उलटे चलिए

            
         डा. सुरेंद्र सिंह
उलटा चलना हर किसी के वश में नहीं। ज्यादातर लोग बने ही इसलिए होते हैं कि वे सीधे एक रास्ते पर ताजिदंगी चलते रहें। कुछ लोग ही ऐसे होते ही हैं जो उल्टे चल सकते हैं, उल्टे चलते हैं, हर वक्त, किसी भी स्थान पर उठते-बैठते, एक ही लगन, उलटे चलिए।   ऐसे ही जैसे नदी में मछली उल्टी धारा में चलती है।  सांप बांबी में भी टेड़ा चलता है। आप कहेंगे सूरज पूरब में उगता है तो वे झट बिना एक क्षण गंवाए उसे पश्चिम मेंं बता देंगे। इसके बाद उसके समर्थन में तर्क देने जुट जाएंगे। आप देते रहे अपने साक्ष्य लेकिन वे आपकी लगने ही नहीं देंगे।
बिचपुरी और मलपुरा के बीच नहर की दोनों पटरियों पर सड़क बनी है। दोनों रोड तकरीबन एक जैसी हैं न बहुत अच्छी और न बहुत खराब, ‘न सावन सूखे न भादों हरे’। मेरे जैसे तमाम लोग अपनी-अपनी साइडों पर चलते हैं लेकिन कुछ महानुभाव वाहन वाले उल्टी साइड में गमन करते हैं पता नहीं उन्हें इसमें क्या आनंद आता है, हो सकता है बिना उल्टे चले पानी नहीं पचता हो। कई बार जाम में भी फंसते हैं लेकिन नही मानते। मन में सोचते होंगे देखो हम चल रहे हैं उल्टे। सीधे रास्ते पर चले तो क्या चले। कहावत भी है-‘लीक छाड़ि तीनों चले सायर, सिंह, सपूत’।
मेरा एक साथी रिपोर्टर उसे जब कभी पूछो,  कहां हो भाई? वह जिस स्थान पर बताता जहां वह होता ही नहीं था। कभी नहीं हुआ, लोग कह-कह कर थक गए, भाई कहीं तो सच बोलो? कोई घटना हो जाए तो फोटोग्राफर परेशान। वे उसके बताए स्थान पर समय से पहुंच जाएं और इंतजार करें। वे जनाब हैं कि कुछ देर बाद दूसरी दिशा से चलते चले आ रहे हैं।
मेरे गांव में चकबंदी थी। सहायक चकबंदी अधिकारी हर किसान से बारी-बारी से पूछता-‘‘ तुम्हें कहां चक चाहिए?’’  मैंने सोचा यह तो बड़ा अच्छा अधिकारी है, पूछ-पूछ कर चक दे रहा है। पर किसान जिस स्थान पर अपना चक मांगते, वह कहता-‘‘यहां तो किसी भी हालत में नहीं बन सकता दूसरी जगह लो’’। हर किसान को उसका एक यही रटारटाया उत्तर। जब मेरा नंबर आया तो मैंने उस जगह चक मांगा जहां मुझे लेना ही नहीं था।  उससे दूसरी जगह चक लेकर  मैंने बाजी मार ली। बाकी को मनचाही जगह चक के पैसे देने पड़े।
कबीर की साखी, सबदों में उलटबासी सबसे ज्यादा चर्चित हैं। सभा में सीधे-सच्चे बोलने वाले हूट होते हैं और उल्टे बोलने वाले तालियां लूट ले जाते हैं। कही बैठक हो रही है। आप गुम-सुम बैठे हैं। कोई किसी भाव नहीं पूछ रहा। बोलिए न उल्टा। सब सुनेंगे याद भी रखेंगे।  पार्क में कुछ लोग उलटे टलहते हैं। मैंने सोचा इसमें जरूर कोई तथ्य की बात होगी। यह विरला लग रहा है। मैंने कोशिश की, कई से टकराया। गिरते-गिरते और पिटते-पिटते बचा। मैंने कान पकड़ लिए। जो हुआ सो हुआ आइंदा फिर कभी नहीं। एक बढ़िया डाक्टर ने कहा-‘‘याददाश्त बढ़ाने के लिए उल्टी गिनती याद करो, उल्टे पहाड़े बोलो’’। मेरी हिम्मत नहीं पड़ी। उल्टे चलकर देख लिया, उल्टी गिनती में जाने क्या आफत आ जाए?
उल्टा चलनेकी हर किसी में सामर्थ्य नहीं और न भाग्य में। वह तो विरले ही हैं जो उल्टे चल सकते हैं, उल्टे बोल सकते हैं, उल्टा सोच सकते हैं, उल्टे हाथ से ज्यादा तेजी और साफ सुथरा लिख सकते हैं।  सचिन तेंदुलकर को ही ले लीजिए वह उल्टे हाथ से क्रिकेट ज्यादा अच्छा खेलते रहे हैं। भाई आजम खां को देख लीजिए, वह उल्टा बोलते हैं, सब पर भारी रहते हैं, वरना कौन पूछता इस नेतानगरी के जंगल में।  कहते हैं, भूत के पैर उल्टे होते हैं, उनमें बहुत ताकत होती है। कुछ लोगों की ‘उल्टी खोपड़ी’ होती है, उनमें ज्यादा बल बुद्धि होती होगी? मुझे नहींं पता। यह शोध का विषय हो सकता है।

                  
  

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