नारदजी की रिपोर्टिंग

                             


अब यदि देवर्षि नारदजी होते तो सच और झूठ के झमेले में फंस जाते, शायद पछताते, कहां फंस गए? इस चक्कर में वह डांट भी खा जाते। 

वह अभिनेता सुशांत राजपूत की आत्महत्या की रिपोर्ट लेने आते तो सबसे पहले मुंबई पुलिस उन्हें 14 दिन के लिए क्वारंटीन करती। ऊपर भगवानजी इंतजार करते रहते और वह नीचे सफाई देते रहते कि वह देवदूत हैं, भगवानजी को उन्हें रिपोर्ट देनी है। पर उनकी कोई नहीं सुनता।  नारद जी यदि परलोक में दंडित कराने की धमकी देते तो पुलिस वाले उन्हें उल्टा ही हड़का देते-‘‘जा-जा, परलोक वाले, हमें परलोक नहीं, इसी लोक की और इस लोक में भी मौजूदा सरकार की ताबेदारी करनी है। परलोक के लिए तो हमारे पास एक से बढ़कर एक ज्ञानी-ध्यानी हैं जो दान- दक्षिणा लेकर जन्म-जन्मांतरों तक के पाप नष्ट कर देते हैं’’।

बाद में किसी तरह छूटकर जब वह स्वर्गलोक  पहुंचते और भगवानजी को जो सच था, वही बताते लेकिन भगवानजी  शायद चकरा जाते-’’ क्या कह रहे हो, देवर्षि?  तकरीबन सारा मीडिया तो रिया चक्रवर्ती को जिम्मेदार ठहरा रहा है, आप उसे गंगाजल की तरह निर्दोष बता रहे हैं? क्यों? एक बार फिर सोच-समझ कर बोलिए’’?   देवर्षि सफाई देते-देते थक जाते-‘‘ हे प्रभु ऐसा क्यों कह रहे हैं? क्या मैंने कभी झूठ कहा है जो अब मुझ पर शक कर रहे हो? पहले तो आपने कभी ऐसा नहीं किया।

वेद और पुराणों के ज्ञाता नारदजी  अपनी सच्चाई साबित करने का प्रयास करते-‘‘ प्रभु आप तो अंतर्यामी हैं, सब जानते हैं। फिर अब संदेह क्यों’’?

 -‘‘अंतर्यामी तो मैं पहले भी था। जनमत भी कोई चीज है, इसे नकार कैसे सकते हैं। आपको तो याद है, त्रेता युग में भी मैने जनमत का ही सम्मान किया था’’। 

नारदजी फिर लौटकर पृथ्वीलोक पर आते और महीनों सबूत जुटाने के चक्कर में पुलिस से बचते-बचाते इधर-उधर घूमते रहते। एम्स और एनसीबी की जांच रिपोर्ट आने के बाद ही परलोक में भगवानजी को मुंह दिखाने पहुंचते। 

-‘‘लीजिए सबूत। अब तो मान लीजिए, मेरी रिपोर्ट ही सही थी’’। 

 भगवानजी मुस्कराते और अंर्तध्यान हो जाते। तत्पश्चात नारदजी भी-‘‘ नारायण-नारायण’’ कहते निकल जाते अगली रिपोटिंग के लिए।



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