कुछ नहीं कहा जा सकता क्योंकि अनेक कंपनियों ने हमेशा-हमेशा के लिए शटर बंद कर दिए हैं। उच्च शिक्षा के शिक्षण संस्थान 90-95 प्रतिशत प्राइवेट हैं। जो अभी तक बंद हैं। इनमें से अपवाद के रूप मं कुछ ने  थोड़े-बहुत स्टाफ को आधी सेलरी  देना शुरू कर दिया है। बाकी इंतजार कर रहे हैं, उनके लिए बुलावा आएगा या नहीं? लाखों उद्योग बंद हैं। मार्केट में मांग न होने का कारण उद्यमी अभी पूरी तरह उत्पादन करने की स्थिति में नहीं है। होटल, रेस्टोरेंट, मैरिज होम, सिनेमा घरों  के लाखों कर्मचारी सड़कों पर हैं। आईटी और अन्य कंपनियों ने अपने यहां छंटनी कर दी है। अनेक कंपनियों ने इंटरव्यू के बाद लाखों कर्मचारियों को ज्वाइनिंग नहीं दी है। अनुमान है खूब सामान्य स्थिति होने के बाद भी कम से कम एक साल कर करोड़ों नौजवान छूटे हुए रोजगार पाने से भी वंचित रह सकते हैं। 

बेरोजगारी के कारण हजारों नौजवान अब तक आत्महत्या कर चुके हैं। और कुछ आगे तक सकते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व में हर साल करीब आठ लाख लोग आत्महत्या करते हैं। इनमे से 21 प्रतिशत अकेले भारत में होते हैं। 

इन सभी समस्याओं को लेकर नौजवानों ने 5 सिंतबर को शिक्षक दिवस पर थालियां बजा सरकार का ध्यान इस और दिलाया। लेकिन सरकार कोई कारगर कदम उठाने की बजाय नई शिक्षा नीति को रोजगार परक बनाने की बात कह रही है। ठीक है कि नई शिक्षा नीति के तहत युवाओं को तकनीकी रूप से सक्षम बनाया जाएगा लेकिन सवाल यह है कि अपने यहां अभी जो आईटीआई, पौलीटेक्निक, बीटेक किए हुए नौजवान हैं, उनके लिए रोजगार है? लाखों लोग तकनीकी शिक्षा लेकर भी मारे-मारे फिर रहे हैं। केवल तकनीकी शिक्षा से भी कुछ नहीं होगा, रोजगार भी चाहिए, यह काम सरकार को ही करना होगा। मंदिर बनाकर श्रीराम के भरोसे देश को नहीं छोड़ा जा सकता।  सरकार सभी को नौकरी नहीं दे सकती , कुछ को तो दे सकती है, ऐसा करने की बजाय सरकारी नौकरियों के अवसर कम कर रही है। सरकार अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकती.  ज्यादा कुछ नहीं कर सकती तो  इसके लिए नीति और परिस्थितियां तो सृजित करनी ही होंगी। 





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