दुनिया का एक और अजूबा जयपुर का हवा महल

                   

                       


गुलाबी शहर जयपुर का हवा महल दुनिया का ऐसा ही एक अजूबा है, जैसे- ताजमहल। ताजमहल वास्तुकला की अनुपम कृति है तो हवा महल भी । एक नहीं इसकी  ऐसी  अनेक खूबियां हैं जो इसके अलावा अन्य  कहीं नहीं हैं।

हवा महल दुनिया में ऐसा एक मात्र महल हैजो बिना नींव के निर्मित है। राजस्थान की राजधानी जयपुर में यह ऐसी जगह पर हैं जहां गर्मियों में कुछ दिन सर्वोच्च तापमान रहता है। यहां के लू के थपेड़े किसी को भी बेहोश करने के लिए काफी हैं। लेकिन इस महल को इस तकनीक से निर्मित किया गया है कि गर्म हवा के  थपेड़े भी इममें शीतल बयार के झोंके बन जाते हैं। इसकी 953 छोटी-छोटी़ खिड़कियां और बलुई पत्थर से बनी अनगिनत जालियां इसमें वातानुकूलन का काम करती हैं।

यदि आपको  जयपुर घूमना है तो कम से कम दो दिन का समय चाहिए।  तभी  इसके मुख्य दर्शनीय स्थलों को ठीक से देख सकेंगे।  यदि समय नहीं है तो फिर हवा महल ही एक ऐसी जगह है जिसकी ऊपरी मंजिलों से एक ही मिनट में पूरा जयपुर देख सकते हैं।  एक ही स्थान पर खड़े होकर उसके इर्द-गिर्द फैली पहाड़ियों को निहार सकते हैं, जयपुर घराने की शान सिटी पैलेस, जंतर-मतर, आमेर का किला, नाहर गढ़ का किला पर  नजर डाल सकते हैं। महानगर में दूर-दूर तक फैली सड़कों पर बेतहाशा दौड़ती जिंदगी,  ऊंची-ऊंची अट्टालिकाओं, शानदार बाजारों पर निगाह डाल सकते हैं। 

हवा महल में राजपूत रानियों के लिए विशेष व्यवस्थाएं की गई हैं।  शाही महलों में पर्दा प्रथा की उबाऊ जिंदगी से राजपूत रानियां परेशान हो जाया करती थीं। लेकिन वे इसमें आकर शहर की गतिविधियों को, सड़कों पर आयोजित कार्यक्रमों को बेझिझक, बेधड़क होकर निहार सकती थीं।  हवा महल की खिड़कियों से वे तो बाहर का सब कुछ देख सकती थीं लेकिन कोई बाहर से इनकी परछाई तक नहीं देख सकता था। इस तरह पर्दा प्रथा बनी रहती थी। ।

रत्न जड़ित भारी भरकम घाघरों को पहन कर रानियों को महल में ऊपर तक आने-जाने में दिक्कत नहीं हो, इसके लिए सीड़ियों के साथ-साथ खुरनुमा रास्ते बनाए गए हैं।  सुरक्षा की दृष्टि से महल के ऊपरी कुछ हिस्से में ऐसी संकरी सीढ़ियां हैं, जिन पर सिर्फ एक ही व्यक्ति एक बार में आ-जा सकता है।  महल में रानियों के लिए अलग-अलग कक्ष हैं और उनके शिशुओं के स्तन पान के लिए अलग कक्ष । उस जमाने में रानियां अपने बच्चों को खुद दुग्ध पान नहीं कराती थीं।  यह कार्य दासियों के माध्यम से होता था। इसके लिए उनके खाने-पीने के विशेष इंतजाम थे। ऐसा इसलिए किया जाता ताकि रानियों की सेहत बनी रहे। आज के इस आधुनिक समय में कोई ऐसा करेगा तो गलत माना जाएगा लेकिन पहले यह शास्त्र सम्मत था।

50 फुट ऊंचे पांच मंजिले इस हवा महल में हर एक मंजिल की अपनी विशेषता है। इसकी पहली मंजिल शरद मंदिर के नाम से तो दूसरी मंजिल रतन मंदिर, तीसरी मंजिल विचित्र मंदिर के नाम से, चौथी प्रकाश मंदिर और पांचवी हवा मंदिर के नाम से है। मंदिर सामने से देखने पर ऐसा लगता है, जैसे भगवान श्रीकृष्ण का मुकुट।  महल परिसर में भगवान श्रीकृष्ण का अलग से मंदिर भी है। यह सब इसलिए है क्योंकि इसके संस्थापक भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे। इसके निर्माण में राजपूताना शैली के अलावा मुगल शैली का भी प्रभाव है। 

हवा महल का निर्माण जयपुर के संस्थापक महाराजा जय सिंह द्वितीय के पौत्र और महाराजा माधौ सिंह  के पुत्र जयपुर नरेश प्रताप सिंह ब्रजनिधि ने  कराया।  वह महाराजा होने के साथ-साथ सहृदय इंसान, कुशल प्रशासक और हिंदी ब्रज भाषा के अच्छे कवि भी  थे। उन्होंने बहुत सी रचनाएं कीं उनमें से  22 अब भी उपलब्ध हैं।  

स्थापत्य कला में उनकी गहरी रुचि थी।  एक बार वह झुंझनू के महाराजा भूपाल सिंह के यहां गए। उनके खेतड़ी के महल को देखकर वह इतने प्रभावित  हुए कि लौटकर उससे बेहतरीन हवा महल बनवा दिया। उनके इस सपने को आकार वास्तुविद लाल चंद उस्ताद  ने दिया। जयपुर नरेश ने और भी कई निर्माण कार्य कराए, जैसे मदन मोहन जी का मंदिर, गोविंद जी के पहाड़ी का हौज। लेकिन जो बात हवा महल में है, वह और कहीं नहींं। वह 14 साल की उम्र में राजगद्दी पर बैठे। उन्होंने अनेक लड़ाइयां भी लड़ीं। महज 39 साल की उम्र में वह इस दुनिया से चले गए। फिर भी वह हवा महल के रूप में एक ऐसी अनुपम कृति छोड़ गए जिसके लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।  सन 1799 में निर्मित इस कृति को देखने के लिए देश और विदेश से जयपुर में सर्वाधिक पर्यटक आते हैं।



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