मंगली के नाम पर चलता है गोरखधंधा

                 

                           


क्या आपका अपना  बेटा, बेटी या अन्य कोई खास मंगली है तो  कृपया परेशान नहीं हों। यह सब बकवास है। मेरे पिताजी मंगली  हैं, ज्योतिषी द्वारा बताए गए मंगली। और मां गैर मंगली।  उन्होंने कभी किसी तंत्र-मंत्र का सहारा नहीं लिया। भगवान की कृपा से वह उम्र के 80 वसंत पार कर चुके हैं। अभी तक तो उन पर मंगल का कोई प्रभाव नहीं आया। उनके जैसे तमाम लोग हैं जो इसे नहीं मानते। 

पर अब कंप्यूटर के इस युग में मंगली के चक्कर में बहुत से पढ़े-लिखे लोग  इतने परेशान हैंं कि उन्हें न दिन में चैन है और न रात में। वह अपने मंगली  पुत्र और पुत्रियों के लिए योग्य मंगली वर खोज नहीं पा रहे हैं। कई तो इस चक्कर में ओवरएज हो चुके हैं। बहुत से लोगों के लिए मंगली होना गले का ऐसा फंदा बन गया है, जिसे चाह कर भी फेंक नहीं पा रहे। मंगली की धारणाएं उनके तन-मन को दीमक की तरह खाए जा रही हैं। 

गणितीय ज्योतिष के दुनिया के जाने-माने विद्वान अमेरिका की  विस्र्कोंंसन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डा. वीरेंद्रनाथ शर्मा का कहना है कि भविष्य बताने वाली ज्योतिष का कोई मतलब नहीं है। क्योंकि इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। इसके नाम पर गोरखधंधा चलता है।

हिंदी के जाने माने साहित्यकार डा. हजारी प्रसाद द्विवेदी कहा कहते थे कि धरती से करोड़ों किलोमीटर दूर ये निर्जीव ग्रह इंसान का भविष्य कैसे तय कर सकते हैं? इंसान का भविष्य तो धरती की परिस्थितियां और इंसान की मेहनत तय करती हैं। उनके परिवार में ज्योतिष का कार्य होता था लेकिन उन्होंने इसे कभी नहीं माना। वह हमेशा इसका विरोध करते रहे। उन्होंने अपनी कई पुस्तकों में यह सब लिखा है।  ज्योतिष का आधार 9 ग्रह हैं। इनमें सूर्य, चंद्रमा, राहू और केतू को भी ग्रह माना जाता है जो हैं ही नहीं। यह तो आप भी जानते हैं कि सूर्य तारा है। उसी का सौरमंडल है। चंद्रमा पृथ्वी का उपग्रह है। रही राहू, केतु की बात तो यह ग्रह तो क्या खगोलीय पिंड तक नहीं हैं। यह तो सूर्य और चंद्रमा के  परिक्रमा पथ को काटने वाले दो काल्पनिक बिंदु हैं।  इस तरह ज्योतिष का आधार ही गलत है।  कितनी आश्चर्यजनक बात है कि जिन्हें ग्रहों की स्थिति तक पता नहीं, वे लोगों का भविष्य तय करते फिरते हैं।

जहां तक मंगल ग्रह की बात है यह हमारे सौर मंडल में सूर्य की परिक्रमा करने वाला पृथ्वी की तरह का चौथा ग्रह है।  यह सूर्य से 23 करोड़ किलोमीटर दूर है जबकि पृथ्वी से उसकी दूरी घटती बढ़ती रहती है।  अमेरिका, यूरोप, रूस, भारत, जापान के वैज्ञानिक कई दशकों से लगे हुए हैं, वे इतना पता कर पाए हैं कि यह सूर्य का एक चक्कर 687 दिन में लगा पाता है।  मंगल 60 हजार साल में एक बार पृथ्वी के सबसे निकट होता है। 57617 ईसा पूर्व 12 सितंबर को मंगल पृथ्वी के निकट था। अब वर्ष 2267 में फिर से वह पृथ्वी के निकट होगा। फिर भी वह करोड़ों किलोमीटर दूर होगा।  पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र उससे कभी मिल नहीं पाता। मंगल का चुंबकीय क्षेत्र और मामूली है। उसके कभी पृथ्वी तक आने का सवाल ही नहीं उठता।  दोनों ग्रहों के चुंबकीय क्षेत्र का भी मिलन नहीं हो पाता। मंगल पर 95 प्रतिशत कार्बनडाई आक्साइड है, तीन प्रतिशत नाइट्रोजन। आक्सीजन बहुत मामूली ।  इंसान के रहने लायक स्थिति नहीं है। इसके दो चंद्रमा हैं।

अभी तक कोई इंसान  मंगल पर कदम तक नहीं रख सका है। पर हमारे पूर्वज ज्योतिषियों ने मंगल को लेकर अद्भुत कल्पना की कि यह पृथ्वी का पुत्र है।  युद्ध का देवता है। इसके हाथों में चार हथियार हैं-त्रिशूल, गदा, पद्म और शूल। यह अविवाहित है। इसकी सवारी भेड़ है। इसका चित्र भी तैयार किया है जैसे वे इसे देखकर आए हों।  जिनका ऐसा विलक्षण ज्ञान होगा, वे ऐसे ही उटपटांग निष्कर्ष देंगे। हमारे पूर्वजों की अपनी सीमा थी। पर अब इस वैज्ञानिक युग में भी कुछ लोग उसी काल्पनिक ज्ञान पर गोरखधंधा चलाए हुए हैं। वे ऐसे दावा करते हैं जैसे उनसे बड़ा कोई वैज्ञानिक नहीं हो। 

आप खुद अपने विवेक का इस्तेमाल करें जिस मंगल ग्रह का चुंबकीय  प्रभाव ही यहां तक नहीं आता तो वह पृथ्वी को कैसे प्रभावित करेगा। यदि प्रभावित करेगा तो कुछ गिने-चुने लोगों को ही क्यों , सबको क्यों नहीं? शिशु के जन्म के समय को ही क्यों इसके प्रभाव का आधार मानें? मंगल का प्रभाव इंसानों पर होता है तो वह भारत में हिंदुओं पर ही क्यों, अन्य पर क्यों नहीं? ये ऐसे अननिगत सवाल हैं जिनका ज्योतिषियों पर कोई जबाव नहीं है। इसलिए ऐसे ज्योतिषियों को दूर से ही प्रणाम करिए, भूल करके मंगली के चक्कर में मत पड़िए। 



Comments

  1. श्रीमान सुरेंद्र जी,

    आपका कथन और संदर्भ सही हो सकता है पर वाक्य "मंगली के नाम पर चलती है धांधली" उचित वाक्य है।

    भगवान शिव महायोगी स्वरूप में भगवान "गुरु गोरखनाथ" होते हैं।भगवान शिव के पवित्र कल्याणकारी नाम को किसी अवैध धंधे से जोडने से लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचती है और शिव तो सदैव कल्याणकारी हैं।"गोरख-धंधा "शब्द अनुचित है और एक निम्न श्रेणी की उपहासात्मक अपमानजनक गरिमाहीन अभद्र संज्ञा है जो प्रयोग में नहीं होनी चाहिए कृप्या इस संवेदनशील पहलू का भी संज्ञान लें ।

    कुछ शब्द हैं जो आप प्रचुरता से प्रयोग कर सकते हैं जैसे अवैध धंधा /गोलमाल /घोटाला /घालमेल /धांधली /ठगधंधा /गडबडघोटाला /फर्जीवाड़ा /धोखाधड़ी कुछ भी।

    अलख निरंजन!!

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

गौतम बुद्ध ने आखिर क्यों लिया संन्यास?

राजा महाराजाओं में कौन कितना अय्याश

खामियां नई शिक्षा नीति की