वीरों के वीर राजा कुलचंद हगा

                     


                                  

भगवान श्रीकृष्ण की लीला स्थली व्रज में एक से बढ़कर एक महायोद्धा हुए। इनमें से कुछ को तो लोग आज भी याद करते हैं लेकिन करीब एक हजार साल पहले यहां के जिस एक राजा ने महमूद गजनवी से जमकर चक्कर ली। अपने जीते जी मथुरा पर आंच नहीं आने दी, मंदिर की छोड़ों  मंदिरों की परछाई तक नहीं छूने दी, लेकिन चिंता की बात यह है कि मथुरा तो मथुरा उनके वंशज भी उन्हें भूल रहे हैं। ये थे महावन के राजा वीरों के वीर चौधरी कुलचंद हगा।

व्रज की मिट्टी की यह खासियत है कि इसने अन्याय को कभी बर्दाश्त नहीं किया। हजारों साल पहले भगवान श्रीकृष्ण ने नौ साल की उम्र में अपने अत्याचारी मामा कंस को पछाड़ा। श्रीकृष्ण का लालन-पालन जिस पुरानी गोकुल  मौजूदा महावन में हुआ।  उसी में जन्मे और पले-बढ़े राजा  कुलचंद ने मथुरा की रक्षा के लिए सीना तानकर टक्कर ली।  यदि मल्लयुद्ध होता तो वह महमूद गजनवी को चीरकर रख देते। वह छल फरेब से भरी फौज की लड़ाई थी। अपनी से कई गुना ज्यादा फौज से टक्कर लेना भी कोई कम बहादुरी नहीं थी। इसके लिए बड़ा कलेजा चाहिए।

महमूद गजनवी ने  1017 में भारत में नौंवां आक्रमण किया। गजनवी ने जब दो दिसंबर 1018 को बुलंदशहर वरन पर हमला किया तो वहां का राजा हरदत्त उसका सामना नहीं कर सका। वह शरणागत हो गया। वह हरदत्त से हरदत्त महमूद बन गया। लेकिन महावन के राजा की रगों में दूसरा ही खून बह रहा था जो हर जोर जुल्म से टक्कर लेने के लिए उद्यत था।  गजनवी के आनेकी  सूचना मिलते ही  कुलचंद ने मुकाबले की तैयारी शुरू कर दी। 

मथुरा पर आक्रमण का कुलचंद ने बहुत ही बहादुरी से मुकाबला किया। राजा के दल में दो सौ हाथी थे। करीब पचास हजार सैनिक। लेकिन गजनवी की फौज उससे  भी कई गुना ज्यादा थी। कई दिन तक युद्ध चला। युद्ध में राजा की पत्नी ने भी कंधा से कंधा मिलाकर साथ दिया। व्रज की महिलाओं ने हमेशा से लड़ाइयों में पति का साथ दिया है। जब पतियों पर तलवार होती थी तो महिलाओं पर भाला या अन्य कोई हथियार। बाद के जमाने में जब बंदूकें आ गईं तो महिलाओं ने बंदूकेंभी चलाई।

खैर युद्ध के दौरान किसी कारण से राजा की सेना में भगदड़ मच गई। सेना भागने लगी तो राजा को लगा कि पराजय निश्चित है। उन्होंने दुश्मनों के हाथ आने से पहले अपनी बेहद खूबसूरत पत्नी की तलवार से हत्या की, इसके बाद अपने सीने में तलवार भोंककर प्राण न्योछावर कर दिए लेकिन जीते-जी मथुरा को लुटने नहीं दिया।

महमूद के मीरमुंशी अल उत्वी ने अपनी पुस्तक ‘तारीखे यामिनी’ में मथुरा पर आक्रमण का वर्णन करते हुए राजा कुलचंद की दिलेरी की खुलकर तारीफ की है। उसने लिखा है कि राजा कुलचंद  बहुत ही बहादुरी से युद्ध लड़ा। उसे अपनी शक्ति पर पूरा भरोसा था क्योंकि इससे पहले उसने कोई युद्ध नहीं हारा था। युद्ध में पराजय देखकर उसने पत्नी समेत आत्महत्या कर ली। पर मेरे हिसाब से यह आत्महत्या नहीं थी। आत्महत्या कमजोर लोग करते हैं, उन्होंने आत्मोसर्ग किया। यह वीरों का आभूषण है।

इतिहासकार कंवरपाल सिंह ने अपनी पुस्तक ‘पांडव गाथा’ में  लिखा है कि राजा कुलचंद  राजा हगमाश के वंशज और जाटों की  यदुवंशी शाखा के हगा गोत्री थे जिन्हें अग्र या चौधरी भी कहते हैं। वह दिल्ली के सम्राट जयपाल तोमर के रिश्तेदार थे। वह पूरे व्रज मंडल में सबसे शक्तिशाली थे। उन्होंने अपने जीवन में कुल 32 युद्ध लड़े जिनमें से 31 में वे जीते। 

‘मथुरा ए गजेटियर 5’, जानेमाने साहित्यकार रागेय राधव की पुस्तक ‘महायात्रा गाथा’ और राकेश कुमार आर्य  के शोध प्रबंध ‘भारत में 1235 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास’ में भी  राजा कुलचंद की बहादुरी की जमकर तारीफ की गई है। इन पुस्तकों के अनुसार गजनवी के आक्रमण के दौरान मथुरा बहुत ही समृद्ध नगर था। इसका चारों ओर से परकोटा था।  दो प्रवेश द्वार थे।  नगर में सैकड़ों मंदिर थे। बीच में एक बहुत ही विशाल मंदिर था, उसके बारे में महमूह गजनवी ने लिखा है कि इसकी लागत दस करोड़ स्वर्ण मुद्रा से कम नहीं होगी। अब इसे बनाया जाए तो इसके निर्माण में दो सौ साल लगेंगे। उसने सभी  मंदिरों को तोड़ने और आग लगाने के आदेश दिए। बीस दिन तक शहर की लूट होती रही। महमूद के हाथ पांच बड़ी सौने की मूर्तियां लगीं। इनमें से एक सोने की मूर्ति का वजन 14 मन था। इसी तरह सोने-चांदी की मूर्तियों, जवाहरात को वह सौ ऊंटों पर लाद कर गजनी ले गया।

राजा कुलचंद के बारे में कहा जाता है कि उसने महावन में कुषाणों का एक मंदिर बनवाया था। इसमें कनिष्क द्वारा तोड़ी गई प्रतिमा का पुन: निर्माण कराया। महमूद गजनवी ने इस मंदिर को भी तोड़ दिया था। 

कुलचंद की मृत्यु के बाद उनके पुत्र  बरामल सिंह ने उसका पुनर्निमाण कराया। उन्होंने बरामई को बसाया। 1019 में किरारों को पराजित करने के बाद राज्य को चार भागों में बांट दिया। रामसेन ने बिसावर, उदय सिंह ने नौगंवा, अरथ सिंह ने अरौठा और सुसेन ने ऊंचा गांव पर शासन किया।  राजा कुलचंद के किले के महावन में भग्नावशेष अभी भी उनकी वीरता की कहानी कह रहे हैं।



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