मंदिर-मंदिर

            
         डा. सुरेंद्र सिंह
खेल कई तरह के हैं। कुछ लोग कबड्डी-कबड्डी खेलते हैं, कुछ क्रिकेट-क्रिकेट, कुछ हाकी ही हाकी, तो कुछ लोग मंदिर-मंदिर खेलते हैं तो कुछ लोग भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचार खेल रहे हैं। अपनी-अपनी पसंद के खेल हैं। कुछ लोग खेल के नाम पर पूरी जवानी गुजार देते हैं, जो लत पड़ गई, वह बुढ़ापे में भी नहीं जाती। किसी न किसी तरह खेल से ही जुड़े रहते हैं। कुछ लोग खेल न जानने पर खेलों के सर्वेसर्वा बन जाते हैं। ऐसे ही कुछ लोग दशकों तक एक ही खेल खेलते रहते हैं। विरले होते हैं तो समय से संन्यास ले लेते हैं।
खेल से जिंदगी आसान हो जाती है। खेल न हो तो जिंदगी कितनी उबाऊ और नीरस हो जाए। पुरखों ने बहुत सोच समझकर इन्हें ईजाद किया। महानगरों में जिन्हें दिन में टाइम नहीं मिलता वे रात में खेलते हैं। कुछ लोग जिन्हें इसके लिए अवसर नहीं मिलता, वे काम को खेल की तरह खेलते हैं।
खेल-खेल में लकड़ी काटने में लकड़हारे की कुल्हाड़ी नदी में गिर गई। रोने लगा, अब किससे खेले? यक्ष को दया आई। वह लोहे की जगह पीतल की कुल्हाड़ी नदी से निकाल लाया। शायद इससे खुश हो जाए। लकड़हारा फिर भी रोने लगा। यक्ष पीतल की कुल्हाड़ी ले गया, कुछ देर बाद चांदी की कुल्हाड़ी निकाल लाया। लकड़हारा फिर भी रोने लगा। यक्ष फिर उसे ले गया, लोहे की कुल्हाड़ी ले आया।
भाजपाई  मंदिर-मंदिर कई दशकों से खेल रहे हैं। हर चुनाव मेंं यह मुद्दा होता है। चाहे बिजली पानी, सड़कें भूल जाए लेकिन इसे नहीं भूल सकते। पहले मंंदिर बनवाने के लिए उत्तर प्रदेश में सरकार न होने का रोना रोते थे।  जब उत्तर प्रदेश में सरकार बनी तो कहने लगे केंद्र में सरकार बनने पर मदिर बनवा देंगे। केंद्र में सरकार बनी तो कहने लगे, पूर्ण बहुमत की सरकार बनेगी तभी बनवा पाएंगे। अब केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार है तो कह रहे हैं कि दो तिहाई बहुमत की सरकार चाहिए, तभी मंदिर बन पाएगा। ऐसा होने पर क्या कह सकते हैं? अनुमान लगाइए।
आम आदमी पार्टी वाले पहले भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ते थे। पहली बार जब दिल्ली में सरकार बनी तो बोले भ्रष्टाचार सभी का मुद्दा है, गरीब से लेकर अमीर तक इसकी चक्की में पिस रहे हैं। दूसरी बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनने पर कह रहे हैं कि वह गरीबों के लिए भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे हैं। कुछ दिनों बाद किसके लिए भ्रष्टाचार की लड़ाई लड़ेंगे?
मंदिर बने, न बने, भ्रष्टाचार खत्म हो या नहीं हो लेकिन खेल चलता रहेगा। लकड़हारे को रोना ही है। कुल्हाड़ी उसे कैसी भी पकड़ा दो।

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