अच्छे दिन

        
        डा. सुरेंद्र सिंह
यह कंपटीशन का युग है। चाहे पढ़ाई हो, नौकरी अथवा पुरस्कार, बिना कंपटीशन कहीं कोई गुजारा नहीं। मोहल्ले से लेकर पूरी दुनिया कंपटीशन के दौर से गुजर रही है। जिंदगी में आंखें खोलने से लेकर मरने तक पग-पग पर कंपटीशन ही  कंपटीशन हैं। बच्चा ठीक से रो भी नहीं पाता, मम्मी लगी हैं, उसे सजाने-संवारने, मेरा मुन्नू पड़ोसन के बच्चे से सुंदर दिखना चाहिए। सबसे ज्यादा तारीफ इसी के खाते में आएं।
रोने के भी कंपटीशन हैं, आप कितना अच्छा रो सकते हैं, कितनी देर तक रो सकते हैं, यदि आप में यह हुनर है तो सीरियल, फिल्मों में रौल पा सकते हैं। यही नहीं गिनीज बुक में नाम लिखा अमर हो सकते हैं।
कंप्यूटर में अपने लोगों का दुनिया में पहला नंबर है। सुनकर छाती चौड़ी हो जाती है, छप्पन इंच की। लेकिन चीन वाले कंपटीशन में दूसरे स्थान पर आ गए हैं, तीसरे नंबर पर ब्राजील के युवा हैं। मेरे देश के नौजवानों, कमजोर मत पड़ जाना, जुटे रहो, कोई आगे नहीं निकल पाए। नाक बचाने का एक तुम्हारा ही तो आसरा है।
कभी-कभी रेलगाड़ियों में होड़ा-होड़ी हो जाती है, कौन कितना लेट होगी? देख हम दो घंटे लेट हैं, ये लो हम चार घंटे लेट। सात, आठ और १२-१४ घंटे तक लेट होने वाली गाड़ियां बाजी मार ले जाती हैं। यात्री विचारे पड़े हैं। टाइम काटने के लिए इसने एक आइस क्रीम खा ली, हम दो खा लेते हैं, ये लो हम तीन खाएंगे। मौसम में भी होड़ा-होड़ी होती है विदर्भ में अभी बर्षा नहीं हुई, उत्तर प्रदेश में भी नहीं हुई। राजस्थान में ओले पड़ें हैं तो उत्तर प्रदेश में क्यों नहीं?
 बेलदारी के लिए आदमियों का कंपटीशन सड़क के चौराहों पर होता है और कुत्तों का कंपटीशन फाइव स्टार होटलों में। लोग सजा-धजा कर लाते हैं, अपने लाड़लों को। नहला-दुल्हा कर, बढ़िया कपड़े पहना, बैल्ट लगा। कई लोग परफ्यूज भी उड़ेल देते हैं। 
राजनीतिक दलों में भी कंपटीशन है, कौन-कितना पब्लिक को बेवकूफ बना सकता है, कौन कितना झूठ बोल सकता है, वह उतना ही महान और कामयाब है, सरकार बनाने का भी अधिकारी है। सरकार बन जाने पर कौन कितना पब्लिक को चूस सकता है, कौन पब्लिक से किए कितने वायदों को भुला सकता है। कौन कितनी महंगाई ला सकता है इसका कंपटीशन है।  इन्होंने किसानों से किए वायदे पूरे नहीं किए तो हम क्यों करें?  अरे इसने सर्विस टैक्स बढ़ाया है। ठीक है हम देखते हैं, कैसे आगे निकलता हैं हम बिजली की दरें बढ़ा देते हैं, छह रुपये प्रति यूनिट। अच्छा तो अब यह बात है, हम पेट्रोल के दाम चार रुपये प्रति लीटर और डीजल के दाम तीन रुपये प्रति लीटर और बढ़ा देते हैं। चुनाव में तो आपने महंगाई कम करने के वायदे किए थे? -बच्चू वे चुनाव के वायदे थे, चुनाव आने दो फिर और वायदे कर देंगे। अब ये ‘अच्छे दिन’ हैं इनका मजा लो, ‘‘किसान मुआवजे से मालामाल हो गए हैं, वे खुशियां मनाएं, पार्टी दें’’। आपके पास कोई और फार्मूला हो तो बता दीजिए। चलेगा, इसके लिए पुरस्कार भी मिल सकता है। पब्लिक चिल्ला रही है,- भाई आपस में ही क्यों मरे जा रहे हो, कुछ हमारे ऊपर रहम करो, हम वोटर हैं, हम आपके काम आते हैं आपकी सरकार बनवाते हैं। दोनों कान में रूई लगा लेते हैं, कोई थोड़ी सी तो कोई उससे ज्यादा। अभी चुनाव कहां हैं, चुनाव आएंगे तब वायदों का कंपटीशन कर लेंगे। एक-एक से एक स्पेशलिस्ट लगा देंगे, मनोहारी वायदों के लिए।

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