छप्पर फाड़ के

                 
      डा. सुरेंद्र सिंह
अपने इस लोकतंत्र के साथ यह बड़ी ‘सुविधा’ है कि इसमें आसानी से तो कोई पकड़ा नहीं जाता यदि पकड़ा भी जाए तो कुछ दिन अंधकार रहता है फिर  उसे चीरकर फिर से प्रकाश में आने में कामयाब हो जाता है। जैसे अपनी जयललिताजी।  उन्होंने थोड़े से समय में ही अपने को निर्दोष साबित कर दिया। १९ साल पुराने केस का दस सेकंड में ही फैसला। भगवान जब देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है।  जब आय से अधिक संपत्ति पकड़ी गई थी, तब लोग चौक रहे थे, हाय राम, इतनी संपत्ति(६६ करोड़), २००० एकड़ जमीन, इतनी चप्पलें, इतने जेबरात (३० किलो सोना), १२ हजार साड़ियां? गजब! लोगों ने इतना सामान देखा तो क्या सुना भी नहीं था। क्या करती होंगी इनसे?  लेकिन अब कोर्ट ने मान लिया है कि इनके पास आय से दो प्रतिशत  कम संपत्ति थी। यह पक्का सबूत है। सारे सबूत एक तरफ कोर्ट का सबूत एक तरफ। अब वह निष्कंटक राज करेंगी। हाथी वाली मेडम के भी कुछ दिन अंधकारमय रहे लेकिन अंतत: उन्होंने भी विजय पा ली, उन पर भी आय से अधिक संपत्ति नहीं पाई गई। । साइकिल वाले भद्रजन पूर्व सरकार में खूब अच्छी तरह अंधकार को चीरते रहे, उन पर भी अभी तक आय से अधिक संपत्ति साबित नही हो पाई। कोई ‘बाल बांका’ नहीं कर सका। देखना एक न एक दिन लालू भैया भी अंधकार पर विजय पाकर ही रहेंंगे, ‘भगवान के घर देर है अंधेर नहीं’।
क्या जमाना आ गया है सब आय से अधिक संपत्ति वालों के पीछे पड़े रहते हैं, छापे भी उन्हीं पर मारते हैं, उन्हें ही पकड़कर ले जाते हैं, जेल में डालते हैं, केस चलाते हैं। लेकिन जिन पर कोई आय ही नहीं है, आय के लिए मारे-मारे फिरते हैं, उन पर कोई नजर तक नहीं रखता। अरे भाई उनसे छीन रहे तो इन्हें दो भी। सड़क पर मिल जाए तो आंखें फेर कर निकल जाते हैं। न कुछ देखते हैं न सुनते हैं। जैसे सड़क के गड्डों से नगर निगम के अधिकारी आए दिन  निकलते हैं  लेकिन उन्हें ठीक तभी करते हैं जबकि कोई पीछे ही पड़ जाए। कानून तो सबके लिए एक होना चाहिए। जिस पर ज्यादा है, उसके लिए भी और जिस पर कुछ नहीं है, उसके लिए भी। जैसे वोट सबका एक बराबर  है।
लोकतंत्र जनता का जनता के लिए जनता द्वारा शासन जरूर है लेकिन जनता के नाम पर शासन कुछ लोग ही करते रहते हैं। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र आराम से चलता रहता है, ‘बिना पेट का पानी तक हिलाए’। पहले बाप ने राज किया, फिर बेटी ने राज किया। इसके बाद फिर बेटे ने, पत्नी ने अब फिर से बेटे के लिए कसरत चल रही है। ‘कोऊ नृप होउ हमें क्या हानि’। ऐसे ही डाक्टर के बेटे डाक्टर बन जाते हैं, अधिकारियों के बेटे अधिकारी, बाबुओं के बेटे बाबू, चपरासियों के बेटे चपरासी, उद्यमियों के बेटे उद्यमी, व्यवसाइयों के बेटे व्यवसायी। एकाध भूला भटका आगे-पीछे हो जाता है, बहुमत उन्हीं का है।
लोकतंत्र के साथ और भी कई ‘सुविधा’ हैं, अमीर और अमीर होता रहता है, गरीब और गरीब। सब अपनी-अपनी साइड में आगे बढ़ते रहते हैं। जो चीज एक बार आगे बढ़ गई, वह पीछे नहीं लौटती। पीछे मुड़कर किसने देखा है। वीर तुम बढ़े चलो, महंगाई तुम बढ़े चलो, भ्रष्टाचार तुम बढ़े चलो, परेशानी तुम बढ़े चलो। हम तुम्हारे साथ हैं।

Comments

Popular posts from this blog

गौतम बुद्ध ने आखिर क्यों लिया संन्यास?

राजा महाराजाओं में कौन कितना अय्याश

खामियां नई शिक्षा नीति की