बेरोजगारी महामारी
कोरोना महामारी है, यह हर कोई जानता है, इससे पूरी दुनिया त्रस्त है, बेरोजगारी उससे भी बड़ी महामारी बनने लगी है। क्योंकि कोरोना से एक बार को सावधानी वरत कर बच भी सकते हैं, उसकी मारक क्षमता भी कम है लेकिन बेरोजगारी ऐसी महामारी है जिससे कोई नहीं बच सकता। इसका उपाय केवल और केवल रोजगार है। अपने देश में इसका सबसे ज्यादा प्रकोप है। निकट भविष्य में इसके और भयंकर परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार पूरी दुनिया में 50 करोड़ से भी ज्यादा बेरोजगार हैं, इसमें सबसे ज्यादा योगदान कोरोना महामारी का है। दुनिया का सबसे ज्यादा शक्तिशाली देश अमेरिका भी इसका शिकार है। वहां कोरोना के कारण डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोगों को बेरोजगार होना पड़ा है। लेकिन अमेरिका अमेरिका है, वह अपने नागरिकों को इतना बेरोजगारी भत्ता दे देता है कि कोई दिक्कत नहीं होती।
सबसे ज्यादा दिक्कत अपने देश में है। कोरोना महामारी आने से पहले ही यहां दो करोड़ से ज्यादा नौजवान बेरोजगार थे। कोरोना काल में लोकडाउन के चलते 12 करोड़ से ज्यादा लोग और बेरोजगार हुए। क्योंकि लगभग सभी आर्थिक गतिविधियां बंद कर दी गई थी। जब से लौकडाउन खोला गया है, तब से अब तक करीब दो करोड़ लोग काम पर आ गए हैं। 12 करोड़ से ज्यादा अभी सड़कों पर हैं, वे रोजी-रोटी के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। जैसी कि स्थितियां लग रही हैं, निकट भविष्य में जब सारी गतिविधियां चालू हो जाएंगी, सभी को रोजगार मिलने की संभावना नहीं है।
गनीमत यहीं तक नहीं है, चिंता की बात यह है कि अपने यहां अभी और लोगों के बड़े पैमाने पर बेरोजगार होने की संभावना है। जिसकी और किसी का ध्यान नहीं है।
स्थिति को इस तरह भी समझा जा सकता है कि जो सरकारी कंपनी बंद या बेची जानी हैं, और जिनकी हिस्सेदारी बेची जा रही है, उनके भी काफी लोग नौकरी से बाहर होंगे। दूसरे सरकार द्वारा कृषि से संबंधित जो विधेयक पारित किए गए हैं, उनसे किसान बेरोजगार होंगे। क्योंकि सरकार इन विधेयकों के जरिए छोटे किसानों को खेती के काम से हटा कर खेती कंपनियों को देना चाहती है। किसानों से कहा जा रहा है कि वे पशु पालन, मुर्गीपालन, मछली पालन, मधुमक्खी पालन आदि कार्य करें। इन कार्यों में इतनी गुंजाइश नहीं है कि 40-45 करोड़ लोगों को रोजगार दे सके। इनमें पहले से ही 10-15 करोड़ लोग लगे हैं। उन्हीं का काम नहीं चल रहा। कहने का मतलब यह है कि ये 40 करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार होंगे।
अब आते हैं छोटे-छोटे दुकानदारों की ओर। इनका काम माल कल्चर और होम डिलीवरी सिस्टम छीन से रहा है। बड़ी-बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों के फुटकर मार्केट में कूद पड़ने से तीन करोड़ से ज्यादा दुकानदारों की रोजी-रोटी पर असर पड़ने जा रहा है। ये लोग क्या करेंगे? किसी के पास इसका कोई जबाव नहीं है। बेरोजगारी की स्थिति में लोग आत्मघाती कदम उठा लेते हैं। लौकडाउन के दौरान तमाम लोग ऐसा कर चुके हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरों की इस तरह की रिपोर्ट आती रहती हैं।
गांधीजी दूरदृष्टा थे। उन्होंने देश में बड़े उद्योगों का विरोध किया था। उनका कहना था छोटे-छोटे कुटीर उद्योग होने चाहिए जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को काम मिल सके। उनकी बात न तो नेहरूजी ने मानी और न और कोई मान रहा है। इसका परिणाम सामने है। देश का सारा कारोबार बड़े-बड़े उद्योग घरानों में सिमटता जा रहा है। गरीब और गरीब हो रहा है, अमीर और अमीर। इसके घातक परिणाम सामने आएंगे।
बहरहाल बेरोजगार युवक सड़कों पर है। पांच सितंबर को उन्होंने थालियां बजाकर विरोध जताया। 17 सितंबर 2020 को सड़कों पर प्रदर्शन कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्म दिवस बेरोजगार दिवस के रूप में मनाया। इस प्रदर्शन को केवल यह कहकर दरकिनार नहीं कर सकते कि इसके पीछे विपक्ष है। यह विरोध प्रधानमंत्री का है, भाजपा नेता का नहीं। इस विरोध को समझना होगा। विपक्ष तो पिछले छह साल से भी था। तब क्यों ऐसा नहीं हुआ?
केंद्र सरकार के एक मंत्री ने कहा है कि रोजगार देना उसकी जिम्मेदारी नहीं है यह उनका बहुत ही गैरजिम्मेदाराना बयान है। यह मध्य युग नहीं है, जनाब, जब राजा तलवार के बल पर बनता था। यह लोकतंत्र है, देश के एक-एक व्यक्ति के खाने से लेकर रहने, स्वास्थ्य और सुरक्षा की उसकी जिम्मेदारी है। जो यह जिम्मेदारी नहीं निभा सकते, उन्हें राजनीति में नहीं आना चाहिए।
यह ठीक है कि सरकार सभी को सरकारी नौकरी नहीं दे सकती लेकिन सबके लिए रोजगार की व्यवस्था उसे करनी होगी, ऐसा वातावरण बनाना पड़ेगा जिससे सभी चेन से रह सकें। भगवान भरोसे लोगों को नहीं छोड़ा जा सकता।
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