महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राजा महेंद्र प्रताप
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देश की जंगे आजादी में जब लोग अपनी कुर्बानियां दे रहे थे, हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल रहे थे, लाठी-डंडे खा रहे थे, तब अधिकांश रियासतें अंग्रेजों के साथ थीं। 1857 की क्रांति में पराजय से वे इतनी नर्वस हो गईं कि उन्होंने अंग्रेजों से संधियां कर लीं। उन्हीं को अपना नियंता मान लिया था लेकिन छोटी सी रियासत मुरसान के राजा महेंद्र प्रताप सिंह देश की आजादी के लिए पुरजोर ढंग से लड़े। वह एक साथ कई मोर्चोंं पर लड़े। केवल भारत में ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी लड़े। उन्होंने अपना पूरा जीवन, सुख और संपत्ति देश की बेहतरी के लिए कुर्बान कर दी। आजादी की लड़ाई के सितारे सुभाष चंद बोस ने जिस आजाद हिंद सेना के जरिए अंग्रेज सरकार के खिलाफ लड़ाई का बिगुल फूंका, उसकी नींव इन्होंने ही रखी । वह बहुत ही दूरदृष्टा थे। यह अलग बात है कि आजादी के इतिहास लेखन में उन्हें किनारे पर कर दिया गया। एक दिसंबर 1886 को उत्तर प्रदेश में स्थित हाथरस रियासत के राजा घनश्याम सिंह के घर जन्मे उनके तीसरे पुत्र राजा महेंद्र प्रताप का मूल नाम खड़क सिंह था। पडोस की मुरसान के राजा हरनारायण सि