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छोटे राज्य सुखी राज्य

                                                          डा. सुरेंद्र सिंह अक्सर कहा जाता है, अपने देश की आबादी बहुत ज्यादा है। इसे जनसंख्या का विस्फोट बताकर ज्यादातर समस्याओं की जड़ •ाी इसे कहा जाता है। बीते सालों में जनता को बोझ बताकर इसे नियंत्रित करने के •ाी अनेक प्रयास किए गए। लेकिन प्रशासनिक और राजनीतिक तौर पर इससे सुधार की बजाय दु:खद परिणाम ही रहे। वास्तव में जनसंख्या को बोझ कहना अपनी अकुशलता को जनता के मत्थे मढ़ने की तरह है। सवाल यह है कि बहुत पहले यह देश सोने की चिड़िया थी, आबादी तब •ाी कोई कम नहीं थी, एक-एक के सौ-सौ पुत्र होते थे। लोगों की सेहत पर इसका कोई असर नहीं था, संपन्नता में कमी नहीं थी, दूध की नदियां बहती थीं। समाज के बहुत से तबकों को गांव में ही रोजगार मिल जाता था। जो कुछ कर नहीं सकते थे, उनकी मदद के लिए हरेक के दरवाजे खुले रहते थे।  देश दूसरे मुल्कों पर निर्•ार नहीं था। सब कुछ था यहां। बाहर के लोगों ने इसे लूटा। इसके तंत्र को नष्ट किया। अब देश आजाद है, इससे स्थिति में सुधार तो हुआ है लेकिन अपेक्षित नहीं।  सुविधा और संसाधनों के असमान वितरण से समाज में खाई पैदा हो रही