ह्वाइटनर

    
            डा. सुरेंद्र सिंह
ह्वाइटनर मुआ निकम्मा सिर्फ कागज पर ही लगता है। यदि यह दिल पर लग जाता तो न जाने कितनों की जानें बच जाती, कितनों को डाक्टरों के चक्कर लगाने से मुक्ति मिल जाती सेहत ठीक रहती, ब्लड प्रैशर नहीं बढ़ता और न जाने क्या से क्या हो जाता, दुनिया बदली-बदली सी नजर आती। घर-घर के दोस्त-दोस्तों के, आस-पड़ोस के रिश्ते खराब होने से बच जाते।
लेकिन क्या किया जाए, यह सिर्फ कागज का ही मुरीद है। कागज पर कोई गलती है फौरन लगाओ, फौरन उसे छिपाओ।  भूल सुधार के लिए यह साफ सुथरा तरीका है। नेताओं की तरह। अंदर से चाहे कितने ही कलुषित हैं लेकिन बाहर एकदम झकाझक टिनोपाल युक्त।
पहले भी क्या था जो एक बार लिख गया, वह लिख गया, पत्थर की लकीर। मुगलकालीन स्मारकों की दीवारों पर सैकड़ों साल पहले लिखे को देख लो, आज भी वैसा ही दमकता है। कोई माई का लाल उसे बदल नहीं सकता। जो एक बार गलती हो गई, वह हो गई। पहले स्याही भी ऐसी पक्की थी जो छुड़ाए नहीं छुटती। बाद में गलती सुधार जमाना आया। पहले गलती सुधार कार्बन पेंसिल आई। उसके साथ रबड़ का अटल संंंबंध स्थापित हो गया। गलती हो तो फौरन सुधारो। एक हाथ में पेंसिल तो दूसरे में रबड़ लेकिन कागज पर उसका कुछ न कुछ निशान जरूर रह जाता। यह टाट में पैबंद की तरह लगता। यदि स्याही से लिखा है तो ब्लेड से खुरच कर गलती सुधारी जाती, उसमें समय तो ज्यादा लगता भी, भद्दापन और ज्यादा हो जाता। कई बार ज्यादा खुरचने में कागज ही फट जाता। छोटी सी गलती अमिट गलती बन जाती। 
सो इसकी जगह नया नवेला ह्वाइटर आया। इसने मार्केट पर स्प्रिट में आग लगने की तरह तेजी से कब्जा कर लिया है। कोई दफ्तर हो, कहीं भी लिखा पढ़ी का काम हो, यह संंजीवनी बूटी की तरह सभी जगह मौजूद होगा। अब इसके लिए उड़कर नहीं जाना है। जैसे ही गलती, वैसे ही सफाचट। गलती का नामोनिशान नहीं रहता। पहले भले ही उस पर किसी को गाली लिख दो, बाद में ह्वाइटर लगा उस पर प्रेमभरी बातें लिख तो। कोई पहचान ही नहीं पाएगा।
इस ह्वाइटर ने बहुतों की जिंदगी सुधारी हैं तो इतनों की बर्बाद भी की हैं। लेकिन इस बार पकड़ा गया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस ह्वाइटर पर भी ह्वाइटनर फिरा दिया है। वरना न जाने कितने सालों से भाई लोग इसके जरिए काले को सफेद करने में जुटे थे। पास किसी को होना चाहिए था, कोई दूसरा पास हो जाता। अब भाई लोग जुटे होंगे ह्वाइटर का भी बाप ईजाद करने में, ताकि सांप भी मर जाए, लाठी भी न टूटे। 

Comments

Popular posts from this blog

गौतम बुद्ध ने आखिर क्यों लिया संन्यास?

राजा महाराजाओं में कौन कितना अय्याश

खामियां नई शिक्षा नीति की