तो क्या बाइडन राष्ट्रपति बन पाते?

                 


                         

लोग असफलता को बहुत बुरा मानते हैं लेकिन कई बार असफलता सफलता से भी लाख गुना बेहतर सिद्ध हो जाती है। अमेरिका के चयनित राष्ट्रपति जो बाइडन और अपने पूर्व राष्ट्रपति कलाम पर यह सौ फीसदी फिट बैठती है। कलाम साहब पायलट बनना चाहते थे। लेकिन नहीं बन पाए। उन्हें अनफिट कर दिया गया। बहुत दुखी हुए लेकिन फिर उन्होंने हिम्मत बटोरी, वह देश के टौप वैज्ञानिक, देश के रक्षा सलाहकार और सर्वोच्च राष्ट्रपति के पद पर पहुंंचे। इसी तरह बाइडन साहब पढ़ाई पूरी करने के बाद देश की सेवा के लिए मिलिट्री में भर्ती होने चाहते थे। लेकिन अस्थमा की बीमारी के कारण वह अनफिट कर दिए गए। 

बाइडन साहब को जिंदगी में दूसरा झटका तब लगा जबकि वह सीनेटर थे, एक कार एक्सीडेंट में उनकी पत्नी और दो बच्चों की मृत्यु हो गई। वह इतने निराश हुए कि राजनीति से संन्यास लेने जा रहे थे। दोस्तों ने समझाया। उन्होंने हिम्मत जुटाई। इसी का परिणाम आज सामने है। वह अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति की 20  जनवरी 2021 को शपथ लेंगे। 

बाइडन साहब की कोई पारिवारिक रूप से राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं रही, नहीं वह आर्थिक रूप से समृद्ध परिवार से हैं। उनके पिता तेल का व्यवसाय करते थे। 20 नवंबर 1942 को जब उनका जन्म हुआ तब उनकी आर्थिक हालत इतनी खराब थी कि पिताश्री को परिवार समेत सालों साल ससुराल में रहना पड़ा। बाद में उन्होंने पुरानी कारों का बेचने का धंधा चालू किया। इसमें वे  परिवार को मध्यम वर्ग के रहने लाइक सुविधा दे सके।

पढ़ाई के दौरान बाइडन साहब कोई प्रतिभाशाली नहीं थे। लेकिन नेतृत्व का गुण था। वह क्लास प्रेसीडेंट कई बार रहे। हाईस्कूल में फुटबाल के खिलाड़ी थे, उसके  कप्तान भी रहे। आर्टस में जब उन्होंने ग्रेजुएशन की डिग्री  हासिल की तब उनकी रेंक क्लास में 688 में से 506वीं थी। इसी तरह 1965 में कानून की डिग्री हासिल करने में उनकी रेंक  क्लास में 85 में से 76वीं। उनकी ये बातें उन लोगों के लिए बहुत प्रेरणास्पद हैं जो आर्थिक और शैक्षिक रूप से कमजोर होने पर हिम्मत हार जाते हैं। 

वाइडन को सबसे पहले सेवा का अवसर एक जाने माने रिपब्लिकन नेता की प्राइवेट लौ कंपनी में मिला लेकिन बाद में उन्होंने डेमोक्रेटिक को चुना। वह सबसे पहले काउंसलर चुने गए इसके बाद छह बार सीनेटर । वह सीनेट में लंबे समय तक विदेश मामलों की समिति में रहे हैं, उसके अध्यक्ष भी चुने गए। इसके अलावा उन्हें महिलाओं, बच्चों और आर्थिक मामलों की भी अच्छी समझ है। वह दो बार ओबामा काल में उप राष्ट्रपति भी रह चुके हैं। 

बाइडन साहब अब जबकि अमेरिका के  राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं, पूरी दुनिया की उन पर निगाहें हैं। बेशक उनकी अपनी समस्याएं भी कम नहीं हैं।  वह सबसे ज्यादा और सबसे पहले अपने देश के लिए ही  काम करेंगे। फिर भी वह जो करेंगे, उसका प्रभाव विश्व की राजनीति और आर्थिक संबंंधों पर भी पड़ेगा। उनसे यह उम्मीद की जा रही है कि धार्मिक और नस्लभेद की राजनीति कमजोर होगी।  वह सबको साथ लेकर चलने वाले नेताओं में से हैं। दूसरे अमेरिका में मौजूद एक करोड़ से ज्यादा अप्रवासियों को सम्मानजनक ठिकाना मिल जाएगा। इससे करीब पांच लाख भारतीयों को भी लाभ मिलेगा। इस तरह के संकेत उन्होंने दे दिए हैं।

 तीसरे जलवायु परिवर्तन की विश्वव्यापी  समस्या के समाधान की दिशा को गति मिलेगी। विदित हो कि धरती पर कार्बनडाई आक्साइड का उत्र्सजन बढ़ने से तापमान में वृद्धि हो रही है। यह वृद्धि न केवल जलवायु को प्रभावित कर रही है बल्कि यह धरती पर जनजीवन के लिए भी खतरे की घंटी है। मौजूदा राष्ट्रपति ट्रंप ने इस समस्या के समाधान के लिए होने वाले पेरिस जलवायु समझौते से अपने को अलग कर लिया था। बाइडन साहब ने इससे फिर से जुड़ने का संकेत दिया है। जाहिर है जब अमेरिका का इसमें साथ होगा तो निश्चित रूप से समस्या के समाधान के लिए प्रयासों को गति मिलेगी। 

चौथी उम्मीद अमेरिका में परदेशियों के  लिए ज्यादा नौकरियों के अवसर की है। अमेरिका हर साल कई लाख प्रतिभाशाली पेशेवरों को अपने यहां अवसर देता रहा है। लेकिन ट्रंप ने अमेरिका फस्र्ट का नारा देते हुए इस पर कुछ अंकुश लगा दिया था। बाइडन ने इसमें भी ढील  का संकेत दिया है। इसका फायदा भी भारत को मिलेगा क्योंकि सबसे ज्यादा प्रतिभाशाली  पेशेवर भारत से ही अमेरिका जाते हैं।

अपने देश में बाइडन को लेकर एक चर्चा जोरों से हैं कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अमेरिका में आयोजित हाउडी मोदी कार्यक्रम के दौरान ‘अबकी बार ट्रंप सरकार’ का जो नारा दिया गया, उससे अब अमेरिका और भारत के संबंध असहज हो सकते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। मोदीजी ने जो कहा था  वह एक राष्ट्राध्यक्ष के दूसरे राष्ट्राध्यक्ष से निकटता के प्रयास थे। इससे ज्यादा नहीं। उस समय अमेरिका में चुनाव भी नहीं थे। बाइडन साहब सुलझे हुए राजनीतिज्ञ हैं। वह इस बात को समझते हैं। फिर अब भारत पुराना भारत नहीं है। यह अब दुनिया की बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और दुनिया का बड़ा मार्केट है। जितनी जरूरत भारत को अमेरिका की है, उतनी अमेरिका को भारत की भी है।

याद रहे बाइडन साहब ने 2006 में अखबारों को दिए एक साक्षात्कार में कहा था कि 2020 में अमेरिका और भारत के सबसे निकट संबंध होंगे। बाइडन साहब को अपनी बात को सार्थक करने का 2021 में तो समय मिलेगा।



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