वो तो मैंने झूठ बोला था

‘‘सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप,
जाके हृदय सांच है ताके हृदय आप’’।
कुछ लोग भक्तिकाल की इन पंक्तियों को आज भी गुनगुनाते रहते हैं और गाहे बगाहे इनके हवाले से उपदेश देने में संकोच नहीं करते, पर ऐसे लोगों की संख्या दिन पर दिन घट रही है। दुनिया को यदि दो भागों में बांटा जाए तो एक बड़ा हिस्सा झूठ बोलने वालों का होगा दूसरा छोटा सांचाधारियों का। पहले हिस्से में बड़े-बड़े मठाधीश आएंगे, दूसरे में पिद्दी से लोग, जिनकी कहीं कोई औकात नहीं होगी।  जमाना बदल गया है साहब। अब झूठ के बिना गुजारा नहींं कर सकते, एक दिन भी काटना मुश्किल हो जाएगा। आप ही बताइए जब अंग्रेजों के जमाने के कानून अप्रासंगिक हो सकते हैं भक्तिकाल तो और भी ज्यादा पुराना है।
नेताजी अक्सर झूठ बोलते हैं।  पकड़े और विरोध किए जाने पर दूसरा झूठ बोल देते हैं, ऐसा उन्होंने नहीं कहा। प्रिंट मीडिया में यह चल जाता है, क्योंकि उनके पास कोई सुबूत नहीं होता सिवाय रिपोर्टर की डायरी के। जब से इलेक्ट्रानिक मीडिया आया है, यह कहना मुश्किल हो गया है, उसके पास सुबूत जो है। लेकिन झूठ के भी तमाम रूप हैं। नेताजी अब कहने लगे हैं, उनके कहने का यह आशय नहीं था, उनकी बात को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया है, पूरे बयान को नहीं दिखाया आदि आदि। रिपोर्टर विचारा पूरी क्लिपिंग किस-किस को दिखाता फिरे, कोई सुनने वाला है?
झूठ के अनेक फायदे हैं। झूठ बोलकर अपने निखट्टू बेटे की काबिल लड़की से ब्याह रचा सकते हैं। लड़का और लड़की एक दूसरे को पटा सकते हैं।  इंटरब्यू में झूठ बोलकर नौकरी हासिल कर सकते हैं। झूठी खबरें लिखकर अखबार में बाईलाइन ले सकते हैं, बॉस से तारीफ पा सकते हैं।  झूठ बोलकर दूसरों पर रुतवा जमा सकते हैं। तसदीक करने के लिए किसके पास वक्त है। झूठ से बड़े-बड़े काम हो जाते हैं। जरा सोचिए यदि युधिष्ठर झूठ नहीं बोलते, श्रीकृष्ण झूठ का सहारा नहीं लेते तो महाभारत में पांडयों को विजय मिलती?
यदि प्रोफेसर कक्षा में झूठ बोलें तो चलेगा? यदि वकील अदालत में झूठ बोले तो चलेगा? यदि कोई संन्यासी प्रवचन में झूठ बोले तो चलेगा? यदि कोई डाक्टर मरीज से झूठ बोले तो चलेगा? झूठ बोलना भी न हर किसी के वश में है और न हीं  अधिकार क्षेत्र में ।
कहने वाले कह रहे हैं कि मोदी झूठ बोलकर सत्ता में आ गए हैं। आ गए तो आ गए, उन्हें किसने रोका था।  उनमें सामर्थ्य है, काबिलियत है। ‘अच्छे दिन’ नहीं आ रहे हैं तो नहीं आएं, उनकी बला से। ज्यादा चिल्ल पों की तो एक और झूठ बोल देंगे। झूठ भी एक कला है।  हर किसी के पास यह कला नही होती।  किसी का झूठ भी सच जैसा दिखता है तो किसी का सच भी झूठ प्रतीत होता है।
पहले हाथ पर गंगाजली रखो या कसम खिलाओ, व्यक्ति तोते की तरह सच-सच बोलने लगता था। अब उससे काम नहीं चलता ये चीजें पुरानी हो गईं। यह तकनीक का जमाना है। झूठ पकड़ने की मशीनें आ गई हैं। लेकिन लोग ऐसे-ऐसे घाघ हैं कि उसे भी मात देते देते हैं। उनके सामने पुलिस के भी सारे हथकंडे फेल हैं। मेरे एक परिचित पुलिसकर्मी ने सेठ जी को लूट मारपीठ कर फेंक दिया। बिचारे पर पुलिस का बेलन चला लेकिन सच को नहीं कुबुला। गांव में ४० बीघा जमीन खरीद ली, शहर में कोठी है, मजे से कार में चलते हैं। लोग अपनी जान दे देते हैं लेकिन सच को सामने नहीं आने देते।  अपना भला न सही परिवार वालों तो फला होगा।  बीवी, बच्चे चैन से गुलछर्रे उड़ाएंगे को याद करेंगे। झूठ बाबा परलोक में भी उनकी मदद करेगा।
किसी दफ्तर में जाइए  नौकरी के लिए, यदि नौकरी देने वाले को यह पता लग जाए कि वह सांचाधारी है तो दूर से नमस्ते कर लेगा। आप लाख काबिल बने रहिए, उन्हें ऐसी काबिलियत की जरूरत नहीं है जो उनके धंधे को नुकसान पहुंचाए। कितने ही अफसर हैं जो अपनी ईमानदार प्रवृत्ति का दु:ख भोग रहते हैं, जब पोस्टिंग का नंबर आता है तो उन्हें पहले ही किनारे कर  किसी बेकार की जगह पर पटक दिया जाता है। झूठे और भ्रष्टों को मलाईदार पदों पर सुशोभित कर दिया जाता है।
एक चीफ इंजीनियर थे। खुदा जाने कैसे इस पोस्ट पर आ गए। मुझे तो अभी तक ताज्जुब होता है। कोई कोई रौब-दौब नहीं, मरियल से। चपरासी तक उनकी बात को अनसुनी कर देते। उच्च अधिकारी उनकी बजाय उनके अधीनस्थों से काम लेते, उन्हीं को निर्देश देते। मैंने कुरेदा तो धीमे से बोले-मैं ईमानदार हंू। मुझे हंसी आ गई। क्या ईमानदार लोगों की अब यह स्थिति आ गई है?
कहते हैं एक झूठ यदि कई बार कहा जाए तो वह सच हो जाता है। सच जैसा अर्थ देने लगता है। इसी तरह यदि सच को कई बार कहा जाए तो वैसा ही रहता है। कोई ज्यादा अर्थ नहीं देता।
तरक्की का रास्ता झूठ से होकर गुजरता है। यदि आप झूठ बोलना नहीं जानते तो फेल हैं। सफलता के लिए झूठ बोलिए, इस फन में माहिर बनिए। आज ही से अभ्यास करिए। झूठ सिखाने के लिए कोचिंग सेंटर, इंस्टीट्यूट और विश्वविद्यालय खोले जा सकते हैं। काफी स्कोप है, इस क्षेत्र में। सच कहा रहा हूं मैं भी तो यह आपसे झूठ बोल रहा हूं।

Comments

Popular posts from this blog

गौतम बुद्ध ने आखिर क्यों लिया संन्यास?

राजा महाराजाओं में कौन कितना अय्याश

खामियां नई शिक्षा नीति की