पीछे पड़ा भूकंप

  
        डा. सुरेंद्र सिंह
लगता है अब भूकंप पीछे ही पड़ गया है, ‘पिछौरिया डालकर’। पहले सालों, कभी-कभी दशकों बाद आता था लेकिन अब आए दिन। जब देखो तब भूकंप चला आ रहा है, अपनी सारी शक्तियों को लेकर। किसी को होश नहीं लेने देता, जब तक इंसान संभल नहीं पाता तब तक फिर से हमला कर देता है। आखिर यह चाहता क्या है। या तो यह अनाड़ी है या फिर इसकी हम लोगों से तगड़ी दुश्मनी है । अरे भाई जो करना है एक बार में कर ले, वैसे ही इस दुनिया में कौन सा सुख है, जिनके पास साधन हैं, उनके पीछे आयकर, प्रवर्तन निदेशालय, सीबीआई वाले पड़े रहते हैं जिनके पास कुछ नहीं है, वे दो जून की रोटी के लिए रोज मर-मर कर जीते हैं। कम से कम तड़फा-तड़फा कर तो मत मार।
भूकंप कब आएगा और कहां आएगा? इसका किसी को पता नहीं। भूवैज्ञानिक और अन्य विज्ञानियों की तो एक सीमा है, वे विचारे ईमानदारी से स्न्वीकार भी कर रहे हैं कि अभी विज्ञान इतना सक्षम नहीं है कि इसकी ऐसी भविष्यवाणी कर सकें जिससे बचाव किया जा सके।  लेकिन ये पंडित, पुजारी और ज्योतिषी जो सब कुछ जानने का दावा करते हैं, भगवान से अपने सीधे तार जुड़े बताते हैं, ये  ही कुछ बताएं। इनके ऊपर जनता का बहुत भरोसा है। ये लोग या तो बता दें या फिर अपना गोरखधंधा छोड़ दें।
ये भूकंप  लोगों के पीछे ऐसे ही पड़ा है जैसे १६ दिसंबर २०१२ को आधी रात को दिल्ली में छात्रा दामिनी के पीछे दरिंदे। उन्होंने उसकी इज्जत तार-तार की, इससे मन नहीं भरा तो उसके जननांगों में सरिया धुसेड़ दी। इससे भी तसल्ली नहीं हुई तो उसे चलती बस से पटक दिया।  देख हमारे यहां देर है अंधेर नहीं, हम लोग कानून बना सकते हैं, ऐसे दरिदों के लिए फांसी की सजा का प्रावधान कर सकते हैं। लेकिन अबलाओं की आबरू की रक्षा नहीं कर सकते। ऐसे ही तेरे सामने असहाय हैं, लाचार हैं। अब तू ही बता तेरे को क्या चाहिए। जो चाहे सो ले ले हीरा, मोती ले ले, मंूंगा ले ले विदेशों में जमा काला धन ले ले, इसे खोज ले और सबका सब ले ले।  रास्ते में कभी-कभी लुटेरे मिलते हैं, उन्हें बटुआ दे दो भले आदमी की तरह मान जाते हैं। लेकिन तेरे यहां तो ऐसा करने पर भी कोई रहम नहीं है।
 एक जमाना था जिसमें सब बातों का दोष आंख बंद करके अमेरिका के मत्थे मढ़ दिया जाता था। बेमौसम वर्षा हो जाए तो अमेरिका ने समुद्र में बम गिराकर कराई है। और कोई घटना हो जाए तो उसके पीछे सीआईए का हाथ है। अब तो अमेरिका से अच्छी खासी दोस्ती है, उस पर यह तोहमत नहीं मढ़ सकते हैैं। लेकिन अब क्या कह सकते हैं? बात अबकी है। कह सकते हैं, भूकंप हिंदुओं के पीछे पड़ा है। नेपाल तो हिंदू राष्ट्र है ही, भारत को विहिप के तोगड़ियाजी हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए प्रयासरत हैं।  अफगान और पाकिस्तान? ये पहले हिंदुस्तान के ही हिस्से थे। बिहार आदि राज्यों में होने वाले चुनावों के लिए हिंदुओं के सेंटीमेंट को इससे जोड़ा जा सकता है। चलेगा ही नहीं दौड़ेगा। चलाने वाले हर जगह हैं, वह तो नेपाल के अधिकारियों ने पुराने कपड़े लौटा दिए वरना वे नए कपड़े अपने पास रख रहे थे, पुराने नेपालियों को पहनाए दे रहे थे।
       

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