अब कब बढ़ेंगे?

    डा. सुरेंद्र सिंह
कुछ चीजें ऐसी होती हैं जो अनायास होती हैं, उनके होने से पहले किसी को भनक तक नहीं लगती, वे हो जाती हैं, जैसे भूकंप। कुछ चीजें ऐसी भी होती हैं, जिनका इंतजार रहता है। ये तो होंगी ही, ये ब्रह्म सत्य की तरह अटल हैं , जैसे मानसून, बेमौसम वर्षा, रिजल्ट, जैसे महंगाई, जैसे पेट्रोल, डीजल की कीमतें। जब परीक्षा दी है तो रजिल्ट  आएगा ही आएगा। बरसात के मौसम में मानसून भी आएगा, लेट भले ही हो जाए। ऐसे ही पेट्रोल और डीजल की कीमत बढ़नी हैं तो बढ़ेंगी ही। कोई विधाता की करनी को कैसे रोक सकता है? 
पहले पेट्रोल, डीजल की कीमतों में उतार आना शुरू हुआ, तब आए दिन कुछ न कुछ पैसे घट जाते। यह भाग्य वाले का करिश्मा था।   अब चढ़ाव के दिन हैं तो आए दिन कीमतें चढ़ती ही जाती हैं। १५ दिन पहले पेट्रोल के दाम ३.९६ रुपये प्रति लीटर और डीजल के दाम २.३७ रुपये प्रति लीटर बढ़े अब फिर से पेट्रोल ३.३६ रुपये और डीजल २.८३ रुपये प्रति लीटर बढ़ गया है।  अब कब बढ़ोत्तरी होगी? १५ दिन में या इसके कम ज्यादा में। इसका सबको इंतजार जरूर होगा? पहले कमी पैसों में होती थी, अब बढ़ोत्तरी रुपये में हो रही है तो रुपये में ही चलती चली जा रही है। जो चीज एक बार चल जाती है, वह चलती चली जाती है।
पहले जब कभी पचास पैसे भी दाम बढ़ते तो लोग हंगामा करते, आसमान सिर खड़ा कर देते, रास्ता जाम, चक्का जाम और जाने क्या-क्या नहीं करते। अब कोई इसके लिए कुछ करेगा तो यही कहा जाएगा कि क्या पागल हो गया है। जिस चीज को रोका नहीं जा सकता, इसके लिए विरोध कैसा?
पहले जब घर पर कोई रिश्तेदार आता तो मुढ़ेली पर कौवा कांव-कांव बोलता। बहनाएं कहतीं- ‘‘मामा आ रहा हो तो कौवा जल्दी उड़ जा’’। जब कौवा नही उड़ता तो कहती- ‘‘फूफा आ रहा हो तो कौवा जल्दी उड़ जा’’।  ऐसे ही जिन-जिन के आने का इंतजार होता, उनके आने का नाम लेकर कौवा को उड़ने के लिए कहा जाता तो कौवा उसी के नाम पर उड़ता जिसे आना होता। इसके बाद सायं तक वह रिश्तेदार शर्तिया आ ही जाता।
कौवा के कांव-कांव से घर में खुशी का माहौल होता, कौवा के उड़ते ही घरों में आने वाले मेहमान के लिए तैयारियां शुरू हो जातीं।  पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ने के लिए कौवा तो अब भी बोलता है, मीडिया के रूप में। टीवी वाले चिल्लाने लग जाते हैं, सोशल साइट्स भौंकने लगती हैं लेकिन घरों में खुशी के स्थान पर मायूसी छा जाती है। लोग स्कूटर और मोटर साइकिलों को कोने में ले जाकर खड़ी कर देते हैं। अब तेरा क्या काम? साइकिल पर निगाह डालते हैं या फिर पैरों की आजमाइश करते हैं। देखें, जोर कितना पैरों में है।
 अब अच्छे दिन भी पेट्रोल और डीजल के दाम पैसों में नहीं रुपयों में बढ़ाने के रुप में आ रहे हैं। कुछ महीनों बाद यह कहा जा सकेगा कि देखो दाम बढ़ने के बावजूद  पेट्रोल और डीजल की बिक्री घटने की बजाय बढ़ी है। इससे कंपनियों की आय में वृद्धि हुई है। इससे सिद्ध होता है कि लोगों की खरीदने की शक्ति बढ़ रही है। लोगों पर पैसा है तभी तो ज्यादा से ज्यादा पेट्रोलऔर डीजल खरीद रहे हैं, वरना नंगा क्या खाकर इन्हें खरीद सकता है? कारों की बढ़ी बिक्री के आंकड़े भी अच्छे दिनों के पैमाने के रूप में काम आ सकते हैं। तरीके तो और भी बहुत सारे हैं। 

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