आसान नहीं चीन का बहिष्कार
चीन के सामानों के प्रति नफरत भारत में यू तो पिछले कई सालों से है। गलवान घाटी में चीनी सेना से हुई झड़प में बीस भारतीय सैनिकों के मारे जाने के बाद यह और बढ़ गई है। अब तो सोशल मीडिया पर चीनी सामानों के बहिष्कार की अपीलों की बाढ़ सी आ गई है। बहिष्कार, बहिष्कार और बहिष्कार। चीन के खिलाफ जिससे कुछ नहीं पड़ रहा है, वह बहिष्कार की अपील कर रहा है। चीन के कुछ सस्ते सामानों की होली भी जलाई जा रही है। बेशक चीन के सामान का बहिष्कार होना चाहिए लेकिन यह इतना आसान भी नहीं है।
चीन से हर साल अरबों डालरों का आयात होता है। इनमें बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रानिक मशीनरी, न्यूक्लीयर मशीनरी, आर्गेनिक कैमिकल, प्लास्टिक आइटम, फर्टीलाइजर, आप्टीकल एंड मेडिकल उपकरण, वाहनों के कलपुर्जे, लोहे और स्टील के सामान और अन्य कैमिकल्स आदि शामिल हंैं। जूते आते हैं और कांच का सामान भी। इन सामानों से भारतीय बाजार भरे पड़े हैं। इनका भुगतान हो चुका है, सरकार भी कर ले चुकी है। अब यदि इनका बहिष्कार किया जाए तो नुकसान किसका होगा? भारतीयों का ही न। क्या कोई आंदोलनकारी और सरकार उसकी भरपाई कर सकती है?
जिस हाइड्रोक्सीक्लोरीक्वीन की गोलियां दुनियाभर के देशों को भेजकर हमने वाहवाही लूटी उसमें कुछ सबस्टेंस चीन का होता है। इसी तरह अनेक दवाओं के सबस्टेंस चीन से आयात किए जाते हैं। है कोई ऐसा वंदा जो अपने बीमार परिजन की फिक्र न कर चीन से आयातित सबस्टेंस से बनी दवा का बहिष्कार कर दे? या ऊंची कीमत पर खरीदे सामान को जला दे अथवा तोड़ दे।
चीन की कंपनियों ने हमारे देश में बड़े पैमाने पर इनवेस्ट किया है, जिसमें एग्रीकल्चर, इंटरटेनमेंट, मैटल, टेक्लोलोजी, पर्यटन, ट्रांसपोर्ट, रियल एस्टेट आदि क्षेत्र शामिल हैं। कई राज्यों ने चीनी कंपनियों से सीधे करार किए हैं। अमेरिकन इंटरप्राइजेज इंस्टीट्यूट के प्रोजेक्ट दी चाइना इनवेस्टमेंट ट्रेकर के अनुसार यह निवेश करीब 12975 मिलियन डालर का है। इससे हमारे लाखों लोगों का रोजगार और करोड़ों का राजस्व जुड़ा है। इस नुकसान की भरपाई कहां से करेंगे? गुजरात में चीन की तकनीक से बनी सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा का क्या करेंगे?
दूसरे हम चीन से आयात ही नहीं करते उसे निर्यात भी करते हैं। वर्ष 2018-19 में चीन से आयात 70.32 बिलियन अमेरिकी डालर था तो निर्यात 16.75 बिलियन अमेरिकी डालर का। हालांकि निर्यात आयात के मुकाबले बहुत कम है। लेकिन निर्यात बंद होने से नुकसान तो भारत को होगा ही।
चीन ने हमारे साथ धोखा किया है। यह पहली बार नहीं है, इससे पहले भी वह कई बार धोखा कर चुका है। सीमा विवाद पर वह समझौता करने के बावजूद मुकर जाता है। हमारे हुक्मरानों को इसके बारे में भलीभांति पता है। इसके बावजूद हम धोखे पर धोखे खाए जा रहे हैं तो यह किसकी कमी है? चीन ने हमारे साथ जो किया है, उसका जवाब सरकार को ही देना है, इसके लिए जनता के कंधे पर बंदूक रखना उसके गुस्से को हर वक्त वोट में बदलना उचित नहीं है। जनता तो सरकार के साथ है। सरकार यदि चाहे तो एक मिनट में चीन से आयात बंद कर सकती है।
कोई शक नहीं कि चीन के सामान का बहिष्कार होना चाहिए। लेकिन इससे पहले हमें आत्म निर्भर बनना होगा। हमें उन सारी चाजों का विकल्प अपने यहां खोजना या पैदा करना होगा जिसके लिए हम चीन पर निर्भर हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आत्मनिर्भरता पर जोर दे रहे हैं। यह बहुत सही बात है। जो बात बहुत पहले से की जानी चाहिए, अब की जा रही है। जब जागों तभी सवेरा। यह आत्मनिर्भरता तब तक नहीं आ सकती जब तक कि हम केवल चीन ही नहीं दुनिया भर से लिए जाने वाले सामानों का विकल्प अपने ही देश में पैदा नहीं कर लेते।
बड़ी विडंबनापूर्ण स्थिति है जो चीजें हमें निर्यात करनी चाहिए हम आयात करते हैं। उदाहरण के लिए कई खाद्यान्न उत्पादन में हम पूरी दुनिया में नंबर वन हैं। लेकिन हमारे पास पर्याप्त दालें नहीं है। कभी-कभी इनके दाम आसमान पर चले जाते हैं। इसके अगले साल जब किसान दाल का भरपूर उत्पादन कर लेता है, सरकार इन चीजों का आयात कर किसानों की ही कमर तोड़ देती है। खाद्य तेल भी हमारे पास पर्याप्त नहीं है। इनका भी आयात होता है। इनकी भी इसी तरह की कहानी है। हमारे पास बड़े पैमाने पर कच्चा लोहा है। कई मुल्क हमसे सस्ता लोहा लेकर उसे बनी महंगी कारें और अन्य उपकरण हमें बेचते हैं।
अटलजी ने जब पोखरण में परमाणु परीक्षण कराया था तब यह उम्मीद की गई थी कि हम अब सुरक्षित हंै। इसके बावजूद तकरीबन हर साल अरबों के हथियारों की खरीद हमें करनी पड़ती है। मेडिकल और इलेक्ट्रानिक उपकरण, दवाएं अधिकांश बाहर से खरीदी जाती हैं। यहां तक कि कंप्यूटर के मामले में भारतीयों का सबसे तेज दिमाग है, फिर भी कंप्यूटरों के उपकरणों का आयात होता है। कच्चे तेल और गैसों के मामले मे भी हम दूसरे मुल्कों पर निर्भर हैं। जरूरत का 75 प्रातिशत से ज्यादा कच्चा तेल आयात किया जाता है। कुल मिलाकर हमारा निर्यात कम है और आयात ज्यादा तो इसके लिए जनता नहीं सरकारें ही दोषी हैं।
व्यावहारिक बातें कहीं हैं आपने.. सैद्धांतिक तौर पर चीनी सामान के बहिष्कार की बातें अच्छी लगती हैं लेकिन व्यवहार में कोई इन पर अमल नहीं कर पाता... इसका एक कारण ये हो सकता है कि उसके उत्पाद सस्ते पड़ते हैं और देश की गरीब जनता उन्हें खरीदकर अपने शौक पूरे कर लेती है... दूसरे कई लोगों को ये पता नहीं होता कि अमुक उत्पाद चीन का है.. उसके इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, मोबाइल, apps, electical सामान घर घर में use हो रहा है... उनसे एकदम नाता तोडना संभव नहीं है... हां धीरे धीरे कर चीन को अपने घरों से बाहर धकेला जा सकता है इसके लिए भारत को उसके product के विकल्प उपलब्ध कराने होंगे...
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