राम नवमी

                  श्री राम साक्षात् परमब्रह्म परमात्मा हैं या महापुरुष? इसे लेकर विवाद हो सकता है। लोगों के अपने-अपने तर्क हैं। ज्ञान- विज्ञान के नित-नए उजागर हो रहे तथ्यों ने परमात्मा तत्व के अस्तित्व पर भी सवाल खड़े किए हैं।  लेकिन उनकी चाह सबको है, सबको चाहिए राम। हिंदुओं में चाहे  वे आधुनिक पश्चिमी सभ्यता से सराबोर हों,  सात समंदर पार रहते हों अथवा दूरदराज के किसी गांव में, चाहे किसी बड़े से बड़े पर आसीन हों अथवा कोई निर्धन भिखारी। सबके अंतर्मन में राम की लालसा है।
राम को कोई माने या नहीं माने लेकिन राम के गुणों को मानने से कोई इंकार नहीं कर सकता। चाहे कोई अपने जीवन में राम के गुणों को अमल में नहीं ला सके लेकिन कामना यही रहती है कि राम जैसे गुण हों। हरेक को राम जैसे भाई, पुत्र, पिता और पति की अभिलाषा है। यही नहीं अधिकारी, उद्यमी, व्यवसायी, राजनीतिज्ञ भी ऐसे ही चाहिए।  कल्पना करिए राम जैसे व्यक्ति राजनीति में हों। तब क्या भ्रष्टाचार रहेगा? तब कोई व्यक्ति दु:खी नहीं रहेगा। विषमता समाप्त होगी, किसी को आत्महत्या करने की जरूरत नहीं होगी। सभी को यथायोग्य अवसर मिलेंगे।
यदि सभी लोग राम जैसे पति हो जाएं तो किसी से बलात्कार होगा? किसी महिला को दहेज के लिए मुकदमे चलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। घरेलू हिंसा का नामोनिशान नहीं रहेगा। महिलाएं बेधड़क होकर कहीं भी और कभी भी आ-जा सकेंगी। भाई और पिता में राम जैसे गुण होने पर भाई-भाई और बाप-बेटों के झगड़े नहीं रहेंगे।
हिंदू मान्यता के अनुसार राम का जन्म त्रेता युग में चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी को मौजूदा उत्तर प्रदेश की अयोध्या नगरी में रानी कौशल्या की कोख से हुआ। वह राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र थे। उन्हें विष्णु के सातवें अवतार भी माना जाता है।  लोग सुख की लालसा से जीवन भर जुटे रहते हैं, अपने लिए ही नहीं अपनी आगे की अनेक पीढ़ियों तक के सुख का इंतजाम करते हैं लेकिन राम ने अपने जीवन में कोई सुख नहीं भोगा। वह जीवनपर्यन्त समस्याओं से जूझते रहे, राक्षसों (बुरे लोगों यानी बुराइयों) से लड़ते रहे। बचपन में ऋषि विश्वामित्र के साथ उनके यज्ञों को सफल बनाने में जुटे रहे, विवाहोपरांत पिता की आज्ञा पर बन को चले गए। वहां पत्नी के हरण पर वन-वन घूमे और रावण से लड़े। राम का यह जीवन यह बताने के लिए काफी है कि संघर्ष ही जीवन है, चाहे कोई पद या परिवार से बड़ा हो या छोटा, सभी को अपने अपने-अपने कर्म करने होते हैं। राम इसलिए महान नहीं हैं कि उन्होंने रावण को पराजित किया, वह बहुत पराक्रमी थे या वे अयोध्या के राजा बने। राजा, महाराजा न तो न जाने अब तक कितने पैदा और मर चुके। उनके नाम तक याद नहीं। राम इसलिए महान  हैं कि संकट और परेशानी में भी वह अपने दायित्वों से बिचलित नहीं हुए, उन्होंने संघर्ष किया। उन्होंने सभी के प्रति अपने कर्तव्य कर्मों का पालन किया, फल की परवाह नहीं की। वह मर्यादा पुरुषोत्तम थे। जाहिर है, किसी बड़े पद पर बैठना अथवा पराक्रम प्रदर्शित करने से ज्यादा महत्वपूर्ण सभी के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करना है। इन्हीं गुणों ने उन्हें भगवान बना दिया। व्यक्ति को परमात्मा का अंश माना जाता है, वह अपने गुणों से व्यक्ति से परमात्मा बन सकता है।
लोगों ने राम ही नहीं और बहुत से महापुरुषों को भी समय-समय पर भगवान का पद दिया। लेकिन वे स्थायी नहीं रह सके। लोगों ने उन्हें थोड़े ही समय में भुला दिए। लेकिन राम हैं कि भुलाये नहीं भूलते। वह ऊंच-नीच नहीं मानते, वह अहंकार नहीं हैं, वह भिलनी के झूठे बेर खा लेते हैं, पिता के वायदे को पूरा करने के लिए वह अपना सिंहासन त्याग देते हैं। वह दोस्ती भी निभाते हैं। ऐसे राम के जन्म दिवस को रामनवमी के दिन त्योहार के रूप में मनाकर लोग धन्य होते हैं। यह साबित करता है कि हम हिंदू सदाचारी हैं।
ऐसे राम की कामना किसे नहीं होगी। हजारों साल बीत जाने पर भी राम लोगों की आस्था में व्याप्त हैं। लोग उनकी याद में दान-पुण्य करते हैं। जप-तप करते हैं लेकिन जो और कुछ करना चाहिए, उस पर ज्यादा जोर नहीं देते। यदि लोग खुद में राम जैसे गुण पैदा करें, अपने बच्चों में राम जैसे संस्कार दें। व्यवसाय,  नौकरियों में राम जैसे बनकर काम करें तो लाभ चाहे हो न हो, राम को भी कोई तात्कालिक  लाभ नहीं हुआ लेकिन राम बन सकते हैं। राम बनना कोई राम का अंधानुकरण नहीं है, उनके जैसे कपड़े और खड़ाऊं पहनने से कोई राम नहीं बन सकता। समय और स्थितियां बदली हैं। जरूरत है आज के समय का राम बनने की। हम दूसरों में राम के गुण खोजने की कोशिश करते हैं, किसी में उन जैसे एकाधिक गुण देखकर प्रभावित हो जाते हैं, उनके मुरीद बन जाते हैं लेकिन खुद में वह गुण विकसित करने का प्रयत्न कम ही करते हैं। इस त्योहार को मनाने की ज्यादा सार्थकता तभी है जबकि हम पाखंड से दूर राम के गुणों को अपने और अपने परिवार में विकसित करेंं।

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