कमाल का बाल

बाल भी क्या नातुच्छ चीज है। कहीं से भी तोड़ दो, मरोड़ दो, फेंक दो। उफ् नहीं करता। कितना बेशरम है? कटने की देर नहीं होती, झट दोबारा से हाजिर। मेरा पड़ोसी अपने बालों को कटवा-कटवा कर परेशान है। रोज जाना पड़ता है केश कर्तकजी के पास। जेब भी ढीली होती है। कुछ लोग हैं जो दिन में दो बार सेव करते हैं। भगवान जाने क्या हालत रहती होगी उनकी, कैसे मेंटेन करते हैं। हरवक्त तरोताजा चमकते रहते हैं। बालों को वह अपने दुश्मन की तरह मुंह उठाने का कभी अवसर नहीं देते। कुछ हिम्मत वाले हैं जो उन्हेंं सालों साल शान से धारण किए रहते हैं, जैसे- शिवजी के गले में विष। तुलसी या संसार में भांति-भांति के लोग हैं। कई साल पहले फीरोजाबाद के एक सज्जन अपनी लंबी मूंछों के कारण दूर-दूूर तक चर्चा में थे। मूछें भी क्या थीं, काली स्याह, मुंह से लेकर तक पैर लंबीं। वह उन्हें अंटा लगाकर रखते। तेल लगाते, सफाई करते। जितना वक्त आम आदमी अपने पूरे शरीर की देखभाल पर देता, वह उससे भी कहीं ज्यादा अपनी मूंछंों पर देते। जब चर्चा मद्धिम पड़ती वह अखबारों के दफ्तरों में आ जाते या जब किसी पत्रकार के पास कोई खबर नहीं होती तो झट से मूंछों वाले बाबा को बुला उनकी फोटो और इंटरव्यू छाप देते। इनका भी भला, उनका भी भला। मूंछ के बाल एक अरसे तक आन बान शान का प्रतीक रहे हैं। ऐसे ही जैसे नए जमाने में किसी के पास लंबी कार और आलीशान बंगला। नि:सदेह बालों से न केवल शरीर की रक्षा होती है बल्कि सुंदरता में भी निखार आता है। साहित्य की भी इनसे शोभा बढ़ती रहती है, जैसे- किसी की आंखों में सूअर का बाल, भेड़ पर कोई ऊन नहींं छोड़ता, कोई उसकी मूंछों का एक बाल टेड़ा नहीं कर सकता आदि आदि। सिर के बाल साधारणतया: दो से छह साल तक रहते हैं फिर गिर जाते हैं। बाल भांति-भांति के होते हैं हब्सियों के बाल कुंचित, घुंघराले होते हैं। चीनी, मंगोलियनों और अमेरिकी इंडियन के बाल अंकुचित, लंबे और उखड़े होते हैं जबकि यूरोपियनों के सुनहरी और घुंघराले। भारतीयों को काले बाल ज्यादा पसंद हैं। पहले मनुष्यों के शरीर छबरेदार बालों से ढंके रहते थे। सफेद बाल वंशानुगत माने जाते हैं। बीमारी से भी ऐसा होता है। प्राय: सभी प्राणियों के बाल होते हैं लेकिन ह्वेल के शरीर पर सबसे कम बाल होते हैं, कुछ वयस्क मछली के शरीर बाल रहित होते हैं । बालों के अनेक उपयोग हैं। इनसे ब्रुश, कपड़े आदि बनते हैं, भवन निर्माण में सीमेंट में मिलाकर इनका उपयोग किया जाता है। मौजूदा समय में बालों का लंबा-चौड़ा अरबों रुपये का कारोबार चल रहा है। बालों की धुलाई, चमकदार बनाने, काटने, देखभाल करने के ढेरों शैंफू, लोशन और अन्य सामान बाजार में है, इनके मुकाबले तिरुपति में बालों से कमाई कुछ नहीं ठहरती। बालों को लेकर अखबार भी विज्ञापनों से भरे रहते हैं। लेकिन एक बात मैं शर्त लगाकर कह सकता हूंं कि बाल इतना महत्वपूर्ण और ताकतवर कभी रहे जितना विगत दिवस पराग डेरी की दही में निकला एक अदना सा बाल। इसके कारण चार अफसरों की सेवाएं समाप्त कर दी गईं। वह तो अदालत आड़े आ गई, उन्हें बहाल करना पड़ा। फिर भी उन्हें पदावनत कर निलंबित कर दिया। अफसरों की लापरवाही से बड़े-बड़े दंगे हो जाते हैं, उनमें अनेक लोग मारे जाते हैं, अरबों की संपत्ति खाक हो जाती है, किसी अफसर का बाल बांका नहीं होता, जांच पर जांच चलती रहती हैं जब वे पूरी हो जाती हैं तो उन्हें फाइलों में बंद करके ऐसी जगह रख देते हैं, जहां उन्हें कोई देख नहीं सके। जब से ‘प्रतापी’ बाल सामने आया है, तब से मेरे मन में खयाल आया है, बीबी अक्सर चढ़कर रहती है, जब देखो तब बक-बक करती रहती है। उसकी दही ही नहीं, सब्जी और पानी में अक्सर बाल निकलते रहते हैं। क्यंों न ऐसे मौके पर कुटाई कर दिया करूं? पलटकर जब वह कुछ कहे तो देख साल्.....कुत्ती... यह तो कुछ नहीं है, अपने मंत्रीजी को देख, उन्होंने एक बाल के लिए चार अफसरों को सूली पर चढ़ा दिया। मेरा पड़ोसी अपने प्रतिद्वंद्वी बाबू को पछाड़ने के लिए सोच रहा है कि वह अक्सर अफसरों को दावत देता रहता है, क्यों न किसी दिन धोखे से उनकी दही में बाल डाल दूं । बार-बार शिकायतें करने का रट्टा ही खत्म। कार्यकर्ता चाहें तो किसी भी अफसर को दंडित करवाने के लिए इस नुस्खे का प्रयोग कर सकते हैं।

संपर्क- डा. सुरेंद्र सिंह
751 सेक्टर 5, आवास विकास कालोनी
सिकंदरा, आगरा-7
मो.-9690658001

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