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Showing posts from July, 2021

वीरों के वीर राजा कुलचंद हगा

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                                                         भगवान श्रीकृष्ण की लीला स्थली व्रज में एक से बढ़कर एक महायोद्धा हुए। इनमें से कुछ को तो लोग आज भी याद करते हैं लेकिन करीब एक हजार साल पहले यहां के जिस एक राजा ने महमूद गजनवी से जमकर चक्कर ली। अपने जीते जी मथुरा पर आंच नहीं आने दी, मंदिर की छोड़ों  मंदिरों की परछाई तक नहीं छूने दी, लेकिन चिंता की बात यह है कि मथुरा तो मथुरा उनके वंशज भी उन्हें भूल रहे हैं। ये थे महावन के राजा वीरों के वीर चौधरी कुलचंद हगा। व्रज की मिट्टी की यह खासियत है कि इसने अन्याय को कभी बर्दाश्त नहीं किया। हजारों साल पहले भगवान श्रीकृष्ण ने नौ साल की उम्र में अपने अत्याचारी मामा कंस को पछाड़ा। श्रीकृष्ण का लालन-पालन जिस पुरानी गोकुल  मौजूदा महावन में हुआ।  उसी में जन्मे और पले-बढ़े राजा  कुलचंद ने मथुरा की रक्षा के लिए सीना तानकर टक्कर ली।  यदि मल्लयुद्ध होता तो वह महमूद गजनवी को चीरकर रख देते। वह छल फरेब से भरी फौज की लड़ाई थी। अपनी से कई गुना ज्यादा फौज से टक्कर लेना भी कोई कम बहादुरी नहीं थी। इसके लिए बड़ा कलेजा चाहिए। महमूद गजनवी ने  1017 में भारत में नौंवां आक

मंगली के नाम पर चलता है गोरखधंधा

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                                              क्या आपका अपना  बेटा, बेटी या अन्य कोई खास मंगली है तो  कृपया परेशान नहीं हों। यह सब बकवास है। मेरे पिताजी मंगली  हैं, ज्योतिषी द्वारा बताए गए मंगली। और मां गैर मंगली।  उन्होंने कभी किसी तंत्र-मंत्र का सहारा नहीं लिया। भगवान की कृपा से वह उम्र के 80 वसंत पार कर चुके हैं। अभी तक तो उन पर मंगल का कोई प्रभाव नहीं आया। उनके जैसे तमाम लोग हैं जो इसे नहीं मानते।  पर अब कंप्यूटर के इस युग में मंगली के चक्कर में बहुत से पढ़े-लिखे लोग  इतने परेशान हैंं कि उन्हें न दिन में चैन है और न रात में। वह अपने मंगली  पुत्र और पुत्रियों के लिए योग्य मंगली वर खोज नहीं पा रहे हैं। कई तो इस चक्कर में ओवरएज हो चुके हैं। बहुत से लोगों के लिए मंगली होना गले का ऐसा फंदा बन गया है, जिसे चाह कर भी फेंक नहीं पा रहे। मंगली की धारणाएं उनके तन-मन को दीमक की तरह खाए जा रही हैं।  गणितीय ज्योतिष के दुनिया के जाने-माने विद्वान अमेरिका की  विस्र्कोंंसन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डा. वीरेंद्रनाथ शर्मा का कहना है कि भविष्य बताने वाली ज्योतिष का कोई मतलब नहीं है। क्योंकि इसका कोई वैज्

कभी सैंडविच बेचते थे दिलीप कुमार

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                                                 हिंदी सिनेमा के शलाका पुरुष दिलीप कुमार कभी पूना में  सैंडविच बेचा करते थे।  कोई कल्पना कर सकता था ऐसा इंसान  कभी रुपहले पर्दे के शिखर पर होगा।  लेकिन जीतोड़ मेहनत, बुलंद हौसले और भाग्य ने उनके लिए इस असंभव को संभव बना दिया।  वह उन गिने चुने लोगों में थे जो घोर राजनीतिक दुश्मनी होने के बावजूद हिंदुस्तान और पाकिस्तान दोनों में समान रूप से सम्मान पाते रहे। उन्हें पाकिस्तान ने अपना सर्वोच्च सम्मान ‘निशान- ए- इम्तियाज’ से नवाजा तो भारत ने भी  ‘पदम विभूषण’ से सम्मानित किया। टै्रजिडी किंग के नाम से मशहूर रहे दिलीप कुमार ने कभी अपने ऊपर विवाद की काली छाया तक नहीं पड़ने दी।  11 दिसंबर 1922 को मौजूदा पाकिस्तान के पेशाबर में जन्मे दिलीप कुमार अपने पिता के साथ आठ साल की उम्र में ही मुंबई आ गए थे। परिवार की स्थिति अच्छी नहीं थी। पिता फल बेचकर खर्चा चलाते थे।  मुफलिसी का दौर था। ऐसे में घरों में कलह होना स्वाभाविक है। ऐसे ही वातावरण में पिता से नाराज होकर वह एक बार पूना चले गए। वहां उन्होंने मिलिट्री केंटीन में सैंडविच की स्टाल लगाई। पैसा इकट्ठा होने प