बधाई बुखार

            अभी पिछले दिनोंं मोबाइल पर एक मित्र का बासोड़े का बधाई संदेश मिला। बासोड़ा हिंदुओं में त्योहार सा त्योहार नहीं है। होली के बाद  चैत्र मास में पड़ने वाले इस त्योहार के लिए एक दिन पहले खाना बनाकर उसे दूसरे दिन खाया जाता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह हानिकारक है। लेकिन त्योहार तो त्योहार है। इससे पीछा भी नहीं छुड़ा सकते।  एक तरह से इसे कुत्तों का त्योहार कहा जाए तो अत्युक्ति न होगी। वैसे तो गली के कुत्तों को रोजाना, लात, लाठी, ईंट-पत्थर आदि का सामना करना पड़ता है। साल में यही एक दिन ऐसा है जबकि कुत्तों को खोज-खोज कर ससम्मान खाना खिलाया जाता है।  कुत्ते पेट भर जाने पर दूर जाकर अंगड़ाई लेते हैं। लोग उन्हें बुलाते रह जाते हैं, वे खाने की तरफ मुंह करके नहीं देखते।  जो महिला कुत्तों को खाना नहीं खिला पाती, उसे लगता है कि त्योहार अधूरा सा रह गया। इसलिए अगली बार कोशिश करती है कि जल्दी से जल्दी कुत्ता पकड़कर उसे खाना खिला पुण्य लाभ लिया जाए, बाकी काम बाद में होते रहेंगे।
बात हो रही थी बधाई की, कुत्तों और बासोड़े की बात फिजूल में कर बैठा। आजकर छोटे-बड़े हर त्योहार पर मित्रजनों के बधाई संदेश मिल जाते है। गणेश चतुर्थी की बधाई, रक्षाबंधन की बधाई, जन्माष्टमी की बधाई, दशहरा की बधाई, दीपावली, गोवर्धन पूजा, भैया दूज की बधाई, भोला चौदस की बधाई, निर्जला एकादश की बधाई। नवरात्र की बधाई।  एक तरह से यह भी कह सकते हैं कि आजकल की भागमभाग जिंदगी में बधाई ही ऐसा माध्यम है जिसके जरिए सारे त्योहारों का पता चलता है, वरना पता ही नहीं चले कब कौन सा त्योहार निकल गया। पहले इक्का दुक्का अवसरों पर बधाई संदेश मिला करते थे, अब बाढ़ सी आ गई है। यह भी कह सकते हैं कि लोगों को बधाई बुखार हो गया है।  फ्रैंच और लेटिन शब्दों से मिलकर बने कॉग्रेच्युलेशन शब्द का यह समानार्थी ‘बधाई’ शब्द हिंदी भाषी लोगों में आजकल सर्वाधिक प्रचलित शब्दों में से एक है। इसने रामराम और नमस्ते को पीछे छोड़ दिया है। इसके जरिए किसी की खुशी में दूसरा शरीक हो, उसकी खुशी को द्विगुणित कर देता है।
अभी अपने राष्ट्रपति मुखर्जी और प्रधानमंत्री मोदी ने वर्ल्ड कप जीतने के लिए आस्ट्रेलिया की टीम को बधाई दी है। मोदी ने बंगला देश दिवस पर वहीं की प्रधानमंत्री और पाकिस्तान के राष्ट्रीय दिवस पर वहां के प्रधानमंत्री को बधाई दी है। सचिन तेंदुलकर ने बैडमिंटन स्टार सायना नेहवाल को बधाई दी है। बड़े लोग एक दूसरे को आए दिन बधाई देते रहते हैं, उनके बधाई संदेश अखबारों में भी प्रमुखता छपते हैं। यह उनकी ड्यूटी में शामिल है। यदि वे ऐसा नहीं करें तो समझा जाएगा कि बड़े घमंडी हैं।
यहां तक तो बात सही है। लेकिन ऊपर से नीचे तक, बड़े से छोटे तक बधाई ही बधाई है।  कोई बच्चा किसी क्लास में पास हो जाए तो बधाई, किसी टेस्ट में पास हो जाए तो बधाई। किसी इंटरव्यू के लिए कॉल आ जाए तो बधाई। सकेक्शन हो जाए तो बधाई, ज्वाइन कर ले तो बधाई, प्रमोशन मिल जाए तो बधाई। कोई निलंबित होने के बाद बहाल हो जाए तो बधाई। किसी का अखबार में फोटो छप जाए तो बधाई, नाम छप जाए तो बधाई। किसी की शादी-ब्याह तय हो जाए तो बधाई, शादी-ब्याह हो तो बधाई, शादी की वर्षगांठ हो तो बधाई। किसी का जन्म हो तो बधाई, जन्म दिन हो तो बधाई।
वैसे बधाई ने कुछ काम आसान कर दिए हैं। पहले त्योहारों पर बुजर्गों के पास जाकर आर्शीवाद लेते थे। उनके चरण स्पर्श करते थे, कुछ देर पास भी बैठते थे। अब फोन पर बधाई से काम चला लेते हैं, आने-जाने का झंझट खत्म। ऐसे ही दोस्तों, नाते-रिश्तेदारों, अफसरों को खुश करने के लिए उनके पास जाने की जरूरत नहीं, समय-समय पर उन्हें बधाई संदेश भेजते रहो। इतने से काम चल जाता है।  कोई आप से शिकायत करे कि भई आप तो दिखाई भी नहीं देते हो, कौन सी दुनिया में रहते हो? आप फटाफट बधाई संदेश दिखाकर सामने वाले को चित्त कर सकते हैं। नई साल के पहले या ऐसे ही कुछ अवसरों पर लोग गिनते रहते हैं कि उन्हें कितने बधाई संदेश मिले। बधाई के ये संदेश स्टेटस सिंबल बन गए हैं।
पर इन्होंने आफत भी कम पैदा नहीं की। मानो कोई काम करने में तल्लीन हैं, तभी झट से एक बधाई संदेश आ गया। -‘‘पूरा मूड बिगड़ गया। लो अब उसको रिप्लाई भेजो, वरना समझेगा, कैसा बेकार का आदमी है’’। अभी एक को रिप्लाई भेजी, दूसरे का बधाई संदेश चला आया। उसे भी रिप्लाई भेजो। बहुत से काबिल लोगों ने रेडीमेड रिप्लाई मोबाइल में सेट कर लिए हैं। इधर से बधाई आई, तुरंत की तुरंत रिप्लाई की सप्लाई। उस दिन मैंने नए कपड़े पहन लिए, लोग बधाई देने लगे। मैंने झटपट उतारकर पुराने पहन लिए। कम से बधाई से तो मुक्ति मिले। किसी का कोई अच्छा काम बन जाते तो बताने से डरते रहते हैं, अब बधाई संदेश भी झेलने पड़ेंगे। कोई-कोई ऐसे भी हैं जो मांग कर बधाई संदेश ले लेते हैं। -‘‘भाई जान सब लोगों के बधाई संदेश आ गए  आपका ही नहीं मिला?’’ ऐसे वक्त पर शर्मिंदा होने के अलावा चारा क्या है।  इसलिए समझदार लोग बधाई के मौके तलाशते रहते हैं, कब किसे बधाई देनी है।
बधाई का कारोबार भी जोरों से चल निकला है। दुकानों पर इसके अच्छे रंगीन सजावटी कार्ड मिल जाते हैं।  अच्छे बधाई संदेश भी बने बनाए मिलने लगे हैं। बधाई के इस कार्य पर शोध किया जा सकता है। यह करियर का भी मसला है।  एक समस्या आ रही है, बड़ा आदमी भी बधाई देता है और छोटा आदमी भी। कुछ लोग सोचते होंगे, इस पर गुस्सा भी करते होंगे, छोटे और बड़े की बधाई में कुछ तो अंतर होना चाहिए। मेरी नजर में यह समता का वाचक है। 

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