भारी मुश्किल में किसान

                       

               


किसान वैसे तो अन्नादाता  हैं लेकिन उनकी हालत मजदूरों से भी गई बीती है। न तो अच्छा खाना खाता है और न अच्छा कपड़ा उसे नसीब है। वह मिट्टी खाता है और मिट्टी में रहता है। मिट्टी ही उसका नसीब है। उसका यह नसीब अब और बिगड़ने जा रहा है। अब वह न तो घर का रहेगा और नहीं घाट का।

बात यह है कि किसानों का नसीब बदलने के नाम पर केंद्र सरकार ने कृषि से संबंधित जो विधेयक पारित किए हैं उससे अधिकांश किसानों के पैरों तले की जमीन खिसकने जा रही है। कहा तो यह जा रहा है कि इससे खेती से आय दुगनी हो जाएगी। लेकिन इसका फायदा कुछ बड़े किसानों के अलावा कंपनियां ही उठा सकेंगी।  आम किसानों के लिए ये घातक हैं, इसलिए केंद्रीय मंत्री सिमरत सिंह बादल ने पद से इस्तीफा दे दिया है। पंजाब, हरियाणा समेत कई राज्यों में किसानों और किसान संगठनों द्वारा इसका भारी विरोध किया दा रहा है। 

इन विधेयकों  के तहत कंपनियां किसानों से अनुबंध पर लेकर खेती कर सकेंगी। किसान भी ऐसा कर सकेंगे। लेकिन इसके लिए उन्हें पहले कंपनी, सोसायटी या समिति बनाकर उसका रजिस्ट्रेशन करना होगा। फिर चाहे पूरे देश  में कहीं भी बिना रोक-टोक के माल बेचो। 

किसानों को फायदा यह बताया जा रहा है कि उन्हें खेती करने के लिए खाद और बीज हेतु किसी से कर्ज नही लेना होगा। कंपनियां खुद इंतजाम करेंगी। कंपनियां किसानों को उनकी जमीन का किराया देंगी और वह भी अनुबंध के अनुसार।  अनुबंध एक मुश्त कई साल का हो सकता है। किसानों को जमीन का किराया भी किश्त में दिया जा सकता है। यहां यह भी याद रखें कि गन्ना किसानों का चीनी मिल कंपनियों पर हजारों करोड़ रुपये अब भी बकाया है। किसानों से गन्ने ले लिए और उसकी चीनी बनाकर बेच दी लेकिन उसका पैसा नहीं दिया। यदि ये कंपनियां भी ऐसा ही करने लगीं तो क्या होगा?

असली सवाल यह है कि किसान क्या करेंगे? अनुबंध पर खेती देने के बाद वे तो खाली हाथ हो जाएंगे। वे अपने ही उन खेतों में काम नहीं कर पाएंगे जिन्हें अनुबंध पर कंपनियों को दे देंगे क्योंकि कंपनियां तो मशीन से काम कराएंगी ताकि लागत घट सके। कंपनियां अधिक से अधिक पैदावार के चक्कर में ज्यादा रासायनिक उवर्रकों का इस्तेमाल कर खेतों को कमजोर भी बनाएंगी। जमीन का किराया तो मामूली मिलेगा। इससे उनका खर्चा नहीं चलेगा। ज्यादातर किसान कर्जदार हैं, वे आजीविका चलाने के लिए अपनी जमीन औने-पौने कंपनियों को बेच सकते हैं। इस तरह खेती किसानों के हाथ से निकलकर कंपनियों के हाथ में आ सकती है।  

सरकार चाहती है कि किसान खेती के अलावा दूसरे काम करें। जैसे पशु पालन, मुर्गी पालन, मछली पालन,  मधुमक्खी पालन आदि। इस कार्य में पहले से 10-15 करोड़ लोग लगे हैं। उन लोगों के लिए ही उससे पर्याप्त आय नहीं है। ऐसे में ये किसान क्या करेंगे। अनुमान लगाइए कि यदि एक करोड़ किसान मधुमक्खी पालन में लग  जाएं तो इनके द्वारा पैदा शहद को कौन खरीदेगा? क्या शहद की इतनी मांग है?  ऐसे ही यदि पांच करोड़ किसान मुर्गी पालन में लग जाएं  तो उनके अंडे और मुर्गी कौन खरीदेगा? अभी अंडे कौन से महंगे हैं, किसान भी इस काम में लग जाएं तो अंडे सड़कों पर  फिंके-फिंके दिखेंंगे। भाई ये किसान हैं, भारत के किसान,  ये कभी-कभी आलू इतना उत्पादित कर देते हैं कि कोल्ड स्टोरेज में रखने के लिए जगह नहीं मिलती। सड़कों पर ्रफेंकने पड़ते हैं। जबकि आलू तो हर कोई कोई रोज खाता है। 

 देश में किसानों की संख्या 50 करोड़ से ज्यादा है। इनमें से 45 करोड़ से भी ज्यादा छोटे किसान हैं। खेती अनुबंध पर देने के बाद इन 45 करोड़ लोगों के लिए कोई काम नहीं है। देश में ऐसे उद्योग भी नहीं आते दिख रहे जिसमें इन्हें खपाया जा सके। बड़ी संख्या में  बेरोजगार हुए किसान क्या करेंगे? आत्महत्या या अपराध? तर्क दिया जा रहा है कि गुजरात और महाराष्ट्र में पहले से अनुबंध पर खेती की हो रही है। लेकिन सचाई यह भी है कि गुजरात के किसानों की हालत अच्छी नहीं है। यूपी से भी खराब है। जहां तक महाराष्ट्र की बात है, वहां सबसे ज्यादा किसान आत्महत्या करते हैं कुल का 38.2 प्रतिशत। 

कारपोरेट खेती से आय तो बढ़ जाएगी , देश की जीडीपी सुधर जाएगी। कृषि उत्पादों के मामले में आत्मनिर्भरता भी आ जाएगी,  लेकिन इसका लाभ कंपनियों को मिलेगा। इसका सबसे बड़ा नुकसान यह होगा कि कृषि उत्पाद जैसे गेहूं, चावल, दालें, सब्जी  महंगी मिलेंगी। कीमत दो गुनी हो सकती है और ज्यादा भी। इसका असर देश के अस्सी करोड़ से ज्यादा लोगों पर पड़ेगा। कंपनियों को चीजें बेचना आता है। वे कृत्रिम कमी दिखा कर भी चीजों के दाम बढ़ा सकती हैं। अन्न कंपनियों के पास पहुंचने के बाद उस पर नियंत्रण करना किसी के भी बूते से बाहर हो सकता है, क्योंकि सरकार ने पहले ही खाद्यान्न भंडारण की सीमा समाप्त कर दी है। 

 सरकार किसानों के बीच से बिचौलियों को बाहर करने जा रही है लेकिन ये कंपनयां बिचौलियों का भी बाप होंगी। खेती से अधिक से अधिक से अधिक लाभ हासिल करने के लिएजो  कंपनियां कर सकती हैं, वैसा बिचौलिया नहीं सकते। 



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