नकल की अकल
इंडिया में आजकल परीक्षाओं का दौर है। कुछ बोर्डो की परीक्षाएं खत्म हो चुकी हैं तो विश्वविद्यालयों आदि की कुछ परीक्षाएं चल रही हैं। परीक्षाएं हों और नकल नहीं हो, यह संभव ही नहीं है। दोनों अन्योन्याश्रित हैं। इन्हें विच्छेदित करना किसी के वश की बात नहीं। किसी जमाने में नकल करना पाप था। कोई सोच नहीं सकता था कि परीक्षा में नकल। पर अब नकल शाश्वत है, आत्मा की तरह अजर-अमर है। न इसे शस्त्रों से छेदा जा सकता है और नहीं जलाया जा सकता। उत्तर प्रदेश में एक बार कल्याण सिंह ने कोशिश की थी, अब विचारे कहीं दिखते हैं, राज्यपाल बनकर मन को संतोष भले ही दे लें लेकिन सत्ता में फिर कभी नहीं आ सके। अब राज करेगा वो नकल कराएगा जो। हाल की बात है, औचक निरीक्षण को जिला विद्यालय निरीक्षक एक केंद्र पर पहुंचे तो दंग रह गए थे, कक्षों में जितने बच्चे परीक्षा दे रह थे, उससे ज्यादा उसमें नकल कराने वाले भरे पड़े थे किसी लोकप्रिय नेता की जनसभा में भीड़ की तरह। इसके अलावा बहुत से लोग जंगलों पर लटके थे, कुछ छतों पर , पिछवाड़े मैदान में अलग से। जैसे किसी बड़े छत्ते पर मधुमक्खियां चिपकी और भिनभिना रही होती हैं, वैसे ही नकल थी। ए