लड़कियां फिर आगे
डा. सुरेंद्र सिंह
लड़कियां फिर-फिर आगे हैं। कोई भी रिजल्ट आ रहा हो. यूपी बोर्ड, सीबीएसई अथवा आईसीएसई, यह तय है लड़कियों को ही आगे रहना है। पिछले कुछ सालों से बदले सूचकांक की तरह यह नियति जैसा है। पहिया जब आगे को घूमता है तो घूमता चला जाता है जब उल्टा चलता है तो उल्टा ही चला जाता है। लड़कियों का मामला भी अब कुछ ऐसा ही है।
किसी भी सर्वेक्षण या मार्केर्टिंग के लिए चार लड़कों और इतनी ही लड़कियों को भेज दो, सायं को रिजल्ट यही होगा, लड़कियां आगे। प्रशासनिक कार्य हो, अनुशासन का मामला हो, लड़कियां ही आगे। रास्ते में जरा लड़कियों को छेड़कर देखिए, कोई-कोई लड़की ऐसी दुर्गा बन जाती है, लड़कों को दुम दबाकर भागना पड़ता है।
बहुत पहले यह धारणा थी कि लड़की का मतलब फिसड्डी, शरीर से ही नही, दिमाग से भी। लड़कों की तुलना में दबी-दबी सी। मेरे भाई का लड़का है। बहन उससे तीन साल बड़ी है। लेकिन वह उस पर इस तरह रौब गांठता है कि वही उसका अभिभावक हो। कहां जा रही है, किससे बात कर रही है, स्कूल से आने में देर क्यों हुई? ऐसी जाने कितनी जन्मजात आदतें हैं लड़कों की वे लड़कियों को अपने सामने दो टके की नहीं समझते।
मैंने कई लड़कों से बात की, ये लड़कियां क्यों आगे रहती हैं? सबका तकरीबन एक जैसा जवाब था-‘‘घर में रहती हैं, घुन की तरह पढ़ाई में लगी रहती हैं, लड़कों बाहर के कामों से इतनी फुर्सत ही कहां मिलती है’’। पर बच्चो, लड़कियां केवल अपने यहीं नहीं, दुनिया भर में अब आगे निकल रही हैं। आबादी जरूर उनकी लड़कों की तुलना में कम हो रही है लेकिन वे बहुत से मामलों में आगे निकल रही हैंं। सालों पहले ब्रिटेन में हुए एक शोध का यह निष्कर्ष है कि यदि लड़कियों को यह अहसास कराया जाए कि वे लड़कों से कमजोर नहीं हैं और दोनों को एक जैसा वातावरण उपलब्ध कराया जाए तो लड़कियांं लड़कों से आगे निकल जाती हैं।
स्थितियां बदल रही हैं, आर्थिक स्थितियां सुधरने, जागरूकता से लड़कों जैसा वातावरण मिलने लगा है। नतीजतन लड़कियां अब लड़कों से आगे निकलने लगी हैं। लड़कियां अब तक बहुत दबकर रह लीं। लड़कों, आपको यह अहसास हो जाना चाहिए लड़कियां अब कमजोर नहीं हैं। अभी इतनी है,ं आगे और भी आगे होंगी। जो दबेगा, वही उछलेगा। लड़कियों पर अत्याचार ठीक नहीं है।
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