गांधीजी अब और ज्यादा प्रासंगिक

                        

                         


अब जबकि महात्मा गांधी जी को गुजरे करीब पौन शताब्दी होने जा रही है, वह देश के लिए और प्रासंगिक होते जा रहे हैं। काश गांधी अब होते, ऐसी कामना बहुत से लोग करते हैं। कई बार दूसरे लोगों में गांधी का अक्स देखने लगते हैं। इमरजेंसी के दौरान लोगों को लोकनाक जय प्रकाश नारायण में  गांधी की झलक दिखी। इसके बाद 2011 में जब सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ दिल्ली में धरना दिया तो उनमें भी  गांधी की छवि दिखी।  लोग उन्हें दूसरा गांधी कहने लगे थे।  केवल भारत ही नहीं पूरी दुनिया को उनकी जरूरत है।

इसलिए दो अक्टूबर गांधी जयंती को अंतरराष्ट्रीय  अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है।  करीब पौने दो सौ साल से काबिज ब्रिटेन जिसे भारत से भागने के लिए मजबूर गांधीजी ने किया, वह भी उन्हें याद करता है, 30 जनवरी को राष्ट्रीय गांधी दिवस मनाकर। दक्षिण अफ्रीका की आजादी का  प्रेरणास्रोत ही गांधीजी हैं। 

यह उन्हीं का प्रभावशाली व्यक्तित्व था कि  दो बार के चुने हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से सुभाष चंद्र बोस को हटने के लिए कहा और उन्होंने अध्यक्ष पद छोड़ दिया। इसके बावजूद सुभाष चंद्र बोस की  गांधीजी के प्रति  सम्मान में कोई कमी नहीं आई। यहां तक कि जब उन्होंने आजाद हिंद फौज बनाकर अंग्रेजों के खिलाफ आजादी का बिगुल फूंका तो रंगून रेडियो से संबोधन में उन्हें राष्ट्रपिता कहते हुए उनसे आर्शीवाद मांगा।  दरअसल गांधी जी और सुभाष के बीच विचारधारागत विरोधाभास था। गांधीजी सुभाष चंद्र बोस के अनैतिक और  हिंसावादी तरीके से आजादी की लड़ाई से  सहमत नहीं थे।


गांधीजी  हिंदू थे, उन्होंने हिंदू शास्त्रों का गहन अध्ययन किया था। उनकी राम और कृष्ण में गहरी आस्था थी। उन्होंने गीता का गुजराती में भाष्य किया था। बाद में इसका कई भाषाओं में अनुवाद हुआ।  कहते हैं कि जब उनका निधन हुआ,  उनके मुंह से ‘‘ हे राम’’ निकला। राजघाट पर उनकी समाधि पर भी यह अंकित है। लेकिन वह वैसे हिंदू नहीं थे जैसा कि आजकल राजनीतिक उद्देश्यों के लिए लोगों को बनाया जा रहा है। किसी ने उनसे पूछा कि  क्या वह हिंदू हैं? इस पर उनका जवाब था,-‘‘ हां मैं हूं पर साथ में मैं एक ईसाई, मुसलिम, बौद्ध और यहूदी भी हूं’’।  उनका कहना था कि ‘‘यदि वेद ईश्वर प्रणीत है तो बाइबिल और कुरान क्यों नहीं’’? 

उनका हिंदू धर्म बहुत ही व्यापक था। वह धर्म से ज्यादा नैतिकता को महत्व देते थे। वह धार्मिक पाखंड के खिलाफ थे। जब वह दक्षिण अफ्रीका से भारत आए तो प्रयागराज (इलाहाबाद) कुंभ में भी गए।  उन्होंने देखा कि साधुओं के बड़े-बड़े पांडाल लगे थे। एक पांडाल में पांच पैरों की गाय दिखाकर चढ़ावा बटोरा जा रहा था। हुआ क्या था। एक बछड़े का पैर काटकर गाय के शरीर में चीरा लगाकर सिल दिया था। गाय दर्द से कराह रही थी। भक्तों से जय जयकार कराया जा रहा था। गांधीजी ने तुरंत कहा कि यह पाप है। ऐसा गांधीजी ही कर सकते थे।

अब यदि गांधीजी होते तो क्या हिंदू-मुसलिम के बीच विभाजनकारी कार्यकलापों को चलने देते।  शायद नहीं। क्योंकि उन्होंने उस जमाने में देश की धर्म निरपेक्षता की नींव रखी जबकि धार्मिक कट्ठरता अब की तुलना में कहीं ज्यादा थी।  वह धरना दे देते, इसके खिलाफ जनमत बनाते सरकार को मजबूर करते कि मंदिर, मसजिद नहीं अस्पतालों और विद्यालयों की जरूरत है। 

देश के विभाजन के दौरान जब  दंगे फसाद हुए  तो गांधीजी आजादी का जश्न मनाने दिल्ली में नहीं रुके बल्कि कलकत्ता (अब कोलकाता) में  भड़के भयंकर दंगों की आग को शांत करने पहुंच गए।  एक मुसलिम ने गांधीजी के वध का ऐलान  किया था। गांधीजी  निहत्थे उसके पास पहुंच गए। बातचीत के बाद वह उनका शिष्य बन गया। कहते हैं कि कलकत्ता में उसी दिन से दंगे शांत हो गए। 

जब अंग्रेजों ने दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र जैसी व्यवस्था करनी चाही तो उसे सफल नहीं होने दिया। इसके खिलाफ पूना में धरने पर बैठ गए। मजबूरन अंग्रेजों को कदम पीछे हटाने पड़े। वह दलितों के साथ भेदभाव और छुआछूत को हिंदू धर्म की बड़ी  विसंगति मानते थे। 

गांधीजी  देश के विभाजन के खिलाफ थे। उन्होंने अपने हरिजन अखबार के 6 अक्टूबर 1946 के अंक में लिखा था- ‘‘मुझे टुकड़ों में काट  सकते हैं लेकिन उस चीज  (विभाजन) के लिए राजी नहीं कर सकते’’। लेकिन दंगों के भारी खूनखराबे के कारण उन्हें विभाजन के लिए सहमत होना पड़ा। 

कांग्रेस के कुछ नेता पाकिस्तान को समझौते की राशि 55 करोड़ देने के खिलाफ थे। इस पर नैतिकता का हवाला देते हुए गांधीजी ने धरने की धमकी दी और सरकार को 55 करोड़ की धनराशि पाकिस्तान को देनी पड़ी। इसका खामियाजा गांधीजी को जान देकर चुकाना पड़ा।  नैतिकता उनके लिए जान से बड़ी थी। 

कुछ लोग गांधीजी का चरित्रहनन करने का पुरजोर प्रयास करते रहते हैं। इसके लिए तरह-तरह की बातें करते रहते हैं। लेकिन सही मायनों में गांधी  भगवान श्रीकृष्ण से भी महान थे। क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण जहां एक परिवार के मसले को नहीं सुलझा पाए जबकि वे दोनों के रिश्तेदार थे और दोनों पक्ष उनका सम्मान करते थे। नतीजतन महाभारत होकर रहा। जबकि गांधीजी  ने उन परदेशियों को देश के बाहर कर दिया जो गोला बारूद लेकर आए थे और बहुत शक्तिशाली थे, पूरी दुनिया में उसका राज था। आजादी की लड़ाई के दौरान लोग उन्हें भगवान जैसी श्रद्धा से देखते थे लेकिन उन्होंने इसे पसंद नहीं किया। वह बराबर कहते रहे कि वह एक इंसान हैं और उन्हें इंसान ही रहने दिया जाए। 





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