कल क्या होगा?

             अंग्रेजी में कहावत है ‘टुमारो नैवर कम्स’। हिंदी में इसी की तर्ज पर कहा जाता है-‘कल किसने देखा है’। यह बात आज भी उतनी ही सच है, जितनी हजारों, लाखों साल पहले और कल भी रहेगी। कल क्या होगा, इसकी कल्पना सभी करते रहे हैं। फिर भी कल अनिश्चिंत है, यह कभी आभासी है तो कभी अनाभासी। रामायण के रचयिता ने पुष्पक विमान की कल्पना की, महाभारत के रचयिता ने आग्नेयास्त्रों की जो परवान चढ़ीं। बॉलीवुड की कई फिल्मों में ऐसी कल्पनाएं हैं, जिनके अभी तक साकार होने की दूर-दूर तक उम्मीद नहीं दिखती। फिर भी कल क्या-क्या हो जाएगा, इसकी उम्मीद से डोर हमेशा बंधी रहती है। 
हजारों सालों पहले जब ताड़ पत्रों पर लिखा जाता तब क्या कोई यह उम्मीद कर सकता था कि इसके स्थान पर कागज और मशीनें आ जाएंगी। क्या कोई यह सोच सकता था कि संचार का माध्यम आज जैसा आसान हो जाएगा जिसमें सात समुंदर आर-पार बैठे व्यक्ति आपस में ऐसे बतिया सकेंगे जैसे वे आमने-सामने हों। एक क्लिक से तस्वीरें कहीं से कहीं भेजी जा सकेंगी। जब फिल्में शुरू हुई, तब बहुतों को सिनेमाघरों में बैठने पर डर लगता था कि कार उन्हें कुचल न दे।
आज जब हम अपने को बहुत विकसित मान रहे हैं, तब भविष्य के गर्भ में ऐसा अभी बहुत कुछ छिपा है जिसे हम तो नहीं देख पाएंगे,  आगे की पीढ़ियों के लिए भी चौकाने वाला होगा। किसी जमाने में हाथ के साफ सुधरे लेखन का बहुत महत्व था, केवल अच्छे  लेखन के आधार पर सरकारी नौकरियां मिल जाती थीं। अब लेखन का जमाना चला गया है। किसका कैसा हस्त लेखन है, इसका कोई मायने नहींं रह गया है। खराब हस्तलेखन वाले टॉप डॉक्टर और इंजीनियर बन जाते हैं, सुंदर लेखन वालों को चपरासी की नौकरी भी नसीब नहीं होगी। अब कई दफ्तरों में लिखने के नाम पर केवल हस्ताक्षर करने पड़ते हैं। वैसे हस्ताक्षर भी डिजिटल होने लगे हैं। आगे चलकर स्कूल, कालेजों में भी हाथ से लिखने का कार्य बंद होगा। पुरानी पध्दति के स्कूल कालेज बंद होने के कगार पर हैं। ज्यादातर बच्चे उनमें पढ़ने ही नहीं आते। आगे संभव है कि सारे स्कूल, कालेजों की यह व्यवस्था ही बंद हो जाए। किताबों की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। किताबें संग्रहालय की चीजें बन जाएंगी। बच्चे घर बैठे स्क्रीन पर देख कर दक्षता हासिल कर लेंगे।  इसके लिए मोबाइल और दूसरे बहुत से माध्यम हो जाएंगे। पढ़ने में दिमाग लगाने की बजाय दृश्य देखकर उसे समझना ज्यादा आसान है। भाषा भी बदल जाएगी। न ये विशुध्द हिंदी रहेगी, न विशुध्द अंग्रेजी जर्मन, स्पैनिश, चीनी या अन्य कोई भाषा। सारी भाषाओं के कुछ-कुछ शब्दों के आधार पर नई भाषा विकसित होगी जो कम से कम शब्दों में ज्यादा अर्थ प्रदान करेगी।
चिकित्सा की व्यवस्था  बदल सकती है। तमाम डाक्टरों से हाथों से यह धंधा कंपनियों के हाथ में आ सकता है। कंपनियां लक्षणों के आधार पर मुफ्त में चिकित्सीय सलाह आन लाइन देंगी। रोगों की जांच मोबाइल या अन्य उपकरणों के जरिए घर बैठे हो सकेंगी। यही नहीं, घर बैठे ही दवा आ जाएंगी। कब कौन सी दवा लेनी है, इसके लिए आपको याद रखने की जरूरत नहीं और नहीं नर्स की। साफ्टवेयर के जरिए इसके मैसेज मिला करेंगे। छोटे-मोटे आपरेशन लोग खुद कर लिया करेंगे। बड़े आपरेशन भी आन लाइन किए जा सकेंगे। अंग प्रत्यारोपण का काम बहुत आसान हो जाएगा।
यातायात की व्यवस्था में क्रांति आएगी। पहले ज्यादातर लोगों के पास कारें आएंगी। ऐसे भी कारें होंगी जो चलती-फिरते घर की मानिंद इस्तेमाल होंगी। उन्हीं में फ्रैश हो सकेंगे। उन्हीं में सो और रह सकेंगे। पेट्रोलियम के स्थान पर परमाणविक किट आएंगी। सौर ऊर्जा से भी वाहन चलेंगे। मोबाइल चार्ज की तरह ईधन भी चार्ज किया सकेगा। सारे पेट्रोल पंप बंद हो जाएंगे। ऐसे उपकरण ईजाद होंगे जिनसे व्यक्ति  कहीं भी उड़ सकेगा।  सड़क से ज्यादा लोग आसमान में चलेंगे।
राजनीति में बदलाव के तहत पूरी दुनिया एक महादेश बन जाएगी फिलहाल जो बड़े-बड़े देश दिख रहे हैं, वे राज्य बन जाएंगे। तब जाति और धर्म की राजनीति नहीं चलेगी।  बिना किसी पासपोर्ट और बीजा के कोई कहीं भी आ जा सकेगा। कोई कहीं भी रोजगार कर सकेगा, कहीं भी रह सकेगा। लोगों के पास अपनी एक पहचान रहेगी। प्रशासन के लिए क्षेत्रबार व्यवस्थाएं होंगी। जाति और धर्म की दीवारें खत्म हो जाएंगी। मानवीय मूल्यों में इजाफा होगा। नए मानवीय मूल्य विकसित होंगे। भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा। नोट की व्यवस्था नहीं रहेगी। सारे भुगतान आन लाइन होंगे। कायदा कानून बदल जाएंगे।
खान-पान की व्यवस्था भी आमूल-चूल बदल जाएगी। वनस्पति  आदि  सारी चीजें मिट्टी से पैदा होती हैं और आयु पूरी होने पर मिट्टी में ही मिल जाती हैं। यही हाल इंसान और सभी जीव जंतुओं का है। फिर सीधे मिट्टी से भी खान-पान क्यों नहींं हो सकता। मिट्टी और पत्थरों से ज्यादा स्वादिष्ट और पौष्टिक बिस्किट बनाए जा सकेंगे। 
झूठा-फरेबी, जालसाज, चोर-उचक्के, बेईमान, बलात्कारियों के बारे में मेरी कल्पना शक्ति काम नहीं कर रही है। आप सोचिए।
       

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