किसने किस की क्लास ली

 
       डा. सुरेद्र सिंह
अब लो यह भी मुद्दा है। किस ने किसकी क्लास ली? किसने किस की कक्षा अटैंड की। खैर मोदी ने देर से ही सही पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की क्लास अटैंड कर ली। उन्होंने लीक नहीं तोड़ी। तकरीबन सभी प्रधानमंत्री अपने से पूर्व प्रधानमंत्रियों की क्लास अटैंड करते रहे हैं। अटल बिहारी वाजपेयी और चौधरी चरण सिंह ने भी ऐसा किया। अटल ने पीवी नरसिंह राव की क्लास अटैंड की और चौधरी चरण सिंह ने श्रीमती इंदिरा गांधी की। ज्यादातर प्रधानमंत्री पदभार ग्रहण करने के तत्काल बाद ही ऐसा करते आए हैं। कई बार पहले क्लास अटैंड कर लेते हैं, बाद में पदभार संभालते हैं। अपनी-अपनी समझ और सुविधा है।
मोदी के बारे में यह कह सकते हैं कि उन्होंने देर से इस पर ध्यान दिया लेकिन प्लानिंग तो मनमोहन सिंह की ही चला रहे थे। सारी योजनाएंं उनकी कार्यान्वित कर रहे थे। नाम नहीं ले रहे थे तो क्या? नाम में क्या रखा है।  गैस पेपर से तो उन्हींं के से काम चल रहे हैं। 
प्राचीन काल में अपने यहांं गहरे से गहरे दुश्मनों की क्लास अटैंड करने मेंं परहेज नहीं किया गया। भगवान राम ने रावण से शिक्षा ली। उनके द्वारा लक्ष्मण को उनके पास क्लास अटैंड करने का रामचरित मानस में स्पष्ट उल्लेख है।
यदि राहुल भइया पहले होते तो इस पर भी चटखारे लेते। कोई बड़ा मुद्दा न सही छोटा-हल्का-फुल्का ही सही। धीर और गंभीर से दिखने वाले भइया अब चुटकियों में बात कर रहे हैं। वह राजनीति की यह नई क्लास अटैंड कर रहे हैं।
जाहिर है क्लास सदियों से चल रही हैं। भइया की क्लास जाने कितने लोग लेते होंगे, सर, सर करके। अपने पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने भाजपा नेता डा. मुरलीमनोहर जोशी की क्लास खूब अटैंड की। जोशी जब राजनीति की मुख्य धारा में थे, तब इस पर ताने कसते। पर ‘गुरू गुड़ हो गया चेला शक्कर बन गया’।
अब सवाल यह है कि जहां पढ़ाई ही नहीं हो रही है, वहां क्लास लेने की बारी कैसे आएगी। छात्र बिना पढ़े डिग्रियां ले ले रहे हैं, कालेज वाले बिना टीचर रखे ही परीक्षाएं कराए दे रहे हैं। यह मुद्दा यूपी में बन सकता है, लेकिन सब को सांप सूघे हुए है। ऐसे मुद्दे को कौन छुए। जो मनमोहन सिंह की क्लास पर हायतौबा किए हुए हैं, वे भी चुप हैं।  कौन बर्र के छत्ते में हाथ डाले? बेचारे कल्याण ने छात्रों के कल्याण की कोशिश की, फिर लौटकर सत्ता का मुंह नहीं देख सके। अब यहां वहीं राज करेगा जो क्लास की जरूरत ही नहीं समझेगा। लेकिन छात्र बेचारे क्लास अटैंड न करने के चक्कर में कहीं के नहीं है, ‘घर के न घाट के’।

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