हे प्रभु! यादव सिंह जैसा बना दो


डा. सुरेंद्र सिंह
यादव सिंह ने पिछले जन्म में जरूर कोई बड़  पुण्य किए होेंगे, कड़ा तप किया होगा जो अब लक्ष्मीजी की उन पर इतनी असीम कृपा हुई।  जैसे नाबलिंग से दुराचार के मामले में फंसे पाखंडी आशाराम बापू के बारे में भी यह कहते हुए लोग मिल जाते हैं कि बाबाजी को गलत फंसाया गया है। उन पर गलत ग्रहों का प्रकोप चल रहा है, देख लेना एक दिन वह जरूर पाकसाफ बाहर निकलेंगे। उसी तरह यादव सिंह के बारे मेंं चर्चा करने वालों की कमी नहीं है। ।
यादव सिंह जैसे लोग हर सदी में, हर युग में, हर महकमे में, हर राज्य में होते आए हैं जो कानून कायदों को खूंटी पर टांगते हुए सुपरस्टार जिंदगी जीते हैं। प्राचीन काल में इनकम टैक्स जैसा कोई विभाग कहां था जो बिना बताए, किसी भी दिन किसी भी टाइम आ टपके। फिर गर्दन ऐसी पकड़े कि कितना ही कसमसाओ, निकलने ही न दे। वैसे विकास का पहिया अब कुछ ज्यादा तेजी से चल निकला है। अपने मोदी का विकास कब आएगा?  यह पता नहीं लेकिन घोटालों का विकास आजादी के बाद से ही दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार से चल रहा है। आजाद भारत में १९४८ में सबसे बड़ा पहला मिलिट्री जीप घोटाला तत्कालीन  कांग्रेस सरकार में वीके मैनन के नाम है।  तब से अब तक न जाने कितने घोटाले हो चुके हैं, साइकिल घोटाला, बीएचयू फंड घोटाला, शेयर घोटाला, जूता घोटाला चारा घोटाला आदि-आदि। इस पर थीसिस लिखी जा सकती है। अब वह उनके चेले चाहें तो घोटालों को आधार बना कर विकास का दावा कर सकते हैं। कह सकते हैं कि विकास है, तभी तो घोटाले हो रहे हैं। जो कांग्रेसनीत सरकार पहले कहती और करती थी, वही तो सब यह कर रही है।
लक्ष्मीजी चंचला हैं। कब कहां किस पर मेहरबान हो जाएं, उनकी मर्जी। कितने ही कानून बना लो, कानून तो धरती के हैं, लक्ष्मीजी स्वर्ग से आती हैं। जाने कितने देवता आए और चले गए। हजारों साल पहले इंद्र सबसे बड़े देवता थे। श्रीकृष्ण, श्रीराम बाद में आए। हाल के कुछ वर्षो पहले संतोषी माता का जमाना था। महिलाएं सिनेमा हाल में उनकी आरती का दीपक लेकर जाती थीं। पर्चे बंटते थे। अब सांई बाबा और शनि देव का जमाना चल रहा है। लेकिन लक्ष्मीजी का प्रभाव न किसी समय में कम रहा  और न अब कम है। उनके नाम पर हर समय, हर जमाने में चारों ओर जगमग है। यह भी कह सकते है कि नए जमाने में अब ज्यादा दिख रहा है।  अब लोग घाटाले की रकम पचाने के लिए जान तक देने लगे हैं। टूजी स्पेकट्रम घोटाले में फंसे तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए राजा के सहयोगी नेआत्महत्या करके दूरदर्शिता का उदाहरण पेश किया। अपना न भला तो परिवार का भला। जान जाती है तो जाती रहे लेकिन लक्ष्मी बनी रहे। इस जन्म में छोड़कर जाओगे तो अगले जन्म में मिल जाएगी। कहते भी हैं कि इस जन्म के पुुण्य अगले जन्म में काम आते हैं। फिर इस जन्म की संपत्ति अगले जन्म  में क्यों नहीं? जैसा छोड़कर जाओगे, वैसा पाओगे। शास्त्रों में कोई गलत थोड़े ही कहा है।
तभी तो नित नए यादव सिंह सामने आ रहे हैं। कुछ यादव सिंह हैं जो अभी तक खोल में छिपे हुए शाही जिंदगी जी रहे हैं। वे भगवान से तरह-तरह से प्रार्थना कर रहे होंगे कि हे प्रभू बचाले, तेरे लिए यज्ञ करवा दूंंगा, सोने के मुकुट से लेकर घंटा तक चढ़ा दूं। तू बता दे जो चाहे जो कर दूंगा लेकिन आफत से बचा ले। कुछ मेरे जैसे भाई लोग ऐसे भी हैंं जो प्रार्थना कर रहे होंगे कि हे प्रभू! कष्ट चाहे जितने बाद में दे देना, पहले यादव सिंह जैसा बना दे। लक्ष्मी तो आए, कष्ट झेलते रहेंगे। जेल काटनी है तो काट लेंगे। छापे पड़ने हैं तो पड़वा लेंगे, और भी जो कष्ट दोगे झेल लेंगे।  कष्ट अभी कौन से कम हैं, कोई ठीक से बोलता  तक नहींं।  गली का कुत्ता तक नहीं पहचानता। तब अखबारों में नाम छपेगा तो भी नाम ही होगा, लक्ष्मी के साथ कष्ट कष्ट नहीं रह जाते।

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