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Showing posts from February, 2021

‘जय जवान जय किसान’ नारा क्यों?

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                                    जब-जब किसानों या जवानों  की कोई बात आती है तब-तब प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी का यह नारा- ‘जय जवान जय किसान’ लोगों की जुबान पर आ जाता है। देश का यह सबसे लोकप्रिय नारा है। शास्त्रीजी के गुजर जाने के इतने सालों पर भी यह वेद वाक्य की तरह है। चाहे किसी पार्टी की सरकार हो चाहे कोई आंदोलन हो यह नारा सबके लिए अहम बन जाता है। अब जबकि किसान तीन बिलों के खिलाफ  आंदोलन पर है, तब भी यह नारा गूंजता रहता है। आखिर क्या बात है इस नारे में और क्यों  इसे देने की आवश्यकता पड़ी? लाल बहादुर शास्त्री छोटे कद यानि पांच फुट दो इंच के इंसान थे। उन्होंने इसके माध्यम से दुनिया की सबसे बड़ी ताकत अमेरिका और पडोसी दुश्मन देश पाकिस्तान को चुनौती दी।  पूरे देश को एकजुूट भी किया। हुआ यह था चीन से 1962 के युद्ध में पराजय के बाद जवाहर लाल नेहरूजी की मृत्यु हो गई थी। देश की आर्थिक हालत खराब थी। ऐसे में भारत को कमजोर समझ पाकिस्तान ने अपने देश पर हमला बोल दिया था। शास्त्रीजी के नेतृत्व में भारतीय सेना ने इसका न केवल मुंह तोड़ जवाब दिया बल्कि पाकिस्तान के भीतर जाकर लाहौर तक कब्जा कर ल

एक ऐसे प्रधानमंत्री जिनका सामान फेंक दिया गया था

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                                          अब जब राजनीति में भ्रष्टाचार चरम पर है। एक बार चुनाव लड़ने पर जनप्रतिनिधियों की  संपत्ति कई गुना बढ़ जाती हैं, विधान सभा  तक के चुनावों में  लोग करोड़ों फूंक देते हैं, पर इसी भारत में एक ऐसे भी प्रधानमंत्री रहे जो आधा दर्जन से ज्यादा बार जनप्रतिनिधि रहे, सारी प्रमुख जिम्मेदारियां संभाली, वह सभी राजनेताओं से ज्यादा जीए, करीब सौ वर्ष । पर अपनी पूरी जिंदगी में अपना कोई मकान तक नहीं बनवा सके। ये थे- गुलजारीलाल नंदा। नंदा साहब एक बार नहीं दो-दो बार प्रधानमंत्री रहे, पहली बार प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निधन पर उन्हें 13 दिन यह जिम्मेदारी निभानी पड़ी। दूसरी बार लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद उनके कंधों पर यह जिम्मेदारी आई। दोनों बार में वह कुल 26 दिन प्रधानमंत्री रहे। भले ही कार्यवाहक थे। लेकिन प्रधानमंत्री तो थे ही। उन्होंने विषम स्थितियों में देश को संभाला।  उनका कद प्रधानमंत्री स्तर का था। हर बार उन्हें इस जिम्मेदारी के उपयुक्त समझा गया तो कोई तो बात उनमें थी। वह बहुत ही ईमानदार, सरल, सादगी पसंद और गांधीवादी काबिल इंसान थे। आज भले ही लोग

जब राजपूतों का मुगलों से मोहभंग हुआ

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                                              यह जगत प्रसिद्ध है कि राजपूतों और मुगलों के डेढ़ सौ साल से ज्यादा तक रोटी और बेटी के घनिष्ठ संबंध  रहे। दो दर्जन से ज्यादा राजपूतानियों की मुगलों से शादियां की गई। लेकिन  एक दौर ऐसा भी आया जबकि राजपूतों का मुगलों से मोहभंग हो गया। मेवाड़ के शासक को पहले से ही खफा थे। बाद में जयपुर और अन्य घरानों के भी राजपूत नाराज हो गए। भारत में मुगलों की सल्तनत खत्म होने का यह भी एक कारण रहा। इतिहासकारों के अनुसार राजपूतों और मुगलों के रोटी और बेटी के संबंधों की शुरुआत सबसे पहले 6 फरवरी 1562 को आमेर के राजा भारमल की बेटी जोधाबाई की सम्राट अकबर के साथ शादी से हुई। इसके बाद तो यह सिलसिला चल निकला। अकबर के साथ केवल जोधाबाई ही नहीं, अलग-अलग राजाओं ने पांच अन्य राजपूत राजकुमारियों की शादी की। इसके बाद उनके पुत्र जहांगीर के साथ चार  राजपूत राजकुमारियां ब्याही गईं।  औरंगजेब जिसे मुगलों का सबसे क्रूर शासक माना जाता है, उसकी दो रानियां राजपूत थीं। औरंगजेब के पुत्र और पौत्रों की भी राजपूत रानियां थीं। बहादुर शाह प्रथम को तो जयपुर के संस्थापक महाराजा जय सिंह द्वितीय क

राजा महाराजाओं में कौन कितना अय्याश

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                                    लोग मुगलों को अय्याश कहते हैं,  उनमें सबसे उदार रहे सम्राट अकबर को भी इसी श्रेणी में मानते हैं। क्योंकि उनकी एक से अधिक रानियां थीं। इनमें छह रानियां तो हिंदू ही थी। जहांगीर की नौ रानियां थीं जिनमें से चार हिंदू। शाहजहां की मुमताज समेत आठ  और औरंगजेब की नवाब बाई समेत अनेक रानियां थीं।  लेकिन इस मामले में हिंदू राजा भी किसी से कम नहीं थे। सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे थे। भरतपुर के महाराजा सूरजमल की रानी किशोरी  देवी समेत छह रानियां थीं। महाराणा प्रताप की अजबदे पंवार समेत 11 रानियां और छत्रपति शिवाजी की आठ रानियां थीं। महाराणा प्रताप के पिता महाराणा उदय सिंह की 22 रानियां थीं। मारवाड़ के राजा अजीत सिंह की पांच दर्जन से ज्यादा रानियां थीं। सन 1724 में जब उनकी मृत्यु हुई तो 63 उनके साथ सती हुईं। जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय की 27 रानियां थीं।  मध्यकाल का वह जमाना ही ऐसा था।  बेटियों की इज्जत थी ही कहां, बहन और बेटियां एक सुविधा की तरह  इस्तेमाल की जाती थीं। वे राजगद्दी पाने या राजगद्दी बचाने का साधन मात्र गईं थीं।  तभी तो जब अकबर ताकतवर

क्षत्रिय विरोधी नहीं थे महर्षि परशुराम

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 /                                                           महर्षि परशुराम पर दो आरोप लगाए जाते है। एक यह कि वह क्षत्रिय विरोधी थे और दूसरे बहुत गुस्सैल। स्थिति यह है कि जब भी कभी परशुरामजी की बात आती है तो बहुत से क्षत्रिय नाक-भौं सिकोड़ने लगते हैं। ऐसे ही जब भी कोई आदमी भारी गुस्सा दिखता है और  वह बार-बार गुस्सा होता है तो लोग झटपट उसे परशुराम का वंशज कह डालते हैं।  पर हकीकत में महर्षि परशुराम तो न क्षत्रिय विरोधी थे और नहीं गुस्सैल। वह तो विष्णु के छठे अवतार थे। उन्हें भगवान का दर्जा प्राप्त था। यह दर्जा किसी को ऐसे ही नहीं मिल जाता है। इसके लिए बहुत ही कर्तव्यपरायणता, सहिष्णुताऔर त्याग करना पड़ता है। महर्षि परशुराम के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने एक बार नहीं 21बार धरती से क्षत्रियों का समूल नाश किया।  यह बहुत ही अतिरंजित बात है। वास्तव में  यह हैहय वंशी क्षत्रिय राजा सहस्त्रार्जुन और परशुरामजी के बीच  धर्म और अधर्म की लड़ाई थी। यह ऐसी ही लड़ाई थी जैसे राम और रावण के बीच हुई। रावण पर्यादा पुरुषोत्तम राम की पत्नी का हरण कर ले गया था जबकि सहस्त्रार्जुन महर्षि की पिता जमदग्नि की कामधे

दुनिया का एक और अजूबा जयपुर का हवा महल

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                                            गुलाबी शहर जयपुर का हवा महल दुनिया का ऐसा ही एक अजूबा है, जैसे- ताजमहल। ताजमहल वास्तुकला की अनुपम कृति है तो हवा महल भी । एक नहीं इसकी  ऐसी  अनेक खूबियां हैं जो इसके अलावा अन्य  कहीं नहीं हैं। हवा महल दुनिया में ऐसा एक मात्र महल हैजो बिना नींव के निर्मित है। राजस्थान की राजधानी जयपुर में यह ऐसी जगह पर हैं जहां गर्मियों में कुछ दिन सर्वोच्च तापमान रहता है। यहां के लू के थपेड़े किसी को भी बेहोश करने के लिए काफी हैं। लेकिन इस महल को इस तकनीक से निर्मित किया गया है कि गर्म हवा के  थपेड़े भी इममें शीतल बयार के झोंके बन जाते हैं। इसकी 953 छोटी-छोटी़ खिड़कियां और बलुई पत्थर से बनी अनगिनत जालियां इसमें वातानुकूलन का काम करती हैं। यदि आपको  जयपुर घूमना है तो कम से कम दो दिन का समय चाहिए।  तभी  इसके मुख्य दर्शनीय स्थलों को ठीक से देख सकेंगे।  यदि समय नहीं है तो फिर हवा महल ही एक ऐसी जगह है जिसकी ऊपरी मंजिलों से एक ही मिनट में पूरा जयपुर देख सकते हैं।  एक ही स्थान पर खड़े होकर उसके इर्द-गिर्द फैली पहाड़ियों को निहार सकते हैं, जयपुर घराने की शान सिटी पैलेस, ज

दुनिया की प्राचीन सर्वश्रेष्ठ वेधशाला

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                                                गुलाबी शहर जयपुर का जंतर-मतर भारत ही नहीं दुनिया की सर्वश्रेष्ठ प्राचीन  खगोलीय वेधशाला है। ग्रहों की स्थिति और काल गणना के उसके परिणाम अभी भी चौकाते हैं। इससे आज भी घंटे, मिनट और चौथाई मिनट तक के समय की सटीक गणना की जा सकती है। दुनिया अब कितनी बदल गई है, ज्ञान-विज्ञान ने भारी तरक्की की है। अंतरिक्ष के बारे में बहुत सारी नई जानकारियां आ गई  हैं, लेकिन कई मामलों में  इस वेधशाला की अहमियत अभी भी बनी हुई है। यह प्रमाणित करती है कि पुराने समय में हमारा देश खगोल शास्त्र के मामले में कितना उन्नत था। पूरी दुनिया के लिए भी  यह एक प्राचीन दुर्लभ रचना है। इसलिए यूनेस्को ने इसे विश्व विरासत का दर्जा दिया है। अमेरिका की विस्कोंसिन यूनिवर्सिटी के एस्ट्रोनोमी एंड फिजिक्स के प्रोफेसर  वीरेंद्रनाथ शर्मा कहते हैं कि यह भारत की शान है, इसे सहेज कर रखे जाने की जरूरत है। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से मुलाकात कर उन्होंने इसे संरक्षित कराने का सार्थक प्रयास किया।  जयपुर शहर के संस्थापक महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने 1728-38 के बीच इसका निर्माण कराया। म